Wednesday 28 October 2020

नारी अस्मिता पर चोट कब तक?

नारी अस्मिता पर चोट कब तक???
      ********0*******

    जीवन उपवन इतना सूना क्यों है
    राहों  पर  इतना  सन्नाटा  क्यों है
    सहमी सहमी डरी डरी कलियां  ....
    उजालो के घर अँधेरा  क्यों है।।

    जिस देश में कन्या पूजी जाती है
    नारी गृहलक्ष्मी की उपाधि पाती है
    जहाँ  गंगा के सम  सकल वश्व में जल नही
    वहां नरभक्षी दैत्यों से अपमानित होती है।।

कागज के पन्नों पर कानून लिखे रह जाते हैं
नेताओं के वादे वोटों तक सीमित रह जातें हैं
सहन शक्ति की भी सींमा होती है नेताओं सुन लो
जनता न्याय करेगी जब रोक नही पाओगे सुन लो।।

हर धर्म हर पार्टी नारी सुरक्षा की बातें करती है
फिर कथनी करनी में फर्क भला क्यों करती है
इंसानियत,नैतिकता का पाठ क्या तुमने पढ़ा नही
समस्त नारी आज आप सभी से पश्न यही करती है।।
             *****0******

                उर्मिला सिंह
 




Sunday 25 October 2020

गज़ल

तूफानों में जो जल सके वो चिराग लाओ
हरसू अंधेरा ही अंधेरा  है उजाले लाओ !!

मजहब के छालों से जख़्मी तन मन होरहा
हो सके तो मोहब्बत के भरे  प्याले लाओ!!

शब्दो के बाण चल रहे दिल के टुकड़े हो रहे
 प्यार से ,मौन  हुवे होठों  की  आवाजें  लाओ !!

 भरम पाले  बैठें  हैं  ख़ुशबुओं  को कैद करने का
 ‎दिले -गुलशन में हुनर खुशबू फैलाने  के लाओ!!

इश्क मोहब्बत की चर्चा लिखने में मशगूल रहे
भूख से तरसते बचपन को रोटी के निवाले लाओ।

महलों  के साज सज्जा के दीवाने तो सभी होते
पानी से भींगती जिन्दगी के लिए ठिकाने लाओ।।
                ********0*******
                 उर्मिला सिंह


 
 ‎
 ‎

Wednesday 21 October 2020

शक्ति पुंज हो ,शक्ति का आवाह्न करो...

द्रोपदी  का चीर  हरण  नित्य होता रहा 
  दर्द की कराह रौंद जग आगे बढ़ता रहा
  राजनीति सियासत का पासा फेकती रही.....
  उसूल मरता,न्यायालय जमानत देता रहा ।।
 
 
कलमकार का दर्द पन्नों पर बिखरता रहा
 चरित्र का खुले बाज़ार में सट्टा चलता रहा
कलयुगी रावणों की जमात में राम खोगये कहीं....
 आज का कायर इंसान गूंगा बहरा हो रहा ।।
  

 नारी  पुनः शक्ति  अपनी तुम्हे पहचानना होगा
 आखिरी सांस तक अधर्मियों के संग लड़ना होगा
 तुम्हे इन दुर्गंधित कीड़ों को मारकर ही मरना होगा
 यही संकल्प नवरात्रि में हर नारी को लेना होगा।।


 चुनौती बन के आओ इन दम्भीयों के सामने
 यह लड़ाई होगी तुम्हारी  इन आतताइयों से
 शक्ति पुंज हो  शक्ति का आवाहन करो..
 प्राणों की भीख मांगेंगे ये गिद्ध तुम्हारे सामने।।

                              उर्मिला सिंह
 

 

Monday 19 October 2020

जो कभी नही भरते.....

माने या न माने.....चार स्थान ऐसे हैं जो कभी नही भरते 
समुद्र, मन, तृष्णा, और श्मशान 

समुद्र :-

समुन्दर तेरी गहराई तेरे ओर क्षोर का पता नही
कभी खाली नही दिखता,नजाने कितनी नदियों से मिलता
क्या क्या छुपा रक्खाअंतस्तल में कुछ पता नही मिलता
जो जितने गहरे डुबकी लगाते उतने ही रत्न जुटाते
तभी तो दुनिया में तुम रत्नाकर कहलाते।।

मन:-
सागर के छोटे भाई लगते तुम
भाओं के अम्बार छुपा रक्खे तुम
कुछ संकुचित कुछ विस्तीर्ण होते
तेरी गति से तेज न गति होती किसीकी
अभिलाषाओं से खाली मन होता नही कभी।

तृष्णा:-

मानव काया तृष्णा के चेरी 
प्यास कभी न बुझ पाई इसकी
जाने कितना गहरा पेट है इसका
भरने का यह नाम न लेती.......
तभी तो कहते हैं"तृष्णा तूँ न गई मन से"


श्मशान:-

जीवन का सत्य यहीं से दिखता
अग्नि की लपटों का घिरा रहता
कभी न बुझती आग तुम्हारी.....
किसने तुझको है ये श्राप दिया।।

      उर्मिला सिंह


Wednesday 14 October 2020

एक सोच ......

