Sunday, 30 August 2020

गज़ल

वक्त का इंतज़ार कर वक्त गूँगा नही मौन होता है!
वक्त की बोली जब निकले पूरी ललकार से निकले!

रण में विजयी होना है गर लक्ष्य साध कर निकलें
बुलंद हौसलों में अपने  विजय की धार से निकलें!!

अभिमानी ताकत फ़रिश्तों को भी शैतान बनाती है
दिलों पर राज करना हो ,नम्रता के शृंगार से निकलें!

चिराग तूफ़ानों में जला सको तो राहों पे आगे बढ़ो
बचाना है गर गद्दारों से,तूफ़ान में पतवार  से निकलो! 


उसूलों की ज़मीन बंजर होगई है ज़माने में 
 नई पौध के वास्ते,उसूलों की बीज लेके निकलो!

           ।।।     उर्मिला सिंह
                  








Monday, 24 August 2020

बाढ़ की विभीषका दानव की तरह मुंह फैलाये जन जीवन को त्रस्त कर रही है।उस समय की मनःस्थिति को चित्रित करती हुई रचना.....

कहीं बारिष का कहर 
कहीं सूखे से त्रस्त जीवन
तेरी माया तूं ही जाने भगवन
कौन समझा ग़रीबी का सफऱ।।

झोपड़ी कच्चे मकान ढह गये
दाने-दाने को सब तरस रहे
हर सांस इस सैलाब में बह रही
नज़र आता नही किनारा कोई।।

उफ़नती नदिया गहराता संकट
दिल डूबता जाता है प्रति पल
कैसे बचाऊं बहती गाय की बछिया
सिर पर बैठी अपनी छोटी सी मुनिया।।

मुट्ठी भर चने सत्तू की पोटलीसाथ लाई हूँ
गहराते तिमिर में हर क्षण डूबती जा रही हूँ
सामने से बहती लाश किसी बच्चे की दिखी
सभी की सांस पल भर को थम सी गई.......।।


बेजान होगई है जिन्दगी सबकी
विस्मृति होगई है सावन कजली
बचे भी तो अन्न के दानों से महरूम हो जाएंगे
बह गईं खुशियां हजारों परिवार की
बच गई बदनसीबी ही बदनीसीबी सबकी।।
          *****0*****
         उर्मिला सिंग

Wednesday, 19 August 2020

फुटपाथ बिछौना है....

जहां फुटपाथ बिछोना,आसमां छत है
       वे जिन्दगी की क्या बात करे।

उम्र तमाम हुई ,तन में साँस अभी बाकी है
आंधी पानी ठंढ सहे ,खेल मौत का बाकी है
सूरज का भी गुस्सा झेले, अपनो  की उपेक्षा.....
हर मौसम ने उजाड़ा, औरों की ठोकर बाकी है।

जहां फुटपाथ बिछौना आसमां छत है
    वे जिन्दगी की क्या बात करे।

काश हमारे भी आँगन में,सूर्य मुखी खिलता
तन की थकन मिटाने को,कोई बिछौना होता
पांव के नीचे धरती सर पर  छत  अम्बर का.....
किस्मत में 'तूँ' सूखी रोटी नमक प्याज ही लिखता।

       जहां  पेट भूखे,सोने का आदी है
        वे  जिन्दगी की क्या बात करे।

यह दुनिया जिन्दी लाशों से बनी दुनियां है
जहाँ मौत का कुंआ,होती बदबूदार गलियां हैं
जहाँ भूख बिलबिलाती ,मौत ही एक दवा है
यहांअग्नि जरूरी नही,क्षुधा,अग्नि,से जलती चिता है।

    जहां सिकुड़ी हुई जिन्दगी सासे गिनती है
         वे सपनो की क्या बात करें।।
        

                      उर्मिला सिंह




Monday, 17 August 2020

जीवन क्या होता है.....

