Thursday, 19 December 2019
Wednesday, 18 December 2019
कर्म ही तेरी पहचान है
Monday, 16 December 2019
विवशता मन की
Sunday, 15 December 2019
हंगामा....
Saturday, 14 December 2019
प्रीत की रीत....
राग अनुराग की राहों में.....
Friday, 13 December 2019
अलाव जलता....
Wednesday, 11 December 2019
भूखे पेट की पीड़ा......
Friday, 6 December 2019
नारी की विवशता........
अहसास......
जख्मों को...
समय की रेत पर.......
Thursday, 5 December 2019
प्याज रानी...
Tuesday, 3 December 2019
आज के मसीहा
खंड खंड में
Monday, 2 December 2019
मन ही मन उसे पुकारूं.....
बच्चों को कुछ दिन बच्चा रहने दो.....
Sunday, 1 December 2019
सुनहरा शहर अब कहीं खो गया.....
Friday, 29 November 2019
हसीन ख्वाबों के बिस्तर से.....
Wednesday, 27 November 2019
न पूछ ऐ जिन्दगी क्या बचा पास है...
गरीबी
Sunday, 24 November 2019
हकीकत......
Thursday, 21 November 2019
राजनीति का अजब गजब हाल.......
Wednesday, 20 November 2019
बिटिया रानी
याचना......
Saturday, 16 November 2019
आहट......
Thursday, 7 November 2019
मौन...... साँस में प्रार्थना मौन है सृष्टि के संग मुस्कराना भी मौन है.....
Sunday, 3 November 2019
हल्की हल्की सर्द हवाऐं....
Friday, 1 November 2019
गरीबी......
Saturday, 26 October 2019
दिपावली
Thursday, 10 October 2019
ख़ामोश होती हुई सासों ज़रा धड़कनों का शोर सुनने की मोहलत दो
जीवन कुछ भी नही..... पल दो पल की कहानी है.......
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ख़ामोश होती हुई सांसों
ज़रा धड़कनों का शोर
सुनने की मोहलत दो
छलक पड़ी आंखों को
ज़रा सांत्वना के दो शब्द कहने दो
फिर न जाने कब मिलेंगे
वेदना के पुष्प एहसासों को अर्पित करने दो!!
यादों की कितनी ही स्याह कतरने इकट्ठी हैं
उन कतरनों को जरा जोड़ने दो
कुछ के डंक की पीड़ा, ज़ख्मी ह्रदय को
एक ही साँस मे पीने दो.......!!
हसरतों के धागे बुनते रहे.....
पत्थरों के नगर में सदा....
आज बस ख़ामोश बदन से
दुआ के कुछ फूल पत्ते झरने दो!!
ख़ामोश होती हुईं सासें
ज़रा धड़कनों का शोर
सुनने की मोहलत दो........
उर्मिला सिंह
Monday, 23 September 2019
जिन्दगी से हम दूर होने लगते हैं......... जब
जिन्दगी से हम दूर होने लगते हैं......... जब
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जिन्दगी से हम दूर होने लगते ........ जब.......
हम अपनी आदतों के वश में हो जातें हैं
जिन्दगी में कुछ नयापन शामिल नहीं करते
भावनाओं को समझ कर भी अनजान होतें हैं
या अपने स्वाभिमान को कुचलता देखते रहते
तब जिन्दगी. से हम दूर होने लगते........हैं
जब किताबों का पढ़ना बन्द होने लगता है
जब ख्वाबों का कारवां दम तोड़ने लगता है
मन की आवाजों की गूंज जब सुनाई नहीं पडती
अपने आप ही जब आंखे नम होने लगती है
तब जिन्दगी से हम दूर होने लगते........ हैं
जीवन रंग विहीन हो स्वयम से जब दूर होने लगता
अपने काम से जब मन स्वयम असन्तुष्ट रहने लगता
मन की दशा जब कागज पर उकेरे मोर सी होती
जो बरसात तो देखता पर पँख फैला नाच नहीं सकता
तब जिन्दगी से हम दूर होने लगते हैं.........
