Tuesday 28 May 2019

बेटी पुष्प है उसे प्यार से सिचिये ताकी कली से पुष्प बन का उपवन महका सकें। छाया बन श

बेटियां अभिमान होती है स्वाभिमान होती हैं  हर घर के संस्कारों की जान होती हैं ।
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भगवान का दिया अनुपम वरदान होती है बेटियाँ
घर आँगन में खुशबू फैलाती गुलाब होती हैं बेटियाँ!!

     महकती चहकती हँसती हँसाती हैं बेटियां
     पायल की रुनझुन सी गुनगुनाती हैं बेटियां

      माँ  बाप  के हर सांस  में बसती  हैं बेटियां
      प्यार से दो घरों को आबाद करती हैं बेटियां!!

  जिम्दारियों के तहत स्वयम को कुर्बान करती हैं
  छुपा कर अश्क,दर्द से समझौता करती हैं बेटियाँ!!

जख्मों को दफ़्न कर मुस्कुराने की कला में माहिर होती
अपरमित शौर्य सहन शक्ति की मिसाल होती हैं बेटियाँ!!

अधरों पर मुस्कान आखों में ख्वाब सजाये पी घर जाती
अजनबी चेहरे अजनबी लोगों से प्यार मांगती हैं बेटियाँ

गृहणी बन सजाती  संवारती स्वर्ग बनाने की चाह रखती
फिर भी संस्कार विहीन घरों में गाली खाती हैं बेटियाँ !!

जमाना बदला पर आज भी ठोकरें खाती हैं बेटियाँ
मानसिक यंत्रणा समाजिक कुरीतियों को सहती हैं बेटियाँ।!

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                                         🌷उर्मिला सिंह

     

जीवन की व्यस्तताओं में हम इतने मशगूल हो गये हैं कि वास्तव में जीवन जीने की कला ही भूल गए हैं

इस आपाधापी की जिन्दगी में -
हम  क्या से  क्या  होगये,
वर्षों बीता .....
छत पर सोना  भूल  गये!
पन्नो पर रह गई चाँदनी रातें
चाँद के संग गुफ्तगू भूल गये
तारों को गिनना,उसके संग की,
आँख मिचौली भूल गये!!

डिजिटल के दीवाने पत्राचार को भूल गये
हम क्या से क्या होगये......

बच्चे ! चरखा काटती नानी भूले
परियों की कहानी वाली दादी भूले
अब न रहा वो बचपन,न अंधियारी रातें
बिजली की चकाचौन्ध में.....
जुगनू की रोशनी भूल गये !
हम क्या से क्या हो गये.......

सूख गई रिश्तों की बेले
मुर्झाये मर्यादाओ के फूल
छल कपट के झूलें में....
सत्य की महिमा भूल गये
नफ़रत का विष बोते बोते
प्रेम मोहब्बत की भाषा भूल गये
हम क्या से क्या होगये......

अब न कोई बुदाबादी में
चादर तान के सोता
बिजली के चमकने से बच्चा
ममता की गोदी में छुपता
ना बादल की गर्जन से डर कर
माँ के गले लिपटता

वो बचपन वो प्यार की बातें भूल गये
हम क्या से क्या हो गये.... 

भोर की किरणे
अब नही जगाने आती
कोयल की मीठी आवाजें !!
अब न सुनाई देती......
अब न पक्षियों का कलरव होता
ना दादी के कोमल हांथों का स्पर्श
न दादा की मीठी झिड़की होती
होता नही भाई बहनों का संग!!

जीवन जीने की कला हम भूल गये...
हम क्या से क्या हो गये  ...

नित आती है रात सुहानी
अंचल में ले जज्बातों की कहानी
कुछ कहने कुछ सुनने
पर लफ्जों की कमी होती
ख़ामोशी का साया होता
आंखों में नमी होती....
सावन भादों की रात सुहानी भूल गये
हम क्या से क्या होगये........

