Thursday, 19 December 2019

बात तो चुभेगी........ 

नफरत की आग में झोंकने वाले लोग कौन हैं, देशभक्त तो हो नहीं सकते, जो देश की सम्पति जलाने पर तत्पर हो वह ढोंगी देश भक्त ही होगा! 

शिक्षा व्यर्थ है मानवता के अभाव में! यदि शिक्षा में देश भक्ति भाईचारा त्याग करुना समाजिक चेतना चारित्रिक भावना का संचार न कर सके तो वह शिक्षा व्यर्थ है!
         जो शिक्षा भीड़तंत्र में बदल कर हिंसा पर उतर जाए ऐसे शिक्षित वर्ग को बुद्धजीवी कहना गलत होगा

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जागो राणा प्रताप शिवाजी के वंशज
जागो भारत के तरुणाई
आज फिर जयचंद एकत्र हुए
माँ भारती के आखों में फिर आंसू आए
आज फिर जल रहा सत्य 
असत्य सीना ठोक खड़ा है 
छल बल की लपटों में 
राष्ट्र प्रेम फिर जल रहा है 
आज अगर सोए रह जाओगे...... 
आने वाला भविष्य तुम्हें 
कभी माफ  नहीं कर  पायेगा..... 
यह दंश सदियों तक तुम्हें रुलायेगा... 
 झूठ, नासमझी के इस चक्रव्यूह को 
नष्ट करने का बनता है दायित्व तुम्हारा!
जागो भारत के सपूतों जागो....... 
    
स्वर्णिम प्रभात की आश में........💐💐💐💐💐

          उर्मिला सिंह

Wednesday, 18 December 2019

कर्म ही तेरी पहचान है

कंटकमय पथ विरासत तेरी सम्भल सम्भल कर चलना है !चलन यही दुनिया का  पत्थर में तुमको  अब ढलना है !

उर की जलती ज्वाला से  मानवता को जागृत करना 
जख्मी पाँवों से ही नवयुग का शंखनाद अब करना है !!


 हरा सके सत्य को हुवा नही पैदा कोई इस जग में !
असत्य के ठेकेदारों का ,पर्दाफास तुझे अब करना है !

वक्त से होड़ लगा पाँवों के छाले अब मत देख !
सुनने को आकुल माँ भारती अब गर्जन करना है !

दृग को अंगार बना हिम्मत को तलवार बनाना है...
दुश्मन खेमें में खलबली मचेे कुछ ऐसा अब करना है !!


तुम सा सिंह पुरुष देख भारत माँ का निहाल नयन है .
कोहरे  से आच्छादित पथ है पर कदम न पीछे करना है 

मिले हुए शूलों को ही अपना रक्षा कवच बनाना है 
कर्म रथ से भारत का उच्च भाल पुनः तुझे अब करना है !!

                          ****0****
                                               🌷उर्मिला सिंह
                                               








Monday, 16 December 2019

विवशता मन की

      भाओं से अविभूत ये मन 
     रीति जगत की कैसे समझे!
     कोलाहल ही कोलाहल है,
     मन संघर्षों  से  कैसे  जूझे !

     जग में भीड़ बहुत है
     तन्हा-तन्हा है ये मन !
     खोया प्रीत का मधुबन,
     मिलता कब मन से मन !!
   
      हर चेहरे पर आवरण 
      रंग अहम का गहरा है
      सुने टेर कौन दिल की,
      सभी यहाँ अकेला है !!

     अनकही व्यथा ,कैदी मन
     शब्दो को बनवास मिला
     मन की पाती  का गुलाब
     बिन उजास गन्धहीन हुवा!!

     अन्तस् में तूफान मचा करता
     अनुरागी मन  क्रन्दन  करता
     आंसू के मोती रात में खनके
     पल पल गिनू व्यथा के मनके!!
    
          ****0****
                  🌷ऊर्मिला सिंह





       
       

Sunday, 15 December 2019

हंगामा....

कभी सड़कों पे हंगामा कहीं नफरत की आवाजे,
तुझी से पूछती भगवन इंसानी तहज़ीब क्या है!

 
किसी के टूटते ख्वाब कोई सिसकिया ले के रोता
जो आदी है उजालों के उन्हें पता क्या, तीरगी क्या है!

दौलत,ओढ़न दौलत,बिछावन दौलत जिन्दगी जिसकी ,
वो क्या जाने भूखे पेट  सोने वालों की बेबसी क्या है!!

सीना ठोक कर जो देश भक्त होने का अभिमान करते 
वही दुश्मनों का गुणगान करते,बताओ माज़रा क्या है!!

तोहमत ही तोहमत लगाते एक दूसरे पर हमेशा
कभी आईने से पूछो तुम्हारे चेहरे की असलियत क्या है!!







Saturday, 14 December 2019

प्रीत की रीत....

हम भी  कैसे दीवाने थे उनकी यादों में
कब सूरज डूबा कब शाम हुई कुछ याद नही 

 प्रीत की रीत निभाई दिल ने ऐसी
 कब दिल टूटा कब अश्क झरे कुछ याद नही!!

 मोह भ्रंम में पड़े रहे पर टूटे रिश्ते  जुड़े नहीं
अन्धी प्रतीक्षा की कब आस टूटी कुछ याद नही!!

 दीपक सा ता- उम्र जलते ही रहे ,चलते ही रहे
 कब शमा बुझी कब रात  ढली ,कुछ  याद नही!!

 
                     *****0*****
                   
               🌷उर्मिला सिंह





   

              

राग अनुराग की राहों में.....

राग अनुराग की राहों में  न जाने कितने मोड़ हैं,
गुणा भाग करके भी समझ न आया जोड़ है।

काली घटाओं के इशारे अम्बर क्या समझे,
बिन बरसे चली जाए कब इसका न कोई जोड़ है।

माना की सूरज का उजास दुनिया में बेजोड़ है,
नन्हे दीपक को न भूलिए साहिब सूरज का तोड़ है।

ढाई अक्षर प्रेम का  कह गये दीवाने सभी,
सिन्धु की गहराई भी  प्रेम गहराई के आगे गौण है।

रिस्ते दिल की आवाज से बनतें और बिगड़ते हैं,
इतना न मगरूर होइये ज़नाब आगे टूटन का मोड़ है।

सत्ता की भूख दावाग्नि सी फैली है ,अपने देश में
भूख की ज्वाला हवन हुई,मची हुइ कुर्सी की होड़ है।
                  ******0******
                    उर्मिला सिंह 



                    🌷उर्मिला सिंह

Friday, 13 December 2019

अलाव जलता....

