Saturday 29 December 2018
Thursday 27 December 2018
Monday 24 December 2018
राजनीति, का मौसम
नमनआप सभी को.....
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नित्य ही राजनीति नये नये शब्दों को चुन अपने तरकस से प्रहार कर रही है।
कोई अपनी उपलब्धियों पर तो कोई ,बगैर उप लब्धियों के बढा चढ़ा के बोलने की कला में अपने को प्रवीण दिखा रहा है।
हर कोई निजी स्वारथ को हथियार बना जनता के समक्ष अपने को पेश कर रहा है।अपनी बुद्धि की खुरपी से वेसे ही खुराफात निकाल रहा है जैसे माली घास निकालता है।वास्विकता यह है कि आज लोकतंत्र जनता के आंसुओं से गिला है।इसी को इंगित करती मेरी रचना आप सभी के समक्ष एक प्रयास है!
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झूठे बोल ,अभद्र शब्दों की माला जपते रहे
जनता के समक्ष पल पल रूप अपना बदलते रहे!
अन्धेरे समझते,उजाले मुठियों में कैद हैं उनके
उन्हें क्या पता सूरज आसमाँ में प्रकाशित सदा होते रहे!!
चिराग तूफानों में भी जलाता रहे, ऐसी सख़्शियत लाओ
अन्धेरे को फैलने न दो रखवाले देश का लाते रहो!!
सियासत से खाली मन्दिर मस्जिद नही मिलते
संकटमोचन भी आज नेताओं से परेशान होते रहे!!
दुकानदारों ने लूटा जम कर सारी दुकानों को
पहरेदार को ही चोर कह हंगामा मचाते रहे!!
🌷 उर्मिला सिंह
Sunday 23 December 2018
गरीबी....
गरीबी में टूटते ख्वाबों के संग जीना कहां आसान होता है
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गरीबों की ....जिन्दगी में ,
सपनो की...... चिताएं जलती हैं!
पिघलते दर्द वेदना के .....
ज्वार भाटा सी ......कसक उठती है!
ऊँचे महलों में .....रहने वालों को,
होश रहता नही .....झोपड़ियों का
दब के रह जाती .....सिसकियां
सुनने वाला कोई .... रहता नही है!
इसी हाल में जीते....... ,
इसी हाल में मर जाते......'
सियासत खूब होती है......
लुभावने वादे खूब होते हैं......।
जरूरत वोट की पूरी होते ही...
पानी के बुलबुले से बह जाते हैं।।
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ऊर्मिला सिंह
Thursday 20 December 2018
जिन्दगी.... को परिभाषित कर न पाया कोई,वक्त के साथ बदलती रहती है जिंदगी।
जिन्दगी भी क्या अजीब चीज होती है ......
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जिन्दगी भी क्या अजीब होती है!
उम्मीदों के गुब्बारों से खेलती है!
कभी नटखट सी खुश हो तालियां बजाती!
कभी बिखरे पन्नों सी बिखर जाती है!!
जिन्दगी भी क्या अजीब चीज होती है!
दुनियादारी के सबक के संग संग चलती!
वक्त से कदम मिला उम्र के पड़ाव जीती!
हकीकतों की सुलगती धरती पर आंखमिचौली खेलती!
ख़ुद को क़तरा क़तरा सँवारती बढ़ती जाती!!
जिन्दगी भी क्या अजीब चीज़ होती है!
दिल के हर मौसम को जानती समझती!
सारी आकांक्षाओं इक्छाओं को है चेरी बनाती!!
उम्र की आखिरी दहलीज पर कदम बढाती !
सुखी टहनी सी सख्त कभी पंख सी मुलायम लगती!!
जिन्दगी भी क्या अजीब चीज होती है!!
अल्फाजों से परे एक साज होती जिन्दगी!
मीठी कुछ खट्टी रचती महाकाव्य रहती जिंदगी !!
जिंदगी में उफह,आह ,अहा बेशुमार होतें है यारों!
ब्रम्हाण्ड के जादुई तिलिस्म में कैद रहती जिंदगी!!
जिन्दगी भी क्या अजीब चीज होती है !
कहने को हमारी,पर हमारी होती नही है!!