🌷उर्मिला सिंह
Thursday, 19 September 2019
एक अनुभूति जो ह्रदय के द्वारे दस्तक देती है.......
सजदे में सिर झुका..... मन में ज्वार उठा.......
हम सजदों में हसरतों के ख़ातिर गिरते रहे
तूँ नित्य नये रूपों में मुझे रोमांचित करते रहे
बन्द पलकों में मेरे, नये नये रुप दिखाते रहे
आज ये कैसी चेतना मनमें जागृति हुई
हसरतों के पँख मैंने स्वयम ही कतर डाले
आँखों के सभी आवरण हटने लगे
जीवन आनन्द से ओतप्रोत हो उठा
सजदे में सिर मेरा तेरे चरणों में झुक गया!!
🌷उर्मिला सिंह
नई पीढ़ी और उनकी सोच..........
वृद्ध आश्रमों में माँ बाप नई पीढ़ी की सोच
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अजब दस्तूर है ,
अब इस जहाँ का ,
ज़िन्दगी आखिरी सीढ़ियों पर ,
माँगती है सहारा ,
वृद्ध आश्रमों का ।
जिन्हें कलेजे से लगाया ,
आँखों में बसाया ,
ममता नें हर ,
मंदिर-मस्जिदों के चौकठ पर,
दुआओं के लिए आँचल को फैलाया,
वहीँ हो गए आज बेगाने क्यों ?
ये कैसी विडम्बना है ?
ये कैसी हवा है ?
जिन बाँहों नें झुलाया,
थपकियाँ देकर सुलाया ,
तुम्हे सुखी देखने को ,
दुःख को भी गले लगाया;
उन्ही को तुमने ,
तूफानों के हवाले कर दिया।
निर्दयता की तलवार ने ,
भावनाओं का क़त्ल कर दिया ;
ममता को बक्शा नहीं ,
सूली पे चढ़ा दिया ।
उड़ा डाली धज्जियाँ ,
भारत की संस्कृति-संस्कार की।
जीवन गुजारा था जो तुमने ,
जिनकी छत्र-छाया में ,
वो कीमत माँगते नहीं ,
अपने दूध की तुमसे ,
केवल प्यार माँगते है,
सम्मान माँगते है ;
कुछ दिन तुम्हारे साथ ;
जीने का --अधिकार माँगते हैं।
××××× ×××××
आज के नवयुवक नवयुवतियों को समर्पित है!
Friday, 13 September 2019
एक सैनिक कि पत्नी की व्यथा जो खामोशियों के साये मेंढकी रहती है।
ख़ामोशी.....ख़ामोशी.....बस......ख़ामोशी
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कुछ टूटा.....कोई आवाज नहीं.....बेइंतहा दर्द पर आह नहीं
सिर्फ और सिर्फ एक ख़ामोशी......ख़ामोशी........
अश्क झरे आंखो से पर अधरो से सिसकी भी नहीं.....
दिल का दर्द कहें किससे ख़ामोश हुई जिन्दगी सारी.....
खामोशियों के जाल में जकड़ी है जिन्दगी.......
तुम क्या रूठे दुनिया रूठ गई मेरी.........
पर आत्मा मेरी सरहद पर भटकती रहती है
जहां तुम शहीद हुए थे........
शरीर ही हमारा है आत्मा तो तुम्हीं में बसती थी....
शहीद की अर्धांगिनी विधवा होती नहीं.....
ललाट का सिंदुर भले मिट जाता है ......
पर देश भक्ति की लालिमा से पत्नी का .....
भाल चमकता रहता है सदा .....
खामोशियों के आवरण से ढका
उसकी वीर गाथा सुनाता रहेगा सदा....
🌷उर्मिला सिंह
Wednesday, 11 September 2019
गौ माता जिसे हम पूजते हैं चरण छूते हैं .......उसी की आत्म कथा
एक गाय की आत्म कथा ..........!!