बहती सर्द हवाओं में....
बर्फ की तरह जम गया 
अपना पन...... 
यादों के अलाव सुलग रहे 
जज़्बातों का  धुआं उठ रहा 
दर्द की चिंगारियां निकल रही 
आँखों में चुभन सी हो रही 
 लगता है अश्क भी  जम गये 
 नामुराद बहते नहीं.... 

अलाव जलता......

माघ की सर्दी 
फटा कंबल 
पिछले साल की रजाई 
जगह जगह से निकलती रुई 
बच्चे कुछ घास-फूस 
कुछ पतली लड़किया लाते 
अलाव जलाते..
उसे घेर के बैठ जाते सभी
सुखी लकड़ियां जलती
बदन में जब गर्मी आती 
तो भूख  का अलाव 
जलने लगता....... 

अलाव जलता...... 

स्वेटर पहने, शोले ओढ़े 
लोग अलाव जला कर बैठे 
गजक रेवड़ी का लेते आनन्द 
चाय पकौड़ी का चलता दौर 
कहकहे चुटकुले सुनते और सुनाते 
पहरों बैठे रहते दिन भर की 
थकान मिटाते.... 

अलाव  जलता........ 

           उर्मिला सिंह 











Wednesday, 11 December 2019

भूखे पेट की पीड़ा......

कहीं बदबूदार गलियों में भूखे पेट सोया करे  कोई!
पीते दूध रोजी टॉमी ,सुगन्धों से नहाया करे कोई!!

आस्था,धर्म को  कलंकित करते  है ये पाखंडी!
इनकी दुकाने बन्द करने का हौसला करे कोई!!

ज़मीर जिनका मर चुका है उनसे उम्मीद ही क्या!
गमलों  में  नफ़रतों  के  पौध न उगाया करे कोई!!

धूप उल्फ़त की खिलाओ छटेगा कुहरा एक दिन!
जो सरसब्ज  ज़मीन थी  उसे न  सहरा करें कोई!!

देश के रहनुमाओं,चेहरे से फरेब की नकाब उतारो!
गरीबों के घर भी चूल्हा जलने का तैयार मसौदा करे कोई!!

बहुत लिखे पढ़े ग़जल, इश्क मोहब्बत की हमने!
मसली जारही कलियाँ उसपर भी सोचा करे कोई!!

नव वर्ष का स्वागत करें कुछ इस तरह हम सभी!
देशभक्ति से सरोबार रचना भी लिखा करे कोई!!
                      *****0*****
                    उर्मिला सिंह 

Friday, 6 December 2019

नारी की विवशता........

हालात के परिवेश जब बदल जाते हैं
न्याय की कुर्सी डगमगाने लगती है
कहीं जनाक्रोश कहीं राजनीत के खिलाड़ी
कहीं मानवाधिकार की तर्क हीन बातें 
इसी भंवर में उलझ जाती है 
नारी की अस्मत बेचारी!! 

कैसे न्याय मिले नारी को.......? 

लोकतंत्र है यहां पुलिस पर पथराव हो पुलिस तमाशा देखे, 
वहशी दरिन्दे भागे पुलिस पर आक्रमण करें पुलिस मौन रहे, 
नारी को जलाया जाय रेप किया जाय.अपराधी को कारावास से जमानत पर छोड़ दिया जाय,तारीख. पर तारीख पड़ती रहे जिस का रेप हुआ मर जाय जला दी जाय क्या फर्क पड़ता है उस औरत,बच्ची की चीखें किसी के कानों मे सुनाई नहीं पड़ती क्योंकि लोकतंत्र है भारत में!
             . परंतु एक बात कहना चाहूँगी और पूछना भी  कि क्या अपनी बहू-बेटियों के साथ ऐसा होता तब भी उनके विचार यही रहते? क्या. उनकी चीखें उन्हें नहीं सुनाई देती?  क्या उस समय भी उनके विचार इतने संतुलित नेक और लोकतंत्रवादी होते? दिल. पर हाँथ रख कर सोचे, ये सिर्फ और सिर्फ भावनाओं का विषय नहीं....... 
            सच कहा है.... 
          "  जाके पांव न फटी बीवाई 
            वो क्या जाने पीर पराई" 

                  उर्मिला सिंह 


अहसास......

हमें भी लबों से मुस्कुराना आगया शायद!
नफ़रतों से रिस्ता निभाना आगया शायद!!

दोस्ती गुलशन हैं फूलों का जाना था हमने!
खार से भी दामन सजाना आगया शायद!!

 दिखाते आईना जो ,खुद को खुदा समझते!
 ‎हमें पत्थरों से भी टकराना आगया शायद!!

ग़जल  गीतों  में  बिखर जाता है दर्द जब !
आसुओं को भी रंग बदलना आगया शायद!

लम्हा लम्हा वक्त तन्हाइयों का बढ़ता रहा 
वक्त के सलीब पर लटकना आगया शायद!!
 
कई रंगों के मंजर आंखों में घूम जाता हैं!
एहसासों को दर्द में जीना आगया शायद!!
                                         #उर्मील
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जख्मों को...

सरेआम ज़ख्मों से कैसे पर्दा हटा दूँ!
ज़िगर है घायल आहों को कैसे सुना दूँ!!

 बारीकियां होती हैं ज़ख्मों की ऐ जाने ज़िगर!
 ‎लफ़्ज़ों से कैसे ग़जल की माला बना दूँ!!

एक हम ही नही है जख्मी बेमुरव्वत जहाँ में!
हर शख़्स लहूलुहान, कैसे सुकूते दर्द सिखा
 दूँ!!

तपती दुपहरी दर्द की जब अंतड़िया सूखने लगती!
भूख से बिलबिलाते बचपन को कैसे  दिलासा दिला दूँ!!

ईमान, उसूल,विचार,विश्वास घायल तड़प रहें हैं!
दर्द का एहसास कैसे सियासत को करा दूँ!!
                      ********
                                                  #  उर्मिल


                                       




समय की रेत पर.......

समय की रेत पर...
जाने कितने निशाँ हमने पाये ;
कुछ मिट गये .....
 कुछ को हमने मिटाये  !

ज़िन्दगी के ..किताबों से.....
यादों के फेहरिस्त में......
कुछ एहसास रख्खे ....
कुछ अल्फ़ाज़ हमनें मिटाये !

उम्र बीतती है ... पर् .....
कारवाँ  ख्वाहिशों का रुकता नहीं .....,
कुछ मिट गईं हसरते....
कुछ वक्त की रेत ने दबाए !

समय के ! गुलाम है हम सभी ......,
 इसके पहियों में ..बंधे घूमते ही रहे..!
  समय  मुठियो से फिसलता रहा.....
    हम देखते रहे....
  छल कते आशुओ  को..... 
  .रोकते रहे, बस रोकते रहे !!
  