जिन्दगी भी क्या अजीब चीज होती है!!
🌷उर्मिला सिंह
Sunday 2 December 2018
क्षितिज......
दूर कही क्षितिज से....लगता है जैसे.....
धरती व गगन मिले श्रावणी उमंग में।
भीनी भीनी बयार बहे संदली सुगन्ध में।
बज रही ....मन तरँग ....उत्सवों के रंग में।
हरित धरा लहरा रही कृषकों के उमंग में।।
तट व्याकुल भये..... मिलन के आनन्द में।
नृत्य भाव जग रहे.... सागर के आनन्द में।
पात पात सुघड़ हो रहे ..वर्षा के नहान से।
वन हर्षित होरहे पी-पी पपीहा की गूँज से।।
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🌷ऊर्मिला सिंह
भारत के जाँबाज सैनिक
भारत के जाँबाज सैनिक
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भरो हुँकार ऐसी धरती से अम्बर तक हिल उठे
शौर्य की हो अंगार वृष्टि, अरि तृण से जल उठे
यम के समक्ष जैसे चलता नही वश किसी का
काटो मुंड दुश्मनों के ,जीत की दुंदभी बज उठे!!
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🌷उर्मिला सिंह
सियासत का खेल .....
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सर्द मौसम भी अब गरम हो रहें है
सियासत में आग के गोले बरस रहें है!
तीखी मिर्ची सी जुबाँ होगई सभी की
नेता संस्कारों की होली जला रहैं है!
दुनियाँ के मालिक राजा राम भी चकित हैं
जिसका घर वही अब बेघर हो रहें हैं!
भक्तों की लम्बी लम्बी कतारे लगी हैं
कोई जनेऊधारी तो कोई गोत्र बता रहें हैं!
सियासत का खेल देखिये चुनावों के समय
सभी को अयोध्या में राम मन्दिर याद आ रहे है!
पुरुषोत्तम राम,अयोध्या नही अब आपके लिए
तुलसी बाल्मीकि आँखों से अश्रु बरसा रहें हैं
भ्र्ष्टाचार गुनाहों की नदी बह रही है यहाँ
रावण ही रावण चहुँ ओर नजर आ रहें है!
रामचरितमानस के राघव, करे किससे शिकायत
सरेआम मर्यादा की, दानव चिता जलारहें हैं!
अविवेकी समाज पर विजय पाना आसान नही
मर्यादा के रक्षक,दुर्दशा भारत की देखो कहाँ जा रहे हैं !!
🌷उर्मिला सिंह
मन मे उठते गिरते भावों को पन्नो पर कविता गजल और गीत में बिखेर कर मनको कुछ सुकून मिलता है
जिन्दगी ख़फ़ा तुझसे अब सारे नजारे हो गये
उम्र की देहरी पे रुकने को जब मजबूर हो गये!
बेपरवाह जिंदगी हौसलों की कश्ती ले चली थी
जिस जगह पर रुक गई वही किनारे होगये!!
गरीबी की चक्की में पिसते रहे ता उम्र हम
बच्चे हमारे स्कूल जाने को तरसते रहगये!!
सरेआम ज़मीर की बोली लगती है अब यहाँ
चन्द सिक्को पे डोलते ईमान देखते रहगये !
इस दौर को कोसना भी लाजमी होता नही
हर दौर में जयचन्द विभीषण को झेलते रहगये!!
धर्म को खेल बना इन्सान को लड़ाती रही सियासत
सियासत में नेता भी इन्सान से हैवान बनके रहगये!!
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🌷उर्मिला सिंह
Saturday 17 November 2018
गाँवों की जिंदगी
मजबूरियों के जाल में फंसी हुई है गांवों की जिन्दगी
पश्ननों के भँवर में उलझी आज भी गाँवों कि जिन्दगी
खुशियाँ मिली जिनकी बदौलत भूल जातें है उन्हें नेता
आज भी भूखे पेट,तंगहाल में हैं गाँवों की जिंदगी !!
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🌷उर्मिला सिंह
Thursday 15 November 2018
मुक्तक
गरीबी.....