मर कर किसने देखा है जीवन क्या होता है
जीवन जी कर देखो जीवन गुलजार होता है।।

खिलता है फूल काटों में काटों की फिक्र नही करता
सबके  सुख -दुख में सदा भागीदार होता है।।

धूप -छाँव सुख-दुख जीवन-मरण एक दूसरे के पूरक हैं
इनसे डरना कैसा ये तो जीने की राहों का यार होता है।।

माना कि आदर्शो की राहोँ में दुश्वारियां बहुत हैं 
चल कर तो देखो जीवन संतुष्ठियों का भरमार होता है।।

देशभक्ति से बढ़कर धर्म नही,देश प्रेम से दूजा प्रेम नही
इस प्रेम में जो डूबा वह इस जन्म का अवतार होता है।।

                   उर्मिला सिंह










 

 
 




Friday, 14 August 2020

बड़ा नीक लागे हमार भारत देशवा.....

बड़ा नीक लागे ,हमार भारत देसवा...

गंगा बहत हैं , जमुना बहत हैं..
और  बहै सरयू क  निर्मल धारा....
बड़ा नीक लागै.....

सिरवा पे सोहेला मुकुट हिमालय...
अरे  पउवॉ पखारे हिन्द  सागरवा...
 बड़ा नीक लागै ....

भारत  देसवा क वीर  महतारी....
ओकरे  दुधवा में बहै देशभक्ति क ओजवा...
बडा नीक लागै ......

देशवा के खातिर आपन जिनगी लुटइलैं.....
मां भारती  खातिर सिरवा कटइलैं...
तिरंगा के खातिर हो गइलन कितने शहीदवा.....
बड़ा नीक लागै ....

अलग अलग  बोली , अलग अलग भाषा....
गीता , रामायण ,महाभारत पढै सब ....
अरे पंडित उच्चारें  पोथी पतरा और  वेदवा......
बड़ा नीक लागै , हमार भारत देशवा ......


छब्बीस जनवरी ,पन्द्रह अगस्तवा.....
लागेला हमके  सबसे नीक त्योहरवा...
तिरंगा फैलाई के गाइला जनगड़ मन...
कहीला  'जय भारत माता,जय भारत देशवा....
बड़ा नीक लागै ,हमार भारत देशवा.....

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Friday, 7 August 2020

व्यथा के पन्नो पर......

व्यथा के पन्नो पर......

सदियों के बाद....
समझ में आई बात
व्यथा के पन्नों पर
किसने लिख दी रात।।

पत्थर की  दीवारों पे
किसने नाजुक फूल उकेरे
तन्हाई की भींगी रातों में
क्यों यादों के मोती चमके।।

कुछ लाल कनेर सरीखे
आशाओं  के  स्वप्न पले
व्यथित ह्रदय समझ न पाया
कब लहरों के संग बहे।।

उर की मौन व्यथा पन्नो ने समझा
मन के उद्गारों को शब्दों ने अर्थ दिया
मन्द मन्द अधरों की मुस्कानों ने
मुझसे जीवन का सत्य कहा।
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                      उर्मिला सिंह

इंसानियत का उजाला हो तो बेहतर है.....

दिल की गलियों में इंसानियत का उजाला हो तो बेहतर है
करुणा,प्रेम रस से ह्रदय सिंचित हो तो बेहतर है।

कलह से भरा घर भला खुशियों से आबाद कहाँ होता है
रिश्तों में खुसबू-ए वफ़ा त्याग की बुनियाद हो तो बेहतर है।

किसी के अवगुणों की चर्चा में वक्त जाया नही करते
अपनी कमियों पर  भी एक नजर डालो तो बेहतर है।

ख्वाइशों के चक्रव्यूह में उलझना नादानी के सिवा कुछ नही
सामर्थ देख कर अपनी गठरी बाधते तो बेहतर है।

गुज़रे वक्त के दामन पर लिखी कहानियां राहें सुझाती हैं
सम्भल कर चलते ,गद्दार धोखे बाजों से तो बेहतर है।।

खामोशियाँ भी तन्हाइयों से बहुत कुछ बता जाती हैं
बस समझने वाला प्यारा सा एक दिल हो तो बेहतर है।।

               उर्मिला सिंह



Thursday, 6 August 2020

जिह्वा पर प्रभु नाम रहे.......