 
                                #उर्मिल
 

                  

Thursday, 5 December 2019

प्याज रानी...

इतराती फिर रहीं सब्जियों की महारानी प्याज रानी 
भाव न पूछो इनके शतक लगा रहीं प्याज महारानी 
सलाद सर पकड़ कर बैठा, रो रहे टमाटर गाजर की यारी 
सिर पकड़े हम भी बैठे स्वाद विहीन हुई सब्ज़ी सारी! 
.                       *****0*****
                          उर्मिला सिंह 


    

Tuesday, 3 December 2019

आज के मसीहा

वोट तो ले लिये आज के मसीहा हम गरीबों से 
गरीबों की रोटियों का भी ज़रा ख्याल रखना 
हम ही तक़दीर लिखते हैं तुम्हारी याद रखना 
विजय पराजय में भी बदल जाती है हम गरीबों से! 
                      ****0****
                      उर्मिला सिंह 

 


खंड खंड में

     खंड खंड में बटी खंडित ही रही
     साँसे अपनी  पर अपनी न रहीं
     जीवनदायीनी है पर पूज्यनीय नहीं
     गृहलक्ष्मी है पर गृहस्वामिनी नहीं

धर्म ग्रन्थों में वंदनीय है कविताओं में पूज्यनीय है 
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इन्हीं प्रवंचनावो की जीती जागती तस्वीर में आखिर कब तक नारी बन्दी बनी रहेगी? कबतक शोषण होता रहेगा 
नारियों का! 

यह एक पश्न है जो सभी से है....... 

पटाखे, फूल झड़ी, धुआं से प्रदुषण फैलता है! उसके लिए
केंद्र सरकार, राज्य सरकार दूर करने के लिये प्रयत्न शील हैं अच्छी-बात है..........
                       परन्तु बच्चियों औरतों के साथ जो दरिंदगी का नग्न नृत्य हो रहा है उसके लिये सरकार, राज्य सरकारें 
मौन क्यों? ये पश्न किसी एक का नहीं समस्त नारी वर्ग का 
है! निर्भया से लेकर आजतक जो भी हुआ किसी को भी न्यायपूर्णतः नहीं मिला क्यों?
 यह पश्न यदि आपके भी सम्वेदनशील ह्रदय को द्रवित करता हो तो कृपया नारी के लिये रक्षक के रूप में सामने आयें! 

                         उर्मिला सिंह 







     

Monday, 2 December 2019

मन ही मन उसे पुकारूं.....

मन ही मन में उसे पुकारूँ
रूप सलोना हृदय बसाऊँ
बिन उसके जीवन बेकार
क्यू सखि साजन?न सखि माधव!!

नित्य वही मुझे उठाये
मन में प्रकाश पुंज भर जाए
उन बिन सर्वत्र अँधेरा छाये
क्यूँ सखि साजन?न सखि भानू!!

उससा रूप न कोई दुजा
देखत मन प्रेम में भीगा
प्रेम की नगरी का है राजा
क्यूँ सखि साजन?न सखि चन्दा!!
                  # उर्मिल

बच्चों को कुछ दिन बच्चा रहने दो.....

कुछ दिन तो बच्चों में बच्चा जिन्दा रहने दो
गीली मिट्टी हैं ये अभी इन्हें  सच्चा रहने दो
कुछ दिन चिड़िया,तोता उड़ कह खुश होने दो 
हकीकत से रूबरू आहिस्ता आहिस्ता होने दो!!

                 🌷उर्मिला सिंह

Sunday, 1 December 2019

सुनहरा शहर अब कहीं खो गया.....

सुनहरा शहर अब कहीं खो गया है
सिसकती रातों में शहर सो गया है
भावनायें मर चुकी आह भरता जिस्म.....
विवेक शून्य पत्थर इन्सान हो गया है!!

कायर दरिंदां पुरुष वर्ग अब होगया 
जानवर से भी बदतर इन्सान होगया 
कब तक न्याय को तरसती रहेंगी नारियां 
दरिंदगी की आग में जलती रहेंगी नारियां!! 

तुम्हें पुरुष कहने में भी शर्म सार शब्द होते 
तुम से,बाप भाई के नाम भी कलंकित होते 
लाश को भी,तुम जैसे निकृष्ट जब नहीं छोड़ते 
कैसे तुम अपनी बहन बेटियों को होगे छोड़ते!! 

हर बार यही होता है हरबार यही होगा 
जुबान पर ताला बहरा कानो वाला होगा 
संविधान की दुहाई देने वाले ख़ामोश रहेंगे बस 
व्यथित कलमकार रिसते घावों से पन्ने भरता होगा!! 

               .... उर्मिला सिंह.... 

















Shb

Friday, 29 November 2019

हसीन ख्वाबों के बिस्तर से.....

हसीन ख्वाबों के बिस्तर से उठा गया कोई 
हवा के नर्म झोंकों से दीवाना बना गया कोई!

 लबों पर मुस्कराहट सलीके से सजा गया कोई 
 सुनहरी  किरणों से अंचल मेरा भर गया कोई! 

 दूनिया की चमक दमक में डूबे प्यार के रंग पर 
 अपनी अकलुष मोहब्बत का रंग चढ़ा ग़या कोई!

 बिखरी हो  चाँदनी जैसे गुलाबों के शाख पर.... 
 जिन्दगी के आंगन में चाँद तारे बिखरा गया कोई! 

 फूलों सा नाज़ुक एहसास है उसकी आहटों का 
 एक अनजानी सी प्यास मन में जगा गया कोई! 
                      *****0*****
                       उर्मिला सिंह 




Wednesday, 27 November 2019

न पूछ ऐ जिन्दगी क्या बचा पास है...

न पूछ ऐ जिन्दगी उम्र की ढलान पर क्या बचा  पास है
मुस्कानों के संग झरते आंसुओं का अहसासबचा पास है! 

जिन्दगी की ज़ंग में ज़ख्मों का ज़खीरा साथ चलता रहा
पतझर में मधुमास की उम्मीदों  का कारवां बचा पास है!

हजारों तूफ़ान आए हार मानी नहीं जिन्दगी ने......, 
विश्वासों उम्मीदों की अटल डोर का सहारा बचा पास है!

प्रेम की दौलत का खजाना लुटाया  सभी पर जमाने में 
अभी अधरों की मुस्कानों का अवशेष बचा पास है!