मन की सोच जो अनायास उभरती है भाओं में......
*************************************
अनायास मन में सोच उभरती है.....
क्या विध्वंसकारी विचारों पर अंकुश लगेगा?
क्या नेताओं को देश विरुद्ध बोलने का लाइसेंस मिला है?
सामान्य नागरिक के लिए कानून है तो उनके लिए क्यों नही ?
यह अन्धेर अब ज्यादे दिन नही टिकेगा.......
इस अंधेरी रात का उजास होगा....
परन्तु न बसें जलेंगीं न पटरियां उखड़ेंगी
न दुकाने जलेंगीं न हिंसा भड़केगी
प्रत्येक ब्यक्ति के ह्रदय में देशभक्ति का ज्वार उठेगा
एक सैलाब जनसमूह का  उमड़ेगा......
सभी की आत्मा देश की आत्मा बन जगेगी......
जिसमे न कोई उच्च होगा न कोई नीचा
रोशनी अहंकारियों के द्वारा नही अपने आप होगी
न  पर्चियां छपेगी न कोई दावे करेगा  ......
अन्धेरे को हरा कर सूरज से पहले विश्वास का प्रकाश होगा
न आंतक होगा न नफ़रत का बाज़ार होगा
कभी गुलामी की जंजीर टूटी थी.......
उसी तरह से अंधकार को जनमानस का विश्वास तोड़ेगा
 चारो ओर प्रकाश ही प्रकाश होगा 
 एक दिन-----वह दिन आएगा ----आएगा......

                 उर्मिला सिंह
   

Monday 12 October 2020

गज़ल

ज़मीर की ज़मीन बंजर होगई आजकल
उसूलों की तामील दीजिये तो बात बने।।

रिश्तों की क्यारी में रेत ही बाकी बची रोने को
 इसमें स्नेह के फूल खिले तो बात बने।।

रूप बदला चाँद ने भी अनेकों  गगन में
पर चाँद की शीतलता याद रहे तो बात बने।।

रूबरू आईने के होते ही नकाब उठ जाती
ये सच्चाई गर समझ आजाये तो बात बने।।

बरस रही है तीरगी चहुंओर आजकल
उजालों की कोई बात करे तो बात बने।।


अपनी ढपली अपना राग अलापते सभी हैं
 देश के विकास में सहयोग की बात करे तो बात बने।।


                   उर्मिला सिंह




Sunday 11 October 2020

ह्रदय प्रेम की लहरें नयन करुणा की ज्योति,ऐ मालिक सुन ले बस इतनी सी विनती मेरी।।

अन्तर्मन
********
जीवन के दुखमय क्षण में
 घनघोर अंधेरा दिखता हो
 मष्तिष्क काम नही करता हो
 तब अन्तर्मन जुगनू बनके.....
 पथ भूले पथिक को राह दिखलाता है ।।

 जब मन की  उलझन बढ़ने लगती है
 जब रिश्तों की तुरपन खुलने लगती है
 दूर कहीं शून्य एक आवाज गूंजती है
 जग तो रंगमंच है ,तेरा मेरा कुछ भी नही
 बस कर्मों पर आत्मविश्वास की दस्तखत होती है।

शान्ति सहन शीलता वातानुकूलित कक्ष होती है
शीतलता,क्रोध चिंता रहित जीवन प्रदान करती है
मौन मस्तिष्क को आराम देता है.......
नैतिक, आध्यात्मिक मूल्यों का ज्ञान कराता 
प्रत्येक  दिन में छुपा एक गुह्य राज होता है।।

प्रेम सार्वभौम है ,होती नही है इसकी कोई सींमा
बिन प्रेम अनर्थक जीवन पावन प्रेम शक्ति है देता
जीवन से दुर्गुण दूर कर महकता और महकाता
चहुंओर प्रेम प्रवाहित करना  धर्म हमें सिखलाता।
ईर्ष्या द्वेष, तिमिर छट जाता जब प्रेम ह्रदय बस जाता।।

                 उर्मिल सिंह



              

Saturday 10 October 2020

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर एक मां की हुंकार....

