एक गाय की आत्म कथा ..........!!
आज मैं एक खूँटे से दूसरे खूंटे में बंधी !
पुराने रिश्तों को छोड़ आने का गम ,
नये रिश्तों से जुड़ने की मीठी खुशी ,
गले में बड़ी- बड़ी मोतियों की माला,
उसमे एक प्यारी सी घण्टी पहन मैं,
जब गला घुमाती मधुर सी आवाज आती ,
मैं अपने नए रूप पे इतराती फूली न समाती !
सूर्य की किरणों के संग गुन - गुनाता ,
घर का मालिक बर्तन में दूध निकालता ,
उत्साह से जै गौ माता कहता चला जाता ,
नित्य का यही क्रम ,खाने की भी कमी नही ,
बच्चे भी आ मुझे प्यार से चूमते खेलते ,
इतने आदर-सत्कार -प्रेम पा मैं फुली न समाती !
जिन्दगी बीतती रही , हरी दूब भी खाने को मिलती !
पर खुशी के पल , पंख लगा कर उड़ चला ,
उम्र बढ़ती गई , दो बाछा एक बाछी भी दिया ,
पर दूध भी उम्र के साथ - साथ कम होने लगा ,
एक दिन वह भी आया जब मेरा सौदा होने लगा .
निरीह , कमजोर खाना हलक के नीचे नजाता!
खरीद-फरोख्त की बातें चलीं ,बिछुड़ने का दर्द होने लगा !
निरीह प्राणी थी पर प्यार की भाषा तो जानती थी,
इंसानो की दुनीयाँ में प्यार की होती कीमत नही ,
मैं विनती करती रही , अपने दूध का वास्ता देती रही,
रोती रही कलपती रही कि अपने से अलग न करो
बाछे दिये हैं , उन्हें बेच कर अमीर होजाओ गे !
माँ का दर्जा देते रहे जिसे , वही आज गिड - गिड़ाती रही !
मेरा दिया गोबर भी तुम्हारे लिए खाद के काम आएगा !
तुम्हारे दरवाज़े पर मरूँगी मेरी हड्डिया भी काम आए गी ,
पर तूँ जरा भी पसीजे नहीं , मैं रोती रही , बिलखती रही ,
तुमने उस कसाई के हाथ चंद पैसों के लिए मुझे बेचदिया ,
मैं तड़प उठी , चिघारने लगी पर तुम रुपये गिनते रहे !
मैं ज़मीन पर गिरी छटपटाती रही , कसाई हाथ पैर बाँधता रहा !
मैं हाथ जोड़े दुहाई देती रही पर तुम्हे रहम न आई ,निर्दयी बने रहे,
मेरी आँखें बंद होने लगीं, तुम्हारी गौ माता जिसके चरण तुम छूते ,
वही आज निर्दयी कसाई के हाथों बिक गई .........!!
पर एक प्रश्न है ....? किसे कहुँ ....?
तुम्हें .....!! या उसे ....' कसाई '.......॥
🌷उर्मिल सिंह