,अंधेरी रातों  में जुगनू की रोशनी भी होतीं मोहाल  हैं 
 आज  भी चांदनी  रात  की ख्वाहिशों का ढेर बचा पास है! 
             *******0*******0********
 
                           उर्मिला सिंह 

गरीबी

गरीबी जागीर है गरीबों की, भूखे पेट सोना तक़दीर है
आसमा छत है, ज़मीं बिस्तर ख़्वाबों की यही ताबीर है
हजारों बार जीते हजारों बार मरते तेरी दुनिया में मलिक 
छलकते दर्द की सिसकियाँ समेटना उनकी यही तस्वीर है!! 
                     *******0*******
                   उर्मिला सिंह 

Sunday, 24 November 2019

हकीकत......

हकीकत की कठोर...... धरती पर हम 

अपने बिखरे सपने....... समेट रहें हैं

आज कल हम.....  अपने अपनों का  

खोया हुआ अपनापन .... ढूढ़ रहे हैं! 
          *****0*****
           उर्मिला सिंह 
  

Thursday, 21 November 2019

राजनीति का अजब गजब हाल.......

मत देना अधिकार है जनता का,बाकी नेताओँ पर छोड़ो  सरकार बनेगी छल बल से या कैसे नेताओँ पर छोड़ों! 

पांच साल बाद नतमस्तक नेता वादों की झड़ी लगायेंगे रोयेंगे गिड़गिड़ायेंगे गिरगिट सा रंग दिखाएंगे पर छोड़ो! 

ईमान उसूल सब गिरवी रख देंगे कुर्सी पाने को नेता 
आदर्शों को बेच तोल मोल से सरकार बनायेगे पर छोड़ो! 

विचारों में साम्य नहीं, कितने दिन टिक पायेगी सरकारें साथ रहेंगे गन्धर्व सुर गायेंगे,खूब तमाशे होगे पर छोड़ो! 

भोलीजनता का दे हवाला कौन किसे देता धोखा समझो 
मुँह मे राम बगल में छुरी,एक थाली के सट्टे बट्टे पर छोड़ो!

                       ********0********
                           उर्मिला सिंह 
                         
 
 





Wednesday, 20 November 2019

बिटिया रानी

बिटिया रानी
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यादों के झुरमुट से..... 
एक तस्वीर उभर कर आती है
चंचल नटखट सी...... 
घर आंगन में दौड़ लगाती...... 
बाग बगीचों में तितली को पकड़ती
भौरों के गुनगुन से, डरती सहमती
चिड़ियों सी चहकती फूलों सी हँसती!

लुका-छिपी के खेलों में....... 
भाई से लड़ती झगड़ती..... 
बरसात के मौसम में
कागज की नाव बनाती
पानी में तैरते देख उसे..... 
ताली बजा हँसती और हँसाती! 

आज वही नन्ही गुड़िया
रिस्तों के प्यारे बंधन में 
पत्नि  माँ बहू बन, 
रिस्तों पर अपना प्यार लुटाती
जिसे हम सभी प्यार से कहते 
       मेरी  बिटिया रानी!! 
             ***0***
          उर्मिला सिंह 

याचना......

मुस्काते प्रकाश फैलाते आते हो,
जीवन भी प्रकाशमय बनादो न!
सुख  दुख  जो  तुम  देते  हो,
उसमें  रस भरना सिखला दो न!
                                   ##उर्मिल##

Saturday, 16 November 2019

आहट......

धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही....    


हैवानियत के आगोश में इंसानियत दम तोड़ रही
आजकल धीरे धीरे एक आहट सुनाई  दे  रही
 फैला है जाल ऐसा आत्मा कलुषित हो रही
सौहार्द हो रहा विलुप्त  क्रूरता जडे जमा रही

 धीरे धीरे एक आहट सुनाई  दे रही....

क्रोध,ईर्ष्या,द्वेष,व्यभिचार आक्रामक हो रहे 
क्षमा शील ह्रदय ,आज सूखी नदिया हो गये
बिक रहा ईमान चन्द सिक्को में यहाँ
प्रेम विहीन जीवन आज श्रीहीन बनते जा रहे

धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही....
 
रोक लों अभी भी क्रूरता के मनहूस सायें  को 
मन को छलनी कर ,लील जाएगी मानवता को
शैने-शैने मानव आदी हो गा इस कुकृत्य का
खून की नदियाँ  बहेगीं होगा नृत्य  व्यभिचार का

  धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही.....
 
दया धर्म करुणा का नामो निशान मिट जाएगा
बहती करूणा  की  नदी आंखों में सूख जाएगी
मछेरे जाल फैलाएं गे  मछलियाँ  तड़ फड़ाएं गीं
होगा हथियारों का बोल बाला,सहमी हर कली होगी
इस विकराल दानव के मुंख में इंसानियत मरती रहेगी

धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही......!!

                                                 उर्मिला सिंह 







 







Thursday, 7 November 2019

मौन...... साँस में प्रार्थना मौन है सृष्टि के संग मुस्कराना भी मौन है.....

वाणी को ही नही
मन को मौन होने दो
लेखनी को ही नही
शब्दों को मौन होने दो!

मौन की मुस्कान....
कुछ और गहरी होने दो
अन्तर्मन में चलते द्वंद को .
मौन सागर में प्रवहित होन दो!

ह्रदय - तम आलोकित
सरल स्वच्छ हो जाने दो
मौन - साधना मे लिप्त मन 
को सरल प्रवाह में बहने दो...! 

मौन  ह्रदय  तट से 
शत रंगी शब्द पुष्प झरने दो 
अन्तर्मन के मौन गूंज से 
जीवन को सुर ताल से सजने दो! 

      उर्मिला सिंह 







Sunday, 3 November 2019

हल्की हल्की सर्द हवाऐं....

हल्की हल्की सर्द हवा मीठा मीठा दर्द
यादों के पन्नों पर उभरे नीले नीले हर्फ़!
                    ***0***
आया माह नवंबर मौसम हुआ गुलाबी
लफ़्ज़ लफ़्ज़ में तुम, ग़ज़ल हुई शराबी! 
                      ***0***
                         उर्मिला सिंह 

Friday, 1 November 2019

गरीबी......

गरीबी जागीर है गरीबों की, भूखे पेट सोना तक़दीर है
आसमा छत है, ज़मीं बिस्तर ख़्वाबों की यही ताबीर है
हजारों बार जीते हजारों बार मरते तेरी दुनिया में मलिक 
छलकते दर्द की सिसकियाँ समेटना उनकी यही तस्वीर है! 
                   *******0******0*******
               उर्मिला सिंह 


 

Saturday, 26 October 2019

दिपावली

मुट्ठीयों में छुपे जुगनुओं को आजाद कर दो
की दिवाली है आई! 
जिन चिरागों में तेल कम हो उन्हें लबरेज़ कर दो 
की दिवाली है आई! 
हर झोपड़ी जगमगाए कुछ ऐसा जतन कर दो 
की दीवाली है आई! 
आए राम अयोध्या,खुशियों की दीप  जलाओ 
मर्यादित हो जीवन, की दीवाली है आई!! 