आज मैं एक खूँटे से दूसरे खूंटे में बंधी !
पुराने रिश्तों को छोड़ आने का गम ,
नये रिश्तों से जुड़ने की मीठी खुशी ,
गले में बड़ी- बड़ी मोतियों की माला,
उसमे एक प्यारी सी घण्टी पहन मैं,
जब गला घुमाती मधुर सी आवाज आती ,
मैं अपने नए रूप पे इतराती फूली न समाती !
सूर्य की किरणों के संग गुन - गुनाता ,
घर का मालिक बर्तन में दूध निकालता ,
उत्साह से जै गौ माता कहता चला जाता ,
नित्य का यही क्रम ,खाने की भी कमी नही ,
बच्चे भी आ मुझे प्यार से चूमते खेलते ,
इतने आदर-सत्कार -प्रेम पा मैं फुली न समाती !
जिन्दगी बीतती रही , हरी दूब भी खाने को मिलती !
पर खुशी के पल , पंख लगा कर उड़ चला ,
उम्र बढ़ती गई , दो बाछा एक बाछी भी दिया ,
पर दूध भी उम्र के साथ - साथ कम होने लगा ,
एक दिन वह भी आया जब मेरा सौदा होने लगा .
निरीह , कमजोर खाना हलक के नीचे नजाता!
खरीद-फरोख्त की बातें चलीं ,बिछुड़ने का दर्द होने लगा !
निरीह प्राणी थी पर प्यार की भाषा तो जानती थी,
इंसानो की दुनीयाँ में प्यार की होती कीमत नही ,
मैं विनती करती रही , अपने दूध का वास्ता देती रही,
रोती रही कलपती रही कि अपने से अलग न करो
बाछे दिये हैं , उन्हें बेच कर अमीर होजाओ गे !
माँ का दर्जा देते रहे जिसे , वही आज गिड - गिड़ाती रही !
मेरा दिया गोबर भी तुम्हारे लिए खाद के काम आएगा !
तुम्हारे दरवाज़े पर मरूँगी मेरी हड्डिया भी काम आए गी ,
पर तूँ जरा भी पसीजे नहीं , मैं रोती रही , बिलखती रही ,
तुमने उस कसाई के हाथ चंद पैसों के लिए मुझे बेचदिया ,
मैं तड़प उठी , चिघारने लगी पर तुम रुपये गिनते रहे !
मैं ज़मीन पर गिरी छटपटाती रही , कसाई हाथ पैर बाँधता रहा !
मैं हाथ जोड़े दुहाई देती रही पर तुम्हे रहम न आई ,निर्दयी बने रहे,
मेरी आँखें बंद होने लगीं, तुम्हारी गौ माता जिसके चरण तुम छूते ,
वही आज निर्दयी कसाई के हाथों बिक गई .........!!
पर एक प्रश्न है ....? किसे कहुँ ....?
तुम्हें .....!! या उसे ....' कसाई '.......॥
🌷उर्मिल सिंह
Tuesday, 10 September 2019
अंतर्मन की लहरों से निकली कुछ अनुभूतियां.....
मिट्टी का तन........
🌾🌾🌾🌾🌾
कितने आये और चले गये
कितने बने राजा और रानी
यादों के गुलशन में खिले वही
दी राष्ट्र हित में जिसने कुर्बानी!!
🍂🍁🍂 🍂🍁🍂 🍂🍁🍂
मिट्टी का तन मिट्टी में मिल जाएगा
होगा कोई एक इतिहास रचा जाएगा
सभ्यता का आवरण ओढ़े बैठे लोग यहां
हत्यारा भी आज यहां शरीफ कहलाएगा!!
🍂🍁🍂 🍂🍁🍂 🍂🍁🍂
सत्य का द्वार अध्यन नहीं अनुभूति है
सत्य को जानना तपस्चर्या से कम नहीं है
चैतन्य का सागर हृदय में निरंतर गतिमान है
इसे पहचानना ही सत्य की पहचान है !!
