Monday 30 November 2020

हम उसी के हैं....

बात  दिल की कभी होठो  पे  लाई  न गई ,
 हम  उसी  के  हैं , उसी  से  बताई  न गई !

रात , सिरहाने  बैठी  थपकियाँ  देती रही ,
आंखों से पल, एक पलकें  झपकाई न गई !

 उसे सौगात मैंने चंद्रिका की रोशनी दे दी
 जुगनुओं की रोशनी उससे  भिजवाई न  गई !

जन्म जन्म  से परीक्षित  सीता  ही  होती रही ,
केचुली  अभिमान  की उससे  हटाई न गई !

भाव शब्द गीत  उसी में समाहित हो गये मेरे
गीत मेरे रातरानी से ,उससे महकाई  न गई !
                                           #उर्मिल





Saturday 28 November 2020

ग़ज़ल

खोल दी आज खिड़कियां रश्मियों ने आवाज दी है
हो गया सबेरा परिंदों की टोलियों ने आवाज दी है

मिट पायी नही कभी जिन्दगी की ये तल्खियाँ
आज किसी  की भोली मुस्कुराहटों ने आवाज दी है

हर कदम पर तिजारत से भरी जिंदगी है
न जाने किधर से आज इंसानियत ने आवाज दी है

 पंखुड़ियों ने नमी पलकों की ,आगोश में समेटा है
  आज  हरसिंगार के फूलों ने आवाज दी है

 लगाकर एतबार के पौधे ता उम्र हारते  रहे
 आज विश्वाशों ने एक बार फिर आवाज दी है

रिश्ते नाते सभी का पैमाना आज ज़र ही रह गया है
आज अहसासों के रिस्तो ने फिर आवाज दी है

रूह तड़पती रही घुटन होती रही कोई सुर तो मिले
आज दर्दे दिल की दवा सुर के तारों ने आवाज दी है !
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                 उर्मिला सिंह







Thursday 26 November 2020

ऐसा कोई गीत लिखो प्रिय.....

ऐसा कोई गीत लिखो प्रिय 
आसूं मुस्कानों में ढल जाए
बीच धार में बहती कश्ती को...
शाहिल का सहारा मिल जाए।।

आहों के गांव बसे हैं धरती पर
 पीड़ा का नृत्य होरहा धरती पर
 नेह नीर की फुहार बरसाओ प्रिय...
 करुणा,दया की सरिता बह जाए।।

ऐसा कोई गीत लिखो प्रिय......।

इंसानों की बस्ती में इंसान नही
मन्दिर मस्जिद में भगवान नही
गीता कुरान महज़ पुस्तक बन रहगई
ऐसा सुर से साज सजाओ प्रिय.....
भाओं के सागर से मन उद्देलित हो जाए।।

ऐसा कोई गीत लिखो प्रिय ... .।

चाँदनी रात खिलखला कर हंसे
फूलो की मधुरिम सुगन्ध बिखरे
मुर्झाये चेहरों पर बसन्त खिले......
दिल से दिल की दूरी मिट जाए
इंसानियत से आलोकित हर मन हो जाए।।


ऐसा कोई गीत लिखो प्रिय....।

अब न कलियां कोई मुर्झाए
अब न बागवां कोई आसूं बहाए 
बचपन के सपनों की मजबूत नीव हो....
नारी को वस्तु या भोग्या न समझे कोई
अश्क एक दूसरे के आँखों के अपने हो जाए।।

ऐसा कोई गीत लिखों प्रिय..... ।।
   
     / ******0******
              उर्मिला सिंह









Friday 20 November 2020

कली आत्मा भौरें. ...

कली  आत्मा भौरें  दुर्गुण तन है माया जाल
जीवन तृष्णा में उलझा भटक रहा मन बेहाल।।

अंधेरा बहुरूपिया ,(कोरोना)आये धर कर बहुरूप
आशा विजयी,झिलमिलाई धर दीपक का रूप।।

श्वेतशुभ्र-शरद,और बसन्त दोनों देता है शुभ संदेश
दोनों आनन्द के पर्याय हैं दोनों के अलग अलग संदेश

बसन्त,उल्लास बिखेरता स्थाई भाव रति का है द्योतक
शरद,शान्त श्वेत कपोल सम आंतरिक समृद्धि का द्योतक

फूलो को चुनतें हैं जैसे शब्दों को उसी तरह चुनना है
गीत ग़ज़ल कविता के भांवो में सोच समझ कर गूँथना है।।

          उर्मिला सिंह











 

Thursday 5 November 2020

जो मिला नही उसका कुछ गिला नही.......




वो दर्द जो गया नही वो जज़्बात जो कहा नही
नीर आंखों से झरते रहे विकल मन कुछ कहा नही।।

जो  मिला नही मुझे उसका कुछ गिला नही,
उम्मीदों की लौ बुझी नही हौसलों ने हार माना नही।।


नफ़रतों की बह रही बयार प्रदूषणो से कराहती धरती 
 फैलते ज़हर से तन मन बचा नही कोई जाना नही।।

ज़रा ठहरो -सहरे-चमन में सांप फन उठाएं बैठे हैं 
किस किस को कुचलोगे अभी तक तो तुमने समझा नही।।

 कभी झाँक कर ह्रदय स्वयम से पूछते क्यों नही
 बिखरे नागफनी को राहों से हटाना तुम्हे आता नही।।

अंधियारी रात को समेटने दीप्त रोशनी ले दीपावली आई
ह्रदय का दीपक जलाओ खुशियां ढूढना तुम्हे आता नही।।
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                        उर्मिला सिंह










Tuesday 3 November 2020

दुनिया का चलन....

सीखने लगे सबक
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दुनिया का चलन 
लगे सीखने सबक
बहुत नादान थे हम 
समझ न पाए सबब।

छल प्रपंच से भरी
है ये दुनिया सारी
देखी जो बेहाली
नम हुईं आंखे हमारी।

'पैरों तले खिसकने
लगी जमीन'
हम सम्भलने लगे 
रफ्ता-रफ्ता बढ़ने लगे।

थक कर बैठे न हम
पांव जख्मी हुवे
अश्क ढुरते रहे
मलहम को तरसते हम।

दुनिया की हकीकत 
रिश्तों की गठरी खुली
उघड़ी तुरपाई की मरम्मत हुई
 जिन्दगी आहिस्ता आहिस्ता
 कांटों में  खिलने लगी।।

      उर्मिला सिंह