Thursday, 10 October 2019

ख़ामोश होती हुई सासों ज़रा धड़कनों का शोर सुनने की मोहलत दो

जीवन कुछ भी नही..... पल दो पल की कहानी  है.......
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ख़ामोश होती हुई सांसों
ज़रा धड़कनों का शोर
सुनने की  मोहलत  दो
छलक पड़ी आंखों को
ज़रा सांत्वना के दो शब्द कहने दो
फिर न जाने कब मिलेंगे
वेदना के पुष्प एहसासों को अर्पित करने दो!!

यादों की कितनी ही स्याह कतरने इकट्ठी हैं
उन कतरनों को जरा जोड़ने दो
कुछ के डंक की पीड़ा, ज़ख्मी ह्रदय को
एक ही साँस मे पीने दो.......!!
हसरतों के धागे बुनते रहे.....
पत्थरों के नगर में सदा....
आज बस ख़ामोश बदन से
दुआ के कुछ फूल पत्ते झरने दो!!

ख़ामोश होती हुईं सासें
ज़रा धड़कनों का शोर
सुनने की मोहलत दो........

      उर्मिला सिंह

Monday, 23 September 2019

जिन्दगी से हम दूर होने लगते हैं......... जब

जिन्दगी से हम दूर होने लगते हैं......... जब
***********************************

जिन्दगी से हम दूर होने लगते ........ जब.......

हम  अपनी  आदतों के  वश में  हो जातें हैं
जिन्दगी में कुछ नयापन शामिल नहीं  करते
भावनाओं को समझ कर भी अनजान होतें हैं
या अपने स्वाभिमान को कुचलता देखते रहते

तब जिन्दगी. से हम दूर होने लगते........हैं

जब किताबों का पढ़ना बन्द होने लगता है
जब ख्वाबों का कारवां दम तोड़ने लगता है
मन की आवाजों की गूंज जब सुनाई नहीं पडती
अपने आप ही जब आंखे नम होने लगती है

तब जिन्दगी से हम दूर होने लगते........ हैं

जीवन रंग विहीन  हो स्वयम से जब दूर होने लगता 
अपने काम से जब मन स्वयम असन्तुष्ट रहने लगता
मन की दशा जब कागज पर उकेरे मोर सी होती
जो बरसात तो देखता पर पँख फैला नाच नहीं सकता

तब जिन्दगी से हम दूर होने लगते हैं.........

                   🌷उर्मिला सिंह










Thursday, 19 September 2019

एक अनुभूति जो ह्रदय के द्वारे दस्तक देती है.......

सजदे में सिर झुका..... मन में ज्वार उठा.......

हम सजदों  में हसरतों के ख़ातिर गिरते रहे
  तूँ नित्य नये रूपों में मुझे रोमांचित करते रहे
  बन्द पलकों में मेरे, नये नये रुप दिखाते रहे
  आज ये कैसी चेतना मनमें जागृति हुई
  हसरतों के पँख मैंने स्वयम ही कतर डाले
  आँखों के सभी आवरण हटने लगे
  जीवन आनन्द से ओतप्रोत हो उठा
  सजदे में सिर मेरा तेरे चरणों में झुक गया!!
 
              🌷उर्मिला सिंह

नई पीढ़ी और उनकी सोच..........

वृद्ध आश्रमों में माँ बाप नई पीढ़ी की सोच
**********************************

अजब दस्तूर है ,
अब इस जहाँ का ,
ज़िन्दगी आखिरी सीढ़ियों  पर ,
माँगती है सहारा ,
वृद्ध आश्रमों का ।

जिन्हें कलेजे से लगाया ,
आँखों में बसाया ,
ममता नें हर ,
मंदिर-मस्जिदों के चौकठ पर,
दुआओं के लिए आँचल को फैलाया,
वहीँ हो गए आज बेगाने क्यों ?

ये कैसी विडम्बना है ?
ये कैसी हवा है ?
जिन बाँहों नें झुलाया,
थपकियाँ देकर सुलाया ,
तुम्हे सुखी देखने को ,
दुःख को भी गले लगाया;
उन्ही को तुमने ,
तूफानों  के हवाले कर दिया।

निर्दयता की तलवार ने ,
भावनाओं का क़त्ल कर दिया ;
ममता को बक्शा नहीं ,
सूली पे चढ़ा दिया ।
उड़ा डाली धज्जियाँ ,
भारत की संस्कृति-संस्कार की।

जीवन गुजारा था जो तुमने ,
जिनकी छत्र-छाया में ,
वो कीमत माँगते नहीं ,
अपने दूध की तुमसे ,
केवल प्यार माँगते है,
सम्मान माँगते है ;
कुछ दिन तुम्हारे साथ ;
जीने का --अधिकार माँगते हैं।
      ×××××      ×××××
आज के नवयुवक नवयुवतियों को समर्पित है!

Friday, 13 September 2019

एक सैनिक कि पत्नी की व्यथा जो खामोशियों के साये मेंढकी रहती है।


ख़ामोशी.....ख़ामोशी.....बस......ख़ामोशी
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कुछ टूटा.....कोई आवाज नहीं.....बेइंतहा दर्द पर आह नहीं

सिर्फ और सिर्फ एक ख़ामोशी......ख़ामोशी........

अश्क झरे आंखो से पर अधरो से सिसकी भी नहीं.....

दिल का दर्द कहें किससे ख़ामोश हुई जिन्दगी सारी.....

खामोशियों के जाल में जकड़ी है जिन्दगी.......

तुम क्या रूठे दुनिया रूठ गई मेरी.........

पर आत्मा मेरी सरहद पर भटकती रहती है

जहां तुम शहीद हुए थे........

शरीर ही हमारा है आत्मा तो तुम्हीं में बसती थी....

शहीद की अर्धांगिनी विधवा होती नहीं.....

ललाट का सिंदुर भले मिट जाता है ......

पर देश भक्ति की लालिमा से पत्नी का .....

भाल चमकता रहता है सदा .....

खामोशियों के आवरण से ढका

उसकी वीर गाथा सुनाता रहेगा सदा....

              🌷उर्मिला सिंह





Wednesday, 11 September 2019

गौ माता जिसे हम पूजते हैं चरण छूते हैं .......उसी की आत्म कथा

एक गाय की आत्म कथा ..........!!     