🍂🍁🍂 🍂🍁🍂 🍂🍁🍂
छोटी सी जिन्दगी में व्यवधान बहुत है
तमाशा देखने वाले यहां इंसान बहुत हैं
जिन्दगी का हम स्वयम ही बना देते तमाशा
वर्ना खुशनुमा जिन्दगी जीना आसान बहुत हैं!!
🍂🍁🍂 🍂🍁🍂 🍂🍁🍂
🌷उर्मिला सिंह
Monday, 9 September 2019
ज़िन्दगी आहिस्ता आहिस्ता ढलती है......
शाम का समय.....
ढलते सूरज की लालिमा....
आहिस्ता- आहिस्ता......
समुन्द्र के आगोश में.....
विलीन होने लगा......
देखते -देखते.....
अदृश्य होगया........
जिन्दगी भी कुछ ऐसी ही है.......
मृत्युं के आगोश में लुप्त होती ....
इंसान के वश में नही रोक पाना.....
लाचार ....बिचारा सा......इंसान
फिर भी गर्व की झाड़ियों में अटकता.....
अहम के मैले वस्त्रों में
सत्य असत्य के झूले में झूलता....
जीवन की अनमोल घड़ियां गवांता......
जीवन की उलझनों में उलझा
सुलझाने की कोशिश में
पाप पुण्य की परिधि की...
जंजीरों में जकड़ा
निरंतर प्रयत्नशील
अंत समय पछताता हाथ मलता.......
कर्मों का बोझ सर पर लिए अनन्त में.....
विलीन हो जाता......
जीवन का यथार्थ यही है.....शायद
जो हम समझ नही पाते हैं.......
🌷उर्मिला सिंह
Thursday, 29 August 2019
स्वार्थ की दुस्साहसता देख भींग उठते नयन....
स्वार्थ की दुस्साहसता देख भींग उठते नयन.....
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चहुँओर स्वार्थ की दुस्साहसता देखते तरल नयन
किसे अपना कहें, लोभ से सना सभी अपना पन
मुरझाएे दिखते विटप- वृक्ष, उड़ रहे पीले से पात
किसे फुर्सत जो देखे , बिखरते सतरंगी नेह नात!
छल-कपट में लिपटी दुनिया मु्रझाये जीवन उसूल
दया-भाव हवन हुए, हवन हुए मनके खिलते फूल
मिटी अनमोल संस्कृतियाँ , संस्थाएं आडम्बर कारी
हिंसा अमर्ष जाति - पात में भटक रही दुनिया सारी!
आध्यात्मिक जिज्ञासा दम तोड़ती,विकृति हुई वाणी
भाव शून्य इंसानियत हुई, किसकी है ये जिम्मेदारी
हर आँगन में दीवार खड़ी,हुआ है भाई-भाई का बैरी
सोने की मृग सी राजनीति,अभिमान ग्रसित है पीढ़ी!
मुड़ कर एक बार पुनः देखें,हमअपना निज अतीत
अनमोल वनस्पतियां थी माटी गाती थी अमर गीत
यह देश विलक्षण,है ज्ञान यज्ञ की अद्भुत यज्ञशाला
राम-कृष्ण-गौतम थे जन्मे,जहां पिया मीरा ने विष प्याला!
****0****
🌷उर्मिला सिंह
Wednesday, 28 August 2019
अनकही व्यथा जब पन्नो पर बिखरती है....
कुछ धुवां उठा.... कुछ जख्म जले.....
******************************
पन्नो पे बिखरते ही
मायूस पड़े ........
लफ्जों में मानो जान आगई
कुछ सासें धड़कने लगी
जीने का अरमान जगा
दिल की जलती चिंगारी में
कुछ धुवां उठा......
कुछ जख्म जले
राखों के ढेर पर
कुछ नज़्म लिखे......
कुछ हमने पढ़ा......