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            🌷उर्मिला सिंह























Tuesday 21 May 2019

जिन्दगी तू एक पहेली है


जिन्दगी क्या एक पहेली है जिसे सुलझाने में उम्र बीत जाती है?
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जिन्दगी तूँ अनबूझ पहेली है
कभी दुश्मन कभी सहेली है!

कभी सपनो के महल बनाती
कभी गम के तूफानों में डुबाती
कभी आस  के  दीप  जलाती
कभी निराशा की बदली बन जाती!!

जीवन के चौराहों पर तुम
चलती टेढ़ी मेढ़ी चालें हो
समझना चाहूं जितना तुमको
उतनी ही उलझती जाती हो!!

जिन्दगी अनसुलझी पहेली है
कभी दुश्मन  कभी  सहेली हो!!

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                               🌷उर्मिला सिंह





Sunday 12 May 2019

माँ !तपती जिन्दगी में शीतल छाया है शब्दों के परिधि से अलग ममता स्नेह की मूरत है ,भगवान को देखा नही पर माँ की ममता में भगवान का दर्शन होता है!

माँ की ममता को शब्दों में कैसे बाँधूँ ....
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तुम्ही बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ  कविता..!!

जन्मों से एक ही शब्द मुकम्मल लगता "माँ"..
कैसे उसको शब्दों में बाँधू ,हार गया मन मेरा ..
बिन तेरे जग में मेरा आस्तित्व कहाँ होता...
तुम्ही बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता...!!

माँ!मन के सूने पन की भाषा सुन लेती थी ..
जब भी मन में चींटी से कुछ विचार रेंगते..!
मन के दरवाजे खोल आटा  डाल  देती थी..
बाहों के घेरे में ले मुझे थपकियाँ देती थी...!
स्नेहिल हाथों का स्पर्श सदा सम्बल देता था..
तुम्ही बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता..!!

माँ ! विस्मृत नही हुई  आज भी वो स्मृतियां..
छील कर हाथों पर रखना मटर, मूँगफलियाँ..!
मन के छिलके उतार तूने मेरे अन्तर्मन को जगाया..
मेरी वेदना पर मुझसे ज्यादा तुझको दुख होता..
तुम्ही बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता...!!

तेरी आँखो से समझी  दुनियाँ और ये दुनियादारी....
परम् अनुभवी तुम थी और तुम्ही थी प्रथम गुरु मेरी.
कविता नही,चरणों पर अर्पित भावों की श्रदांजलि है
माँ तेरी गोदी का सुख जीवन में कहीं नही पाया..
तुम्ही बता शब्दों में बाँध तुझे कैसे लिख दूँ कविता!!

तुम्हीं बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ  कविता....!!
                  
                                            🌷ऊर्मिला सिंह










Friday 10 May 2019

वक्त कभी किस का नही रहा.....

हम देखते रहे......वक्त हाथों से फिसलता रहा......

दर्द सहते सहते लावा बन जलने लगता है
सूरज के ढलते ही सागर उबलने लगता है

फूल सा लहज़ा भी आग उगलने लगता है
पत्थर भी कभी कभी  पिघलने  लगता है!!

कभी कभी गम की तस्वीर बदलने लगती है
कभी कभी अश्कों का रंग बदलने लगता है

वक्त की कीमत क्या होती है समझ तभी आती है!
लम्हा लम्हा वक्त जब हाथों से फिसलने लगता है !!

हालात बदलते ही संगी साथी हाथ छुड़ाने लगते हैं!
व्याकुल,तन्हा मन तब नाम प्रभु का लेने लगता है !!
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                    🌷उर्मिला सिंह







Friday 3 May 2019

शब्द की महत्ता.......