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस  पर 
एक माँ  की हुंकार.....
                *********

प्यारी प्यारी लगती छवि तुम्हारी ..
फूलों से  भी नाजुक कली हमारी....
इस निर्मम जग में तेरा सम्मान नही,
हाँथों  में जब तक तेरे तलवार नही !!

 माँ हूँ ,कमजोर तुझे ना बनने दूँगी..
 जमाने पर अब बलि ना चढ़ने दूँगी..
 बहुत सुनी बातें सबकी-अब और नही,
 तेरी बाहों में मैं काली की शक्ति दूंगी !!

अबला समझे अब दुनिया तुझको...
यह कत्तई बर्दास्त नही अब मुझको...
तेरी कमजोरी ही ढाल बनेगी तेरी,
ऐसा सबक सिखाना होगा तुझको !!

संस्कार ह्रदय में होता कपड़ों में नही...  
सीता सावित्री कहानियों में होती हैं...
रानी लक्ष्मीबाई से युद्ध प्रेरणा ले उठ ,
तुझे इतिहास बदल-नई कहानी लिखनी है!!

मां दुर्गा का वन्दन,कटार उठा हाँथों में...
चूड़ी - कंगन बजने दे शंख नाद ये तेरा..
हर दुश्मन का लहू पी अपनी प्यास बुझा,
आँसू की हर  बूँद  घूमेंगी बन कर नव दुर्गा !!

                             उर्मिला सिंह




 

यादों की आंख मिचौली.....

यादों की आंख मिचौली
******************

यादों  की आंखमिचौली
फूलों की मीठी चितवन।
नभ की छिटकी दीवाली
पागल हुआ बिचारा मन।।

फैला अपने मृदु स्वप्न पंख
नीद उड़ी क्षतिज के पार।
अधखुले दृगों के मधु कोष-में
किसने  उड़ेल दिया खुमार।।

रोम रोम में बासन्ती छाई
उर सागर में लहरे लहराईं।
तम पर विजय पताका...
सूरज की किरणों ने फैलाई।।

अभिलाषाओं का सुनहला पन
झिलमिला रहा विस्तृत गगन ।
देख रही हँस -हँस मीठी चितवन
पुलकित  मन, रंग भरा जीवन ।।

                 उर्मिला सिंह

Friday 9 October 2020

नीला आसमाँ........

आज.......
रंगों भरा आसमाँ दिल के 
कैनवास पर उतर आता है
मैंने भी सोचा चलों पन्नो के कैनवास पर...
कुछ तस्वीरें बनाती हूँ.....
रंग बिरंगी ,प्रकृति की मनोरम छटा
कल-कल बहती नदी......
लहराता सागर.....
पनघट पर आती-जाती  ओरतें.....
खेतों की हरियाली .......
झूमती कलियां - खिलतें फूल...
रम गया मन, चित्रों को .........
केनवास पर बनाने में 
सधे हाथों ब्रस चल पड़ा....
कुछ अंतराल के बाद.....
ब्रस रोक कर देखती हूँ
केनवास पर की गई अपनी चित्रकारी,
स्तब्ध रह जाती हूँ.......
उसपर मानसिक विकृतियों....
के अनेक रूपों का चित्र बना था
ऐसा लग रहा था मानो...
समाज की सारी विकृतियां
इस कैनवास पर मुझे
चिढ़ा रही हैं....
मैं सिर पकड़ कर बैठ गई....
शून्य की तरफ़ देखती रह जाती हूँ।।

            उर्मिला सिंह



Thursday 8 October 2020

यादें....

आज यादों की वीणा  झंकृत  होगी तेरी 
याद आएंगे गुजरे जमाने बिताये थे हमने कभी !!

 सागर किनारे  लहरों को देखोगे जब तुम!
 गुनगुनाओगे गीत जो गाये थे हमने कभी!

आवाज यादों को दोगे कभी तो, हमारे!
एहसासों का धागा बाँधे थे हमने कभीे!!

चन्द लम्हों के लिये मिले थे जिन्दगी से ,
चाँदनी में शबनम से नहाये थे हमनेे कभी!!

 खिलेंगे फूल यादों की वादियों में सदा!
 प्यार की खुशबू से जन्नत बनाये थे हमने कभीं !!
                    ****0****
                          #उर्मिल