कुछ तुमने पढा....
🌾🌾🌾🌾
🌷उर्मिला सिंह
Sunday, 18 August 2019
तस्वीर तेरी आँखों में बसाया.......
जब जब बन्द किया नैनों को प्रिय तुमको ही मुस्काते पाया
तस्वीर तेरी जब जब देखा मन ने तुझको तुझसे ही चुराया
प्रेम भरी पाती लिख -लिख स्वयम को स्वयम ही समझाती,
बीते पलों की यादों कोखामोशी की चादर में दिल ने छुपाया!
🌷उर्मिला सिंह
Saturday, 17 August 2019
कश्मीर की महकती घाटियां .......
आकाश में सितारों की छटा बदल गई है
डरी घाटियां आज़ादी के जश्न में चहक रही हैं!!
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जो चिड़िया पिंजरे में बन्द थी आजाद होके चहक रही है
आज शिकारे नही जैसे पुष्पवाटिका झीलों में तैर रही हैं!
ज़रा आके तो देखिये धरती का ताजा स्वर्ग अब यहीं हैं ,
स्नेहिल रक्षाबंधन के पर्व से आज घाटियां महक रहीं हैं!
🌷उर्मिला सिंह
Friday, 16 August 2019
नेकियों का सिक्का लुप्त होरहा....
अब पत्थरों सी जलने लगी है जिन्दगी
नेकियों का सिक्का लुप्त होरहा ....
अब रिस्ते जल्दी चटकतें हैं....
अब भरोसे जल्दी टूटतें हैं....
सच झूठ में जल्दी बदलते हैं....
जानतें है क्यों.........?
क्यों कि......
स्थायित्व का अब कोई मूल्य नही रहा.....!!
🌷 उर्मिला सिंह
Thursday, 15 August 2019
लाल चौक से लाल किले तक तिरंगे से रंग जाएगा,आज़ादी के इस पर पर्व पर अब सारा भारत मुस्कुराएगा।
आज पत्ते चिनारों के हंस रहे हैं झुमके.......
सिसकती वादियां महकती केसर के फूल से...
मंदिरों में बजती घण्टियाँ देरहीं आशीष हैं दिशाएं सजाए थाल गारही मङ्गल गीत हैं! मांभारती के मुखमण्डल पर लालिमा छाई
हुआआजाद कश्मीर आज जन्नत लौट आई !
सदियों से बैचेन गले मिलने को भारत वासी
अधूरी थी आजादी,अभी तकआज पूरी हो गई!!
सही माने में शहीदों को श्रदांजलि आज मिल गई।
खण्डित भारत अखण्ड हुआ तिरंगा भी आज मगन हुआ
एकबार फिर भारत की किस्मत जागी,
हुई विशेष आज भारत की आजादी!
लाखों जतन के बाद पाया है तुझे हमने.......
प्रेमाश्रु नयन विकल है मिलने को तुमसे
गीले शिकवे भूल आज फिर एक हो जाएं
सच्ची श्रदांजलि अपने पूर्वजों को चढ़ाएं
भटकती रूहें कह रही है सिसकतीआज....
गुजरेगी फिजाओं में फिर मोहब्बत के तराने
सुनसान घरों को दीवार आवाज देती हैं तुम्हे, लौट आओ फिर घर छोड़ कर जाने वालो।
केसर की क्यारियां झील के किनारेयाद करते हैं
सूफ़ी,सन्त बाबा ऋषियों सभी दरगाहों से.... आवाजआती है.....लौट आओ जाने वालों
🌷 उर्मिला सिंह
भारत माता की जय
Monday, 12 August 2019
कविता मैं जान न पाई तुम क्याहो......
-*-* कविता मैं जान न पाई *-*-
कविता, मैं जान न पाई,
तुम क्या हो !
क्या तुम एक सपना हो !
या उर सागर की,
उठती - गिरती लहरें हो ?