आज मैं एक खूँटे से दूसरे खूंटे में बंधी !
  पुराने रिश्तों को छोड़ आने का गम ,
  नये रिश्तों से जुड़ने की मीठी खुशी ,
  गले में बड़ी- बड़ी मोतियों की माला,
   उसमे एक प्यारी सी घण्टी पहन मैं,
  जब गला घुमाती मधुर सी आवाज आती ,
  मैं अपने नए रूप पे इतराती फूली न समाती !
           
सूर्य की किरणों के संग गुन - गुनाता ,
  घर का मालिक बर्तन में दूध निकालता ,
  उत्साह से जै गौ माता कहता चला जाता ,
  नित्य का यही क्रम ,खाने की भी कमी नही ,
  बच्चे  भी  आ  मुझे  प्यार से  चूमते  खेलते ,
  इतने आदर-सत्कार -प्रेम पा मैं फुली न समाती !  

  जिन्दगी बीतती रही , हरी दूब भी खाने को मिलती !
   पर  खुशी  के  पल  , पंख  लगा  कर उड़  चला ,
   उम्र  बढ़ती  गई  , दो बाछा एक बाछी भी दिया ,
   पर दूध भी उम्र के साथ - साथ  कम  होने लगा ,
    एक दिन वह भी आया जब मेरा सौदा होने लगा .
    निरीह , कमजोर  खाना  हलक  के  नीचे नजाता!
        
खरीद-फरोख्त की बातें चलीं ,बिछुड़ने का दर्द होने लगा !      
निरीह प्राणी थी पर प्यार की भाषा तो जानती थी,
इंसानो  की  दुनीयाँ  में  प्यार  की  होती  कीमत  नही ,
मैं  विनती करती रही , अपने दूध का वास्ता देती रही,
रोती  रही  कलपती रही  कि अपने  से  अलग न करो
बाछे  दिये  हैं , उन्हें  बेच कर अमीर होजाओ गे !
    
माँ का दर्जा देते रहे जिसे , वही आज गिड - गिड़ाती रही ! 
मेरा  दिया गोबर भी तुम्हारे लिए खाद के काम आएगा !  
तुम्हारे दरवाज़े पर मरूँगी मेरी हड्डिया भी काम आए गी ,                                             
पर तूँ जरा भी पसीजे नहीं , मैं रोती रही , बिलखती रही ,              
तुमने उस कसाई के हाथ चंद पैसों के लिए मुझे बेचदिया ,                          
मैं  तड़प  उठी , चिघारने लगी  पर  तुम रुपये गिनते रहे !

मैं ज़मीन पर गिरी छटपटाती रही , कसाई  हाथ पैर बाँधता रहा !
मैं हाथ जोड़े दुहाई  देती रही पर तुम्हे रहम न आई ,निर्दयी बने रहे,
मेरी आँखें बंद होने लगीं, तुम्हारी गौ माता जिसके चरण तुम छूते ,
           
वही आज निर्दयी कसाई के हाथों बिक गई .........!!
                 पर एक प्रश्न है  ....?      किसे कहुँ ....?    
                  तुम्हें .....!! या उसे ....' कसाई '.......॥

                                                        🌷उर्मिल सिंह                                                        
                                                                                                                                      
                  

                      

                      
                    

Tuesday, 10 September 2019

अंतर्मन की लहरों से निकली कुछ अनुभूतियां.....

मिट्टी का तन........
🌾🌾🌾🌾🌾

कितने  आये  और  चले गये
कितने  बने  राजा  और  रानी
यादों के  गुलशन में खिले वही
दी राष्ट्र हित में जिसने कुर्बानी!!
🍂🍁🍂 🍂🍁🍂 🍂🍁🍂

मिट्टी का तन  मिट्टी में मिल जाएगा
होगा कोई एक इतिहास रचा जाएगा
सभ्यता का आवरण ओढ़े बैठे लोग यहां
हत्यारा भी आज यहां शरीफ कहलाएगा!!

🍂🍁🍂 🍂🍁🍂 🍂🍁🍂
सत्य  का द्वार  अध्यन नहीं अनुभूति है
सत्य को जानना तपस्चर्या से कम नहीं है
चैतन्य का सागर हृदय में निरंतर गतिमान है
इसे पहचानना ही सत्य की पहचान है !!

    🍂🍁🍂 🍂🍁🍂 🍂🍁🍂
छोटी सी जिन्दगी में व्यवधान बहुत है
तमाशा देखने वाले  यहां इंसान बहुत हैं
जिन्दगी का हम स्वयम ही बना देते तमाशा
वर्ना खुशनुमा जिन्दगी जीना आसान बहुत हैं!!
    🍂🍁🍂  🍂🍁🍂  🍂🍁🍂

             🌷उर्मिला सिंह


Monday, 9 September 2019

ज़िन्दगी आहिस्ता आहिस्ता ढलती है......

शाम का समय.....
ढलते सूरज की लालिमा....
आहिस्ता- आहिस्ता......
समुन्द्र के आगोश में.....
विलीन होने लगा......
देखते -देखते.....
अदृश्य होगया........
जिन्दगी भी कुछ ऐसी ही है.......
मृत्युं के आगोश में लुप्त होती ....
इंसान के वश में नही रोक पाना.....
लाचार ....बिचारा सा......इंसान
फिर भी गर्व की झाड़ियों में अटकता.....
अहम के मैले वस्त्रों  में
सत्य असत्य के झूले में झूलता....
जीवन की अनमोल घड़ियां गवांता......
जीवन की उलझनों में उलझा
सुलझाने की कोशिश में
पाप पुण्य की परिधि की...
जंजीरों में जकड़ा
निरंतर प्रयत्नशील
अंत समय पछताता हाथ मलता.......
कर्मों का बोझ सर पर लिए अनन्त में.....
विलीन हो जाता......
जीवन का यथार्थ यही है.....शायद
जो हम समझ नही पाते हैं.......

  🌷उर्मिला सिंह

Thursday, 29 August 2019

स्वार्थ की दुस्साहसता देख भींग उठते नयन....

स्वार्थ की दुस्साहसता देख भींग उठते नयन.....
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चहुँओर स्वार्थ की दुस्साहसता देखते तरल नयन
किसे अपना कहें, लोभ से सना सभी अपना पन
मुरझाएे दिखते विटप- वृक्ष, उड़ रहे पीले से पात
किसे फुर्सत जो देखे , बिखरते सतरंगी नेह नात!

छल-कपट में लिपटी दुनिया मु्रझाये जीवन उसूल
दया-भाव  हवन हुए, हवन हुए  मनके खिलते फूल
मिटी अनमोल संस्कृतियाँ , संस्थाएं आडम्बर कारी
हिंसा अमर्ष जाति - पात में भटक रही दुनिया सारी!