हम गरीबों की भी अजब जिंदगानी है
दफ़्न होती निशदिन अस्मत हमारी है
कौन समझे पीर ज़ख्मी दिल की यहाँ
रोटी का टुकड़ा दीवाली होली हमारी है
सियासत.....
सियासत की मची गहमा गहमी है
मौसम सर्दियों का हवाओं में गर्मी है
वोटरों को लुभाने की होड़ भी लगी है
भाग्य का फैसला जनता के पाले में आज
कर्महीनो के चेहरों की हवाइयाँ उड़ी है
वक्त....
वक्त की साजिसों से बच न पाया कोई
चाहे सिकन्दर हो या पोरस कोई
वक्त का मिज़ाज हस्तियाँ मिटा देता है
वक्त महल को भी झोपड़ी बना देता है
अभिमान......
कोमल डाली वृक्ष की आँधी तोड़ न पाय
अकड़ी डाली अहम की पल में टूटी जाय
छुओ अम्बर को जडे न जावो तुम भूल
तरुवर का आस्तित्व है धरा के नीचे मूल
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🌷ऊर्मिला सिंह
Friday 12 October 2018
गरीबी की व्यथा......
गरीबी की मौन व्यथा बच्चों के आँखो से झलकती है........
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नवरात्रि आते ही आँखें चमकने लगी,
हमारी भी पूजा होगी आश बंधने लगी!
दो दिन सुखी अंतड़ियों को राहत मिलेगी
हम गरीबों को भी हलवा -पूरी मिलेगी!!
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🌷ऊर्मिला सिंह
Thursday 11 October 2018
तन्हाइयाँ...
जब से तन्हाइयों में जीने का सलीका आगया ,
तब से खुद को पहचानने का तरीका आगया!!
खामोश लबों की भी अपनी कहानी होती है
जिन्दगी जीने कि येअदा भी निराली होती है!
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🌷ऊर्मिला सिंह
संवेदना...
आज के युग में सम्वेदनाओं का आभाव होगया है इसी भाव को दर्शाती रचना......
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सम्वेदनाओं के शब्द से दिल पिघल जाता है !
तसल्ली पा आँखो से अश्क ढुलक जाता है !
रंग बदलती दुनियाँ में सम्वेदना मिलना मुहाल हुवा
आदमी हर वक्त ख़ुद में परेशान नज़र आता है!
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🌷ऊर्मिला सिंह
Sunday 7 October 2018
वो दिन कभी तो आयेगा.....
समाज की व्यवस्था से दुखी मन कराह उठता है
नित्य मर्यादाओं का उलंघन,राजनीति का गिरता स्तर वाणी में मधुरता का आभाव जाने कहाँ जारहें हैं हम।
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वो दिन कभी तो आयेगा.......!
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जब मुकुट पहने संवेदनाओं के..
स्वर्णिम बिहान झांकेगा...!
आशा,संकल्पों के दिव्य ज्ञान से..
मानव स्वयम को समझ पायेगा!
वो दिन कभी तो आएगा ....!!
क्षुधित ,पीड़ित मानव को राह दिखायेगा...
अहंकार को भेद,प्रेम संदेशा दे जाएगा..!
निर्मल मधुर सपने साकार होंगे...
मर्यादा स्वाभिमान की सोच का विस्तार होगा..!
वो दिन कभी तो आएगा......!!
नारी की इज्जत जब सड़को पर न नोची जाएगी..
अधखिली कलियाँ न मसली जाएंगी..!
ह्रदय में करुणा प्रेम का इंद्रधनुषी रंग बिखरेगा..
जब दुख का हिम पिघलेगा अम्बर झूम के नाचेगा !
वो दिन कभी तो आयेगा....!!
प्रीत का गठबंधन इन्सान के दिल से दिल का होगा.
पल्लवित पुष्पित हर घर का कोना कोना होगा..!
किसानों के कन्धे पर कर्ज का न कोई बोझ होगा..
वाणी में संयम,धैर्यता,स्थिरता का भाव होगा..!
शहीदों की कुर्बानियों का यही एक उपहार होगा
वो दिन कभी तो आयेगा..........!!
वो दिन कभी तो आएगा..........!!