जिह्वा पर प्रभु  नाम  रहें  , नैनो में  रघुनाथ
सिय की छवि ह्रद में बसे, लखन हनु रहें साथ।।

सत्कर्मों में मन लिप्त रहे,जीवन का हो ध्येय
दीन  दुखी के  कष्ट हरें, कभी न सोचे हेय।। 

प्रीत डोर ऐसी बन्धे ,जैसे चाँद चकोर
दूर से निरखत रहें,प्रीत करें पुरजोर।।

मिट्टी  चन्दन है  देश की , माथे  लेउ  लगाय
देश हित प्राण उत्सर्ग हो,जन्म सफल होजाय।।

सुख दुख खेल जीवन का,फँसा हुआ हर कोय
कर्म क्षेत्र यहीं तुम्हारा ,बिन कर्म मुक्ति ना होय ।।      
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                                        उर्मिला सिंह          


Tuesday, 4 August 2020

पलके बिछी हैं राहों में,आज सिया राम आएंगे.....

 सजी है अयोध्या आज , राजा राम आएंगे...
 हजारों दीप जगमगाएंगे , राजा राम आएंगे !

 अयोध्या  के कण - कण में  राम बसते हैं...
 ह्रदय में सिया राम करुना निधान बसतें है !
 पर्ण कुटी के बनवासी,सिंहासन पर सुशोभित होंगे..
 सिया राम की जय कार से,आनन्दित नर नारी होंगे !!
     
  हजारों दीप जगमगायेंगे , राजा राम आएंगे...

 बन-बागों में बसन्त बिगरे,झालर बन पुष्प बिहसेगे ..
आस्थाओं की इटों से , शिलान्यास का पूजन करेंगे !
 कार सेवकों के उत्सर्ग की गाथाएं ,हर ईंट सुनाएगा.
 जीवन मुल्यों का समावेश कर राम राज्य आएगा।।

  हजारों दीप जगमगाएंगे , राजा राम आएंगे......
      
 मर्यादा की बुनियाद ,विश्वासों की  सीमेंट लगेगी..
 राम नाम की महिमा का पत्थर-पत्थर उद्घोष करेगें!
 शिल्पकारों की कारीगरी हमारी संस्कृति उकेरेगे...
  विश्व को मर्यादापुरुषोत्तम की अतुल गाथा बताएंगे!!
       
  हजारों दीप जगमगाएंगे , राजा राम आएंगे....

  सरयू का यह नीर नहीं , भावों का उद्गम सागर है..
  झूमती हर्षित,सरयू की लहरे,श्री राम आगमन है!
  वर्षो की तपस्या साकार हुई, आज श्रीराम आएंगे....
  सिया लखन समेत रघुनन्दन,नैन निहारी अघाएँगे

   हजारो दीप जगमगाएंगे ,आज राजा रामआएंगे....
   राहों में पलके बिछाएं हैं , आज सिया राम आएंगे!!

                                        उर्मिला सिंह
       
       
       
        
       
      
    
        
        
      
      
      
     
     

Sunday, 2 August 2020

स्वासों के रहते तुम अपना पद चिन्ह बना दो....

स्वासों के रहते तुम अपना पद चिह्न बना दो....

 कर के कुछ ऐसा जग में दिखला दो......
 हर दिल में तुम अपनी पहचान बना लो
ओरों के पदचिन्हों पर चलने के आदी हो.....
स्वासों के रहते ही तुम अपना पद चिन्ह बना दो।।
 
 रेत के टीले सा कर्म नही हो .....
 जो आज रहे कल  ढ़ह जाए......
 खुशबू उसकी ऐसी हो
 जन मानस में रच बस जाए
 उस खुसबू से पद चिन्ह बनेगा तेरा
 वर्षों तक जग याद रखेगा उसको।।
 
  स्वासों के रहते तुम अपना पद चिन्ह बना दो।।

                        उर्मिला सिंह