जीवन की सच्चाई हो,
या भावों और उमंगों की -
बहती दरिया हो !
मैं जान न पाई तुम क्या हो ?
कविता, क्या तुम...!
जीवन का अनुभव हो !
अंतर-मन की पीड़ा हो !
या सच - झूठ बनाने की -
रखती अद्भुत क्षमता हो !
मन के घावों को सहला ,
निर्झर्णि सी बहती -
या सुख की अभिव्यक्ति हो !
मैं जान न पाई तुम क्या हो ?
पर कभी - कभी मुझको...
ये भी लगता है... तुम -
मन - आत्मा की कुंजी हो -
या जीवन के उतार - चढ़ाव...
दर्शाने वाली सीढ़ी हो !
मन के कोमल भावों को ,
उद्ध्रित करती लेखनी हो...
या अनुरागमयी सखी हो !
फ़िर भी ये सच है...
मैं जान न पाई तुम क्या हो !!!
🌷उर्मिला सिंह
Sunday, 11 August 2019
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा समतल जब तक राह न होगी....
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा......
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युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा जब तक समतल राह न होगी...
खुल कर जब तक जन मन में भाई चारे का भाव न होगा,
ऊँचे महल अट्टालिकाओं की ध्वस्त जब तक शान न होगी!
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा जब तक समतल राह न होगी .......
सिहासन से वंशवाद की जब तक रीत न बदलेगी,
चोर लुटेरे गुंडों के हाथों में जब तक जंजीर न होगी!
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा जब तक समतल राह न होगी.......
गद्दारों को सबक मिले आतंकवाद से मिले देश को मुक्ति,
लाचारी गरीबी के चेहरे पर जब तक मुस्कान न होगी!
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा जब तक समतल राह न होगी....
हर बच्चे के हाथों में किताब रहे जन जन को समानता का अधिकार मिले,
बलात्कारियों को प्राण दंड की घोषित जब तक सजा न होगी!
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा जब तक समतल राह न होगी.......
गाँव गाँव में बिजली पानी कृषकों के चेहरे पर हरियाली,
एक भारत,श्रेष्ठ भारत का सपना जब तक साकार न होगा!
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा समतल जब तक राह न होगी......
अजगर बनी दहेज प्रथा जब तक नष्ट न होगी,
जातिवाद का जहर हटे नारा विकास का जब तक बुलन्द न होगा.......
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा जब तक समतल राह न होगी......
#उर्मिल#
.
किसी शर्त में बंधना जिन्दगी को कभी मान्य नही होता पर जीना भी जिन्दगी के लिये सहज नही होता।
शर्त में जीना......स्वीकार नही......
मुझे शर्तों में मत बांधो मुझे प्यार करने दो
क्षणभंगुर है ये जीवन मुझे ऐतबार करने दो
अमरलता बन के रिश्तों की डोर फैली है....
इसे सासों में महसूस कर जीभर के जीने दो!!
सागर बन सकती हैं ये आंखे तो आज बनने दो
अश्रु दर्द बन छलक पड़ता है तो छलकने दो
प्यार की प्यास बुझती है इसी शर्त से अगर......
गवारा हर शर्त है मेरी आंखों में आँसूं रहने दो!!
🌷उर्मिला सिंह
Wednesday, 7 August 2019
अभिलाषाएं मानव की कमजोरी होती है, मन ही मन उसे गढ़ने लगता है ख्वाबों की दुनियां में विचरण करते करते उसी में खुश होता है हकीकत से पूर्ण तय अनजान ,अनभिज्ञ....
अभिलाषाएं.......
अभिलाषाएं.......
***************
कितनी मीठी मीठी अभिलाषाएं
उर में चुपके चुपके घुमा करती
तितली से रंग बिरंगे पर फैलाए
फूलों के सौरभ को चूमा करती!
अभिलाषाएं जब पूर्ण यौवना होती
चाँदनी की बेचैनी उर में भर लेती
प्रेम के निर्झर में बहकी बहकी इतराती
आनन्द शिखर छूने को आतुर दिखती!