🌷ऊर्मिला सिंह
Wednesday 3 October 2018
प्रेम......
प्रेम जीवन का सार हैऔर जीवन का अनुभव भी
प्रेम समय,स्थान की दूरियों को मिटा देता है।भक्ति मार्ग में प्रेम रस में डूब इंसानपरमात्मा से प्रेम की लौ लगा बैठता है।
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जिन्दगी और कुछ भी नही प्रेम की कहानी है!
अश्कों की स्याही से लिखी दर्द की रुबाई है!!
गमों में भी मुस्कुरा कर इश्क तेरी कीमत चुकाई
उम्र-ए इश्क की तासीर में क्यों लिखी जुदाई है!!
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🌷ऊर्मिला सिंह
Wednesday 26 September 2018
हाले दिल ...
दास्ताँने इश्क सुनायेंगे आज सुनिये की न सुनिए!
हाले दिल सुनायेंगे,अश्फाक करिये की न करिये!!
जुर्में वफ़ा करतें हैं ,तेरी नफ़रत को आजमाएंगे!
दर्दे दिल सुनाएंगे ,इनायत करिये की न करिये !!
आईना बना के तुझको, रूबरू किया ज़िगर को!
तेरी तस्वीर है ज़िगर में सजाइये की न सजाइये!!
दर्द के अंधेरे रफ़्ता रफ़्ता आग़ोश में लेने लगे!
अब जिन्दगी में चाँदनी रात करिये की न करिये !
मुंतशिर हुवा ख़्वाबों का नगर ठहरे हुवे हैं गम!
अलविदा से पहले सलाम कबूल करिये की न करिये!
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🌷ऊर्मिला सिंह
Tuesday 25 September 2018
मन ने आवाज दी.....
कभी कभी मन कुछ कहना चाहता है पर कहाँ .....किससे..... तब कागज के निर्जीव पन्नों पर आपने भाओं को उकेर कर........!
मन ने आज आवाज दी
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मन ने आवाज दी आ फिर कोई नज़्म लिखें....,
दर्द से भरी आँखे को शायद सुकून आजाये!
ये जख्मों का ज़खीरा चल कहीं और छुपा दे,
या इन्हें पन्नों के हवाले कर पलको को सहलाये!
भीगीं नज़्म शबनमी बूंदों से लिख लबों पे सजाये.....!
आज फ़िर कोई नज़्म लिखे और गुनगुनाये....!
🌷ऊर्मिला सिंह
Sunday 23 September 2018
शब्द.
शब्द फूल से नाज़ुक पत्थर से कठोर होते हैं ,ये यदि दुसरों को मायूस करते हैं ,तो स्वयम के मन को भी अशान्त करतें हैं ।
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शब्द......
शब्द ,शब्द ही नही व्यक्तित्व का आईना होता है
शब्द भाओं में ढल अर्चना और अरदास होता हैं!
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शब्दों के जलवे न पूछो कभी तीर कभी गुलाब है,
शब्दों से चन्दन की शीतलता का आभास होता है!
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सम्वेदनाओं से अभिभूत शब्द दर्द का उपचार है,
शब्द से नफ़रत तो शब्द ही प्रेम का उपहार होता है!
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🌷ऊर्मिला सिंह
Saturday 22 September 2018
तृष्णा का सागर...
तृष्णा के सागर में लिप्त मानव स्वयम को भी भूल जाता है।
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सागर सी तृष्णा, अंत न जिसका होता
मृग मरीचिका सी तृष्णा जीवन घेरे रहता
मोह ,माया भौतिक जीवन,अपरमित इक्छायें
हे अनन्त!तेरी दिव्य ज्योति मुझे अपनी,
लघुता का पल छिन है आभास कराये!!
मेरे विकल मन की व्यथा तेरी करुणा हर लेती!
वाष्प सदृश्य मेरी तृष्णा बादल में घुलमिल जाती!
जीवन के भोग विलास कृतमता का आभास दिलाते
मेरा रोम रोम तेरे दिव्य ज्ञान से आलोकित होता!
आकांक्षाओं के सागर से उबार सही राह दिख लाते!
हेअनन्त आशान्ति के सागर से महाशन्ति की राह दिखाते!!