शब्द अर्चना और अरदास होतें हैं
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शब्द ,शब्द ही नही व्यक्तित्व का आईना होता है
शब्द भाओं में ढल अर्चना और अरदास होता हैं!
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शब्द के जलवे न पूछो कभी तीर कभी गुलाब है,
शब्द से चन्दन की शीतलता  का आभास होता है!
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सम्वेदनाओं से अभिभूत  शब्द  दर्द का उपचार है,
शब्द से नफ़रत तो शब्द ही प्रेम का उपहार होता है!
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                                  🌷ऊर्मिला सिंह


गरीबों की दास्तां......


गरीबों की दास्तां
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गरीबों की ....जिन्दगी में ,
सपनो की...... चिताएं जलती हैं!
पिघलते दर्द वेदना के .....
ज्वार भाटा सी ......कसक उठती है!
ऊँचे महलों में .....रहने वालों को,
होश रहता नही .....झोपड़ियों का
दब के रह जाती .....सिसकियां
सुनने वाला कोई .... रहता नही है!
इसी हाल में जीते....... ,
इसी हाल में मर जाते......'
सियासत खूब होती है......
लुभावने वादे खूब होते हैं......।
जरूरत वोट की पूरी होते ही...
पानी के बुलबुले से बह जाते हैं।।
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                                  ऊर्मिला सिंह

नव युग की नारी.....

नव युग की नारी.....
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प्यार समर्पण निष्ठा को खुली चुनोतिें अब देने दो
सड़े गले रीत रिवाजों का अंत हमें अब करने दो !!

         मंजिल के पथ पर कदम बढ़ाने दो
         जख्मों का दर्द मलहम बन जाने दो
         जिन्दगी से आँख चुराया हमने पल पल
         ख्वाबों की बारात का बुझते दिये जलाने दो

 नव  युग  की नारी है पँखो  में उड़ान  भरने दो!
सदियों बाद खुली हवा में खुल के सांस लेने  दो!!

       अभी कुहरे को कुछ और छटने दो!
       अम्बर में कुछ तेज रोशनी होने दो!!
       अभी तो जंजीरों को खोले हैं हमने!
       विस्तृत गगन को जरा तो तौलने दो!!

नव युग की नारी नव आसमाँ में उड़ान भरने दो!
सदियों बाद खुली हवा में खुल के साँस लेने दो!

      लगाये घात अनेको यहाँ बाज बैठे हैं !
      उनसे बचने के पैतरे भी सीखने दो!!
      पर कतरने को तैयार जल्लाद बैठे  हैं
      उन्हें सीख देने को खड्ग हाथ लेने दो
  

नव युग की नारी नव आसमाँ में उड़ान भरने दो!
सदियों बाद खुली हवा में खुल के साँस लेने दो!

     समाज की अवहेलना सह जीते रहे सदा
     व्यंग वाणों से ह्रदय छलनी होता रहा सदा
     कलियाँ मसलती रही अहम हँसता रहा सदा!
     अहम की गूंज का हथियार हाथों में लेने दो !!

नव युग कि नारी नव आसमाँ में उड़ान भरने दो!
सदियों बाद खुली हवा में खुल के साँस लेने दो!
      
         ऋचाएं काव्य सभी आज झूठे हो गये!
         ‎तुलसी कालिदास जैसे भाव लुप्त हो गए!!
         ‎हमें सीख मत  दो सीता और राधा की!
         ‎हमें विरांगना बन जीने का आशीर्वाद दो!!

नव युग की नारी नव आसमाँ में उड़ान भरने दो!
सदियों बाद खुली  हवा में खुल के साँस लेने दो ! 

          ऊँच नीच धर्म की राज नीत करतें हैं सभी!
          ‎बलात्कार रेप धर्म की नही, नारी की होती!!
          कानून पुलिस सियासत सभी ख़ामोश होते!
          इन्हें  सबक सिखाने का हौसला भरने दो !!

    नव युग की नारी नव आसमाँ में उड़ान भरने दो!
    सदियों बाद खुली हवा में खुल के साँस लेने दो!
           ‎                                   
           ‎                                         #उर्मिला
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