चन्द्रकिरण अप्सरियाँ बन जाती
मन अम्बर पर मोहक रास रचाती
मंत्रमुग्ध अभिलाषाएं स्वप्नों की दुनिया में
सुख दुख में सुलझी उलझी जाती!
कितनी मीठी मीठी होती अभिलाषाएं
सपनो के जीवन की सैर करा जाती......
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
🌷उर्मिला सिंह
Friday, 2 August 2019
विचार....स्वयम के अच्छे हो तो फूल बन जातें हैं, यही गर अभिमान से युक्त हो तो शूल बन जाते है
स्वयम की अनुभूति से निकल हुआ छोटा से छोटा विचार एक बीज बन कर फूुलों की क्यारी तैयार कर देता है और फिर धीरे - धीरे उपवन बन फूलने फलने लगता है ....
इस छोटे से बीज की क्षमता पर विचारकीजिये ........
ऐसा क्यों होता है ...! क्यों की
उसमे आपके प्राणों का स्पन्दन ह्रदय की धङकन शामिल है। उन विचारों में हमारा अपना रक्त हमारी अपनी सासें बहती हैं.......।
इसलिये मानव जीवन सार्थक बनाइये ..............
अच्छी सोच , अच्छे विचारों का गुलदस्ता समाज, घर परिवार को भेट स्वरूप दीजिए...।
स्वयम महकिये और दूसरों को महकाइये !!
🌷उर्मिला सिंह
Sunday, 28 July 2019
स्वर्णिम जीवन का गुर अब जाना हमने.......
स्वर्णिम जीवन क्या होता है...
अब जाना मैने !
स्वयम को - स्वयम से मिलने का सुख ...
अब जाना मैंने !
वक्त दिया उम्र ने खुद को ......
तराशने का....
क्या खोया क्या पाया......
अब जाना मैंने!
बढ़ती उम्र का रोना अब तो....
भूल गये हम ;
जीवन की कडुवाहट ,अपमानों का बोझ
हवन हुवे सब.......
चिन्ताओं से परे होता है कैसा सुख........
अब जाना मैने !
आंखों की रोशनी का गम- ......
करना क्या अब
लेंस ट्रांस प्लांट से सब दिखता है !
दाँत नही तो क्या गम .....
नये दाँत से खाने का स्वाद ;
लोगों से जाना मैने !
सखियों के संग सैर सपाटे
पानी पूरी और कचौरी खाते
कुछ मीठी बातें कुछ नोक-झोंक...
बीते जीवन की प्यारी यादें ;
राग- रंग की महफिल ...
बढ़ती उम्र की मस्ती का
सुरूर क्या होता....
अब जाना मैने !
नाती-पोतों से ढेर सी बातें .....
जीवन के कुछ अनुभव बांटे ;
बेटी बेटे बहुओं के संग मिल बैठ के .....
जीवन का आनन्द क्या होता है
बढ़ती उम्र ने सिखलाया
इस सुख को अब जाना मैंने!
मित्र मंडली इस उम्र की संजीवनी है....
कहकहों और चुटकुलों का दौर....
कभी न समाप्त होने वाली बातें.....
इन्हीं बातों में मशगूल होकर.....
जीवन का स्वर्णिम पल कैसा होता है,
ढलती शाम का आनन्द
अब जाना हमने...!!
अपेक्षाओं ,नफ़रत को भूले...
हँस हँस रिश्ता निभाया हमने
जीवन की बची खुची साँसें....
प्रभु चरणों मेँ अर्पित करना
जीवन में सुकून दे जाता है!
धीरे - धीरे बुलावा आयेगा.....
उससे डर-डर के भी जीना क्या ;
पञ्च तत्व की बनी ये काया.....
एक दिन मिट्टी में मिल जाना है! ...
जीवन का सत्य यही है...
अब जाना मैने.......।
# उर्मिल