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🌷ऊर्मिला सिंह
Friday 21 September 2018
माँ भारती
पावन माँ भारती तेरी धरती.....
शस्य श्यामला है सुन्दर धरती..
हर ऋतु का परिधान पहनती...
प्रकृति नटी नर्तन करती जहाँ...
ऐसी पावन है भारत की धरती !!
हर उत्सव के गीत मनोहर...
पल्लव पुष्पों से सुशोभित...
प्राची और प्रतीची पर बनते..
बहु वर्णों से चित्र मनोहर !!
सैलानिओं के मन को भाती...
ये भारत की पावन धरती...!!
कहाँ सुलभ होता पर्वों का अभिनन्दन..!
कहाँ सुलभ होता ऋतुओं का ऐसा संगम..!
झरनों का कल-कल ,उदधि का गर्जन...
थके नयन, विरही मन होते विश्रामित ..!!
बारम्बार वन्दित है भारत की धरती...!
राम ,कृष्ण ,परमहंस की पावन धरती..!!
🌷 उर्मिला सिंह
Thursday 20 September 2018
सियासत के अंदाज़
सियासतें -अंदाज
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पेट की भूख ने रोटी चुरा के खालिया तो उसे चोर करार कर दिया!
जो मुल्क को डकार गया वो वफ़ादार ही बना रह गया!
मज़हब और इन्सानियत आदमी की फ़ितरत पर रो पड़े!
मज़हब के कंधे का इस्तमाल कर राहोंरस्म का खून कर रहेे!
अपने ज़मीर की बोली लगा रहा आज का इंसान
सियासत में कुर्सियों की हबस ने क्या से क्याबना दिया!
जिन्दगी आसान कब थी मालिक तेरे दरबार में
ईमान की चिता सरे आम जल रही जीना मोहाल कर दिया!!
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🌷ऊर्मिला सिंह
यादों की घटा.....
यादों की घटा.......
आज यादों की घटा दिल पे छाई है!
नैनो की बारिष भी भिगोने आई है!!
भूल जाओ हमे,ये हक तुम्हे दिया हमने!
मेरी बात और है रूह से इश्क किया हमने!!
आज फिर मुकम्मल चाँद नज़र आया है!
आज आँखो में अक्स तेरा उभर आया है!!
दिल जीतने की कला में माहिर तो न थे!
वादा निभाने का हुनर इश्क ने सिखाया है!!
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🌷उर्मिला सिंह
सियासत जे खेल
सियासत का खेल....
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खाये पैसा देश का नव हजार करोड़,
छुपे हुवे विदेश में रहे फुलझड़ी छोड़!
सुन कर फुलझड़ी कूद रहे ज्ञानी सभी,
फैलाते सनसनीें है कसर न कोई छोड़ी!
सियासत दार लड़ रहे ,दे दे ताल ज्ञानी,
सत्य असत्य के पेच में फ़स गई जनता सारी !!
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🌷ऊर्मिला सिंह
तन्हाइयाँ...
तन्हाइयाँ...
साथ है जहाँ , पर चल रहा दिल तन्हा तन्हा,
जख्मों का है कारवाँ चल रहा दिल तन्हा तन्हा!
जो फ़रेब खाये हमने गिला उसका करें क्या
थी इनायत अपनो की संभाला दिल तन्हा तन्हा
चाँद तन्हा,आसमाँ तन्हा सूरज भी है तन्हा तन्हा,
दिल मिला कहाँ किसी का,सारा जहाँ तन्हा तन्हा!
आवारा बादलों सा धुमड़ता रहा ख्याल अपना,
सपने भी कहाँ अपने,छोड़ जायेंगे जहाँ तन्हा तन्हा!
दूर बहुत है मन्जिल, धुंधले हो गये ये मंजर सारे,
धुँवा धुँवा सी फ़ज़ा,लौ चिरागों का थरथरा रहा तन्हा तन्हा!!
वादों की पालकी पर बिठा दिल तोड़ते रहे सदा
चाँद न तारे जुगनुओं को दिल ढूढता रहा तन्हा तन्हा!
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. 🌷ऊर्मिला सिंह
माँ....