आध्यात्मिक जिज्ञासा दम तोड़ती,विकृति हुई वाणी
भाव शून्य इंसानियत हुई,  किसकी है ये जिम्मेदारी
हर आँगन में दीवार खड़ी,हुआ है भाई-भाई का बैरी
सोने की मृग सी राजनीति,अभिमान ग्रसित है पीढ़ी!

मुड़ कर एक बार पुनः देखें,हमअपना निज अतीत
अनमोल वनस्पतियां थी माटी गाती थी अमर गीत
यह देश विलक्षण,है ज्ञान यज्ञ की अद्भुत यज्ञशाला
राम-कृष्ण-गौतम थे जन्मे,जहां पिया मीरा ने विष प्याला!
                       ****0****
                 
                                      🌷उर्मिला सिंह







Wednesday, 28 August 2019

अनकही व्यथा जब पन्नो पर बिखरती है....


कुछ धुवां उठा.... कुछ जख्म जले.....
******************************
पन्नो पे बिखरते ही
मायूस पड़े ........
लफ्जों में मानो जान आगई
कुछ सासें धड़कने लगी
जीने का अरमान जगा
दिल की जलती चिंगारी में
कुछ धुवां उठा......
कुछ जख्म जले
राखों के ढेर पर
कुछ नज़्म लिखे......
कुछ हमने पढ़ा......
कुछ तुमने पढा....
🌾🌾🌾🌾

🌷उर्मिला सिंह

Sunday, 18 August 2019

तस्वीर तेरी आँखों में बसाया.......

जब जब बन्द किया नैनों को प्रिय तुमको ही मुस्काते पाया
तस्वीर तेरी जब जब देखा मन ने तुझको तुझसे ही चुराया
प्रेम भरी पाती लिख -लिख स्वयम को  स्वयम ही समझाती,
बीते पलों की यादों कोखामोशी की चादर में दिल ने छुपाया!

                   🌷उर्मिला सिंह

Saturday, 17 August 2019

कश्मीर की महकती घाटियां .......

आकाश में सितारों की छटा बदल गई है
डरी घाटियां आज़ादी के जश्न में चहक रही हैं!!
***********************************

जो चिड़िया पिंजरे में बन्द थी आजाद होके चहक रही है
आज शिकारे नही जैसे  पुष्पवाटिका झीलों में तैर रही हैं!

ज़रा आके तो  देखिये धरती  का ताजा स्वर्ग अब यहीं हैं ,
स्नेहिल रक्षाबंधन के पर्व  से आज घाटियां महक रहीं हैं!

                    🌷उर्मिला सिंह

Friday, 16 August 2019

नेकियों का सिक्का लुप्त होरहा....

अब पत्थरों सी जलने लगी है जिन्दगी
नेकियों का सिक्का लुप्त  होरहा ....
अब रिस्ते जल्दी चटकतें हैं....
अब भरोसे  जल्दी  टूटतें हैं....
सच झूठ में जल्दी बदलते हैं....

जानतें है क्यों.........?
क्यों कि......
स्थायित्व का अब कोई मूल्य नही रहा.....!!

           
                 
                     🌷 उर्मिला सिंह

Thursday, 15 August 2019

लाल चौक से लाल किले तक तिरंगे से रंग जाएगा,आज़ादी के इस पर पर्व पर अब सारा भारत मुस्कुराएगा।

आज पत्ते चिनारों के  हंस रहे हैं झुमके.......
सिसकती वादियां महकती केसर के फूल से...

मंदिरों में बजती घण्टियाँ देरहीं आशीष हैं दिशाएं सजाए थाल गारही मङ्गल गीत हैं! मांभारती के मुखमण्डल पर लालिमा छाई

हुआआजाद कश्मीर आज जन्नत लौट आई !

सदियों से बैचेन गले मिलने को भारत वासी

अधूरी थी आजादी,अभी तकआज पूरी हो गई!!

सही माने में शहीदों को श्रदांजलि आज मिल गई।

खण्डित भारत अखण्ड हुआ  तिरंगा भी आज मगन हुआ

एकबार फिर भारत की किस्मत जागी, 

हुई विशेष आज भारत की आजादी!
लाखों जतन के बाद पाया है तुझे  हमने.......
प्रेमाश्रु नयन विकल  है मिलने को तुमसे
गीले शिकवे भूल आज फिर एक हो जाएं
सच्ची श्रदांजलि अपने पूर्वजों को चढ़ाएं

भटकती रूहें कह रही है सिसकतीआज....

गुजरेगी फिजाओं में फिर मोहब्बत के तराने  

सुनसान घरों को दीवार आवाज देती हैं तुम्हे, लौट आओ फिर घर छोड़ कर जाने वालो।

केसर की क्यारियां झील के किनारेयाद करते हैं

सूफ़ी,सन्त बाबा ऋषियों सभी दरगाहों से.... आवाजआती है.....लौट आओ जाने वालों


                                   🌷 उर्मिला सिंह

                         भारत माता की जय







Monday, 12 August 2019

कविता मैं जान न पाई तुम क्याहो......

-*-*  कविता मैं जान न पाई *-*-

कविता, मैं जान न पाई,
        तुम क्या हो !
क्या तुम एक सपना हो !
        या उर सागर की,
उठती - गिरती लहरें हो ?
        जीवन की सच्चाई हो,
या भावों और उमंगों की -
        बहती दरिया हो !
मैं जान न पाई  तुम क्या हो ?

कविता, क्या तुम...!
        जीवन का अनुभव हो !
अंतर-मन की पीड़ा हो !
         या सच - झूठ बनाने की -
रखती अद्भुत क्षमता हो !
         मन के घावों को सहला ,
निर्झर्णि सी बहती -
        या सुख की अभिव्यक्ति हो !
मैं जान न पाई  तुम क्या हो ?

पर कभी - कभी मुझको...
          ये भी लगता है...  तुम -
मन - आत्मा की कुंजी हो -
          या जीवन के उतार - चढ़ाव...
दर्शाने वाली सीढ़ी हो !
          मन के कोमल भावों को ,
उद्ध्रित  करती लेखनी हो...
          या अनुरागमयी सखी हो !
फ़िर भी ये सच है...
          मैं जान न पाई तुम क्या हो !!!

                  🌷उर्मिला सिंह

Sunday, 11 August 2019

युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा समतल जब तक राह न होगी....

युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा......
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युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा जब तक समतल राह न होगी...

खुल कर जब तक जन मन में भाई चारे का भाव न होगा,
ऊँचे महल अट्टालिकाओं की ध्वस्त जब तक शान न होगी!
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा जब तक समतल राह न होगी .......