माँ शब्द अपने मे पूर्ण होता है,अपनी ह्रदय के इन्ही भाओं की अभिव्यक्ति यहाँ पर व्यक्त किया है।
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तुम्ही बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता..!!
जन्मों से एक ही शब्द मुकम्मल लगता "माँ"..
कैसे उसको शब्दों में बाँधू ,हार गया मन मेरा ..
बिन तेरे जग में मेरा आस्तित्व कहाँ होता...
तुम्ही बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता...!!
माँ!मन के सूने पन की भाषा सुन लेती थी ..
जब भी मन में चींटी से कुछ विचार रेंगते..!
मन के दरवाजे खोल आटा डाल देती थी..
बाहों के घेरे में ले मुझे थपकियाँ देती थी...!
स्नेहिल हाथों का स्पर्श सदा सम्बल देता था..
तुम्ही बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता..!!
माँ ! विस्मृत नही हुई आज भी वो स्मृतियां..
छील कर हाथों पर रखना मटर, मूँगफलियाँ..!
मन के छिलके उतार तूने मेरे अन्तर्मन को जगाया..
मेरी वेदना पर मुझसे ज्यादा तुझको दुख होता..
तुम्ही बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता...!!
तेरी आँखो से समझी दुनियाँ और ये दुनियादारी....
परम् अनुभवी तुम थी और तुम्ही थी प्रथम गुरु मेरी.
कविता नही,चरणों पर अर्पित भावों की श्रदांजलि है
माँ तेरी गोदी का सुख जीवन में कहीं नही पाया.. तुम्ही बता शब्दों में बाँध तुझे कैसे लिख दूँ कविता!!
तुम्हीं बताओ माँ तुम पर कैसे लिख दूँ कविता....!!
🌷ऊर्मिला सिंह
Tuesday 18 September 2018
शूर वीर...
वीरों की कहानी....
अरि का समूल नष्ट करने विघ्नों को जो गले लगाते है
काँटो से घिर कर भी दुश्मन पर विपत्ति बन छाते हैं
लक्ष्या गृह से तप कर जो निकलतें,शूर वीर वही कहलातें
सच के राही पर रंग दुवाओं के अम्बर से बरसते हैं!
****0****
🌷ऊर्मिला सिंह
Monday 17 September 2018
शब्द उसके..
शब्द उसके,.......
शब्द उसके ,पास से ऐसे गुजर गये!
छुपे जख्म दिल के फिर हरे होगये!!
छुवन के एहसास से यादें हुई विकल !
अतीत में खोये यादें सहेजते रह गये!!
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🌷ऊर्मिला सिंह
Sunday 16 September 2018
तन्हाइयाँ .....
तन्हाइयाँ.....
जब से तन्हाइयों में जीने का सलीका आगया ,
तब से खुद को पहचानने का तरीका आगया!!
खामोश लबों की भी अपनी कहानी होती है
जिन्दगी जीने कि येअदा भी निराली होती है!
🌹🌹🌹🌹
🌷ऊर्मिला सिंह
Thursday 13 September 2018
अन्तर्मन.....
अन्तर्मन की निर्झरणी नित....
सच की राह दिखाती है !!
मिथ्या है नाशवान जगत ये ,
प्रेम,भक्ति भाव आराधना,
है एक यही सत्य जगत में,
सकल जगत को बतलाती!!
पर मूरख मन ,
माया ,लोभ, मोह के,
भ्रमित जाल में उलझा....
संवेदना विहीन हो ,
मन की भाषा .....
समझ कहाँ पाता है!!
परोपकार से दूर,
सदा स्वार्थ में अन्धा,
निर्मम कर्म कर जाता है!!
अंत समय जब आता ..
प्रभु की टेर लगाता...
ह्रदय हीनता पर स्वयम को,
धिक्कार लगाता है !!
जन्मों के कर्म....
चल चित्र सरीखे...
आंखों के समक्ष ,
आता है...
दया, करुणा के भाव तभी
उसे समझ में आता है !!
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🌷ऊर्मिला सिंह
Wednesday 12 September 2018
क्षितिज
दूर कही क्षितिज से....लगता है जैसे.....
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धरती व गगन मिले श्रावणी उमंग में।
भीनी भीनी बयार बहे संदली सुगन्ध में।
बज रही ....मन तरँग ....उत्सवों के रंग में।
हरित धरा लहरा रही कृषकों के उमंग में।।
तट व्याकुल भये..... मिलन के आनन्द में।
नृत्य भाव जग रहे.... सागर के आनन्द में।
पात पात सुघड़ हो रहे ..वर्षा के नहान से।
वन हर्षित होरहे पी-पी पपीहा की गूँज से।।
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🌷ऊर्मिला सिंह
Tuesday 11 September 2018
तन्हाइयाँ
तन्हा....तन्हा...
🌾🌾🌾🌾
साथ है जहाँ , पर चल रहा दिल तन्हा तन्हा,
जख्मों का है कारवाँ चल रहा दिल तन्हा तन्हा!
जो फ़रेब खाये हमने गिला उसका क्या करें
थी इनायत अपनो की संभाला दिल तन्हा तन्हा
चाँद तन्हा,आसमाँ तन्हा सूरज भी है तन्हा तन्हा,
दिल मिला कहाँ किसी का,सारा जहाँ तन्हा तन्हा!
आवारा बादलों सा धुमड़ता रहा ख्याल अपना,
सपने भी कहाँ अपने,छोड़ जायेंगे जहाँ तन्हा तन्हा!
दूर बहुत है मन्जिल, धुंधले हुवे मंजर ये सारे,
धुँवा धुँवा है फ़ज़ा,लौ चिरागों का थरथरा रहा तन्हा तन्हा!!
वादों की पालकी पर बिठा दिल तोड़ते रहे सदा
न चाँद न तारे जुगनुओं को दिल ढूढता तन्हा तन्हा!!
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. 🌷ऊर्मिला सिंह
यादों की बदली
यादों की बदली
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आज यादों की घटा दिल पे छाई है!
नैनो की बारिष भी भिगोने आई है!!
भूल जाओ हमे,ये हक तुम्हे दिया हमने!
मेरी बात और है रूह से इश्क किया हमने!!
आज फिर मुकम्मल चाँद नज़र आया है!
आज आँखो में अक्स तेरा उभर आया है!!
दिल जीतने की कला में माहिर तो न थे!
वादा निभाने का हुनर इश्क ने सिखाया है!!
🌹🌹🌹🌹
🌷उर्मिला सिंह
मुक्तक
आज न संस्कार है न आपस में प्रेम अजीब सी दुनिया होरही.......एक मुक्तक ....
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जमाना बदल गया या हवा का रुख बदल गया
लगता है यूँ जैसे हर शख्स का चेहरा बदल गया
मान अभिमान की खाईंया गहरी होती जा रही
आज हर शख़्स के आँखो का पानी मर गया!!
🌷उर्मिल
Friday 7 September 2018
पलकों के मोती......
पलकों के मोती....
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पलकों से मोती चुनूँ
नैना दियो बहाय
हार गई अँसुवन से
कर के लाख उपाय!
सिसक रही हैं हसरते,
बैठी हूँ आँख चुराये
खुद को ढूढ रहेे हम
बीत गये दिन सारे!
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.🌷ऊर्मिला सिंह
Thursday 6 September 2018
मीत मेरे.....
मीत मेरे.....
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मीत मिले..
दो फूल खिले..
बगिया महकी..
जीवन सुरभित..
अरमान जगे..
नैन लजीले..
कुछ शरमाये..
कुछ सकुचाये..
सैनन बात कहे..!!
हम एक हुए..
प्रीत बंधी..
है रीत यही..
रात हसीं...
जज़्बात बहे..
दिल हार गई...!!
कंगना खनके..
पायल झनके..
बिंदिया चमके..
मन मीत मेरे...
प्राण मेरे...
प्यार मेरा..
श्रृंगार मेरा..
दम से तेरे..!!
हमराज ...मेरे..
पथ एक हमारे..
सुख.....दुख
साथ जियें हम..
जनम....जनम..
प्रीत की गागर..
तुम ही छलकाओ..!!
****** 🌷उर्मिला सिंह