सिहासन से वंशवाद की जब तक रीत न बदलेगी,
चोर लुटेरे गुंडों के हाथों में जब तक जंजीर न होगी!
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा जब तक समतल राह न होगी.......

गद्दारों को सबक मिले आतंकवाद से मिले देश को मुक्ति,
लाचारी गरीबी के चेहरे पर जब तक मुस्कान न होगी!
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा जब तक समतल राह न होगी....

हर बच्चे के हाथों में किताब रहे जन जन को समानता का अधिकार मिले,
बलात्कारियों को प्राण दंड की घोषित जब तक सजा न होगी!
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा जब तक समतल राह न होगी.......

गाँव गाँव में बिजली पानी कृषकों के चेहरे पर हरियाली,
एक भारत,श्रेष्ठ भारत का सपना जब तक साकार न होगा!
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा समतल जब तक राह न होगी......

अजगर बनी दहेज प्रथा जब तक नष्ट न होगी,
जातिवाद का जहर हटे नारा विकास का जब तक बुलन्द न होगा.......
युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा जब तक समतल राह न होगी......

                                               #उर्मिल#

.

किसी शर्त में बंधना जिन्दगी को कभी मान्य नही होता पर जीना भी जिन्दगी के लिये सहज नही होता।

शर्त में जीना......स्वीकार नही......

मुझे शर्तों में मत बांधो मुझे प्यार करने दो
क्षणभंगुर है ये जीवन मुझे ऐतबार करने दो
अमरलता  बन के  रिश्तों की डोर  फैली है....
इसे सासों में महसूस कर जीभर के जीने दो!!

सागर बन सकती हैं ये आंखे तो आज बनने दो
अश्रु दर्द  बन छलक  पड़ता है तो  छलकने दो
प्यार की प्यास बुझती है इसी शर्त से अगर......
गवारा हर शर्त है मेरी आंखों में आँसूं रहने दो!!

              🌷उर्मिला सिंह

Wednesday, 7 August 2019

अभिलाषाएं मानव की कमजोरी होती है, मन ही मन उसे गढ़ने लगता है ख्वाबों की दुनियां में विचरण करते करते उसी में खुश होता है हकीकत से पूर्ण तय अनजान ,अनभिज्ञ....

अभिलाषाएं.......

अभिलाषाएं.......
***************
कितनी मीठी मीठी अभिलाषाएं
उर में चुपके चुपके घुमा करती
तितली से रंग बिरंगे पर फैलाए
फूलों के सौरभ को चूमा करती!

अभिलाषाएं जब पूर्ण यौवना होती
चाँदनी की बेचैनी उर में भर लेती
प्रेम के निर्झर में बहकी बहकी इतराती
आनन्द शिखर छूने को आतुर दिखती!

चन्द्रकिरण अप्सरियाँ बन जाती
मन अम्बर पर मोहक रास रचाती
मंत्रमुग्ध अभिलाषाएं स्वप्नों की दुनिया में
सुख दुख में सुलझी उलझी जाती!

कितनी मीठी मीठी होती अभिलाषाएं
सपनो के जीवन  की  सैर करा जाती......
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
             🌷उर्मिला सिंह




Friday, 2 August 2019

विचार....स्वयम के अच्छे हो तो फूल बन जातें हैं, यही गर अभिमान से युक्त हो तो शूल बन जाते है

स्वयम की अनुभूति से निकल हुआ छोटा से छोटा विचार एक बीज बन कर फूुलों की क्यारी तैयार कर देता है और फिर धीरे - धीरे उपवन  बन फूलने फलने लगता है ....
इस छोटे से बीज की क्षमता पर विचारकीजिये ........
ऐसा क्यों होता है ...! क्यों की
उसमे आपके प्राणों का स्पन्दन ह्रदय की धङकन शामिल है। उन विचारों में हमारा अपना रक्त हमारी अपनी सासें बहती हैं.......।
इसलिये मानव जीवन सार्थक बनाइये ..............
अच्छी सोच , अच्छे विचारों का गुलदस्ता समाज, घर परिवार को भेट स्वरूप दीजिए...।
स्वयम महकिये और दूसरों को महकाइये  !!

                         
                             🌷उर्मिला सिंह
                   
                   

Sunday, 28 July 2019

स्वर्णिम जीवन का गुर अब जाना हमने.......

स्वर्णिम जीवन क्या होता है...
अब जाना मैने !
स्वयम को - स्वयम से मिलने का सुख ...
अब जाना मैंने !

वक्त दिया उम्र ने खुद को ......
तराशने का....
क्या खोया क्या पाया......
अब जाना मैंने!

बढ़ती उम्र का रोना अब तो....
भूल गये हम ;
जीवन की कडुवाहट ,अपमानों का बोझ
हवन हुवे सब.......
चिन्ताओं से परे होता है कैसा सुख........
अब जाना मैने !

आंखों की रोशनी का गम- ......
करना क्या अब
लेंस ट्रांस प्लांट से सब दिखता है !
दाँत नही तो क्या गम .....
नये दाँत से खाने का स्वाद ;   
लोगों से जाना मैने !

सखियों के संग सैर सपाटे
पानी पूरी और कचौरी खाते
कुछ मीठी बातें कुछ नोक-झोंक...
बीते जीवन  की प्यारी यादें ;
राग- रंग की महफिल ...
बढ़ती उम्र की मस्ती का
सुरूर क्या होता....
अब जाना मैने !

नाती-पोतों से ढेर सी बातें .....
जीवन के कुछ अनुभव बांटे ;
बेटी बेटे बहुओं के संग मिल बैठ के .....
जीवन का आनन्द क्या होता है
बढ़ती उम्र ने सिखलाया
‎ इस सुख को अब जाना मैंने!

मित्र मंडली इस उम्र की संजीवनी है....
कहकहों और चुटकुलों का दौर....
कभी न समाप्त होने वाली बातें.....
इन्हीं बातों में मशगूल होकर.....
जीवन का स्वर्णिम पल ‎कैसा होता है,
ढलती शाम का आनन्द
अब जाना हमने...!!

अपेक्षाओं ,नफ़रत को भूले...
हँस हँस रिश्ता निभाया हमने
जीवन की बची खुची साँसें....
प्रभु चरणों मेँ अर्पित करना
जीवन में सुकून दे जाता है!
  

धीरे - धीरे बुलावा आयेगा.....
उससे डर-डर के भी जीना क्या ;
पञ्च तत्व की बनी ये काया.....
एक दिन मिट्टी में मिल जाना है!             ...
जीवन का सत्य यही है...
अब जाना मैने.......।
  ‎

                             # उर्मिल