Friday, 29 November 2019

हसीन ख्वाबों के बिस्तर से.....

हसीन ख्वाबों के बिस्तर से उठा गया कोई 
हवा के नर्म झोंकों से दीवाना बना गया कोई!

 लबों पर मुस्कराहट सलीके से सजा गया कोई 
 सुनहरी  किरणों से अंचल मेरा भर गया कोई! 

 दूनिया की चमक दमक में डूबे प्यार के रंग पर 
 अपनी अकलुष मोहब्बत का रंग चढ़ा ग़या कोई!

 बिखरी हो  चाँदनी जैसे गुलाबों के शाख पर.... 
 जिन्दगी के आंगन में चाँद तारे बिखरा गया कोई! 

 फूलों सा नाज़ुक एहसास है उसकी आहटों का 
 एक अनजानी सी प्यास मन में जगा गया कोई! 
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                       उर्मिला सिंह 




Wednesday, 27 November 2019

न पूछ ऐ जिन्दगी क्या बचा पास है...

न पूछ ऐ जिन्दगी उम्र की ढलान पर क्या बचा  पास है
मुस्कानों के संग झरते आंसुओं का अहसासबचा पास है! 

जिन्दगी की ज़ंग में ज़ख्मों का ज़खीरा साथ चलता रहा
पतझर में मधुमास की उम्मीदों  का कारवां बचा पास है!

हजारों तूफ़ान आए हार मानी नहीं जिन्दगी ने......, 
विश्वासों उम्मीदों की अटल डोर का सहारा बचा पास है!

प्रेम की दौलत का खजाना लुटाया  सभी पर जमाने में 
अभी अधरों की मुस्कानों का अवशेष बचा पास है!

,अंधेरी रातों  में जुगनू की रोशनी भी होतीं मोहाल  हैं 
 आज  भी चांदनी  रात  की ख्वाहिशों का ढेर बचा पास है! 
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                           उर्मिला सिंह 

गरीबी

गरीबी जागीर है गरीबों की, भूखे पेट सोना तक़दीर है
आसमा छत है, ज़मीं बिस्तर ख़्वाबों की यही ताबीर है
हजारों बार जीते हजारों बार मरते तेरी दुनिया में मलिक 
छलकते दर्द की सिसकियाँ समेटना उनकी यही तस्वीर है!! 
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                   उर्मिला सिंह 

Sunday, 24 November 2019

हकीकत......

हकीकत की कठोर...... धरती पर हम 

अपने बिखरे सपने....... समेट रहें हैं

आज कल हम.....  अपने अपनों का  

खोया हुआ अपनापन .... ढूढ़ रहे हैं! 
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           उर्मिला सिंह 
  

Thursday, 21 November 2019

राजनीति का अजब गजब हाल.......

मत देना अधिकार है जनता का,बाकी नेताओँ पर छोड़ो  सरकार बनेगी छल बल से या कैसे नेताओँ पर छोड़ों! 

पांच साल बाद नतमस्तक नेता वादों की झड़ी लगायेंगे रोयेंगे गिड़गिड़ायेंगे गिरगिट सा रंग दिखाएंगे पर छोड़ो! 

ईमान उसूल सब गिरवी रख देंगे कुर्सी पाने को नेता 
आदर्शों को बेच तोल मोल से सरकार बनायेगे पर छोड़ो! 

विचारों में साम्य नहीं, कितने दिन टिक पायेगी सरकारें साथ रहेंगे गन्धर्व सुर गायेंगे,खूब तमाशे होगे पर छोड़ो! 

भोलीजनता का दे हवाला कौन किसे देता धोखा समझो 
मुँह मे राम बगल में छुरी,एक थाली के सट्टे बट्टे पर छोड़ो!

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                           उर्मिला सिंह 
                         
 
 





Wednesday, 20 November 2019

बिटिया रानी

बिटिया रानी
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यादों के झुरमुट से..... 
एक तस्वीर उभर कर आती है
चंचल नटखट सी...... 
घर आंगन में दौड़ लगाती...... 
बाग बगीचों में तितली को पकड़ती
भौरों के गुनगुन से, डरती सहमती
चिड़ियों सी चहकती फूलों सी हँसती!

लुका-छिपी के खेलों में....... 
भाई से लड़ती झगड़ती..... 
बरसात के मौसम में
कागज की नाव बनाती
पानी में तैरते देख उसे..... 
ताली बजा हँसती और हँसाती! 

आज वही नन्ही गुड़िया
रिस्तों के प्यारे बंधन में 
पत्नि  माँ बहू बन, 
रिस्तों पर अपना प्यार लुटाती
जिसे हम सभी प्यार से कहते 
       मेरी  बिटिया रानी!! 
             ***0***
          उर्मिला सिंह 

याचना......

मुस्काते प्रकाश फैलाते आते हो,
जीवन भी प्रकाशमय बनादो न!
सुख  दुख  जो  तुम  देते  हो,
उसमें  रस भरना सिखला दो न!
                                   ##उर्मिल##

Saturday, 16 November 2019

आहट......

धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही....    


हैवानियत के आगोश में इंसानियत दम तोड़ रही
आजकल धीरे धीरे एक आहट सुनाई  दे  रही
 फैला है जाल ऐसा आत्मा कलुषित हो रही
सौहार्द हो रहा विलुप्त  क्रूरता जडे जमा रही

 धीरे धीरे एक आहट सुनाई  दे रही....

क्रोध,ईर्ष्या,द्वेष,व्यभिचार आक्रामक हो रहे 
क्षमा शील ह्रदय ,आज सूखी नदिया हो गये
बिक रहा ईमान चन्द सिक्को में यहाँ
प्रेम विहीन जीवन आज श्रीहीन बनते जा रहे

धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही....
 
रोक लों अभी भी क्रूरता के मनहूस सायें  को 
मन को छलनी कर ,लील जाएगी मानवता को
शैने-शैने मानव आदी हो गा इस कुकृत्य का
खून की नदियाँ  बहेगीं होगा नृत्य  व्यभिचार का

  धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही.....
 
दया धर्म करुणा का नामो निशान मिट जाएगा
बहती करूणा  की  नदी आंखों में सूख जाएगी
मछेरे जाल फैलाएं गे  मछलियाँ  तड़ फड़ाएं गीं
होगा हथियारों का बोल बाला,सहमी हर कली होगी
इस विकराल दानव के मुंख में इंसानियत मरती रहेगी

धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही......!!

                                                 उर्मिला सिंह 







 







Thursday, 7 November 2019

मौन...... साँस में प्रार्थना मौन है सृष्टि के संग मुस्कराना भी मौन है.....

वाणी को ही नही
मन को मौन होने दो
लेखनी को ही नही
शब्दों को मौन होने दो!

मौन की मुस्कान....
कुछ और गहरी होने दो
अन्तर्मन में चलते द्वंद को .
मौन सागर में प्रवहित होन दो!

ह्रदय - तम आलोकित
सरल स्वच्छ हो जाने दो
मौन - साधना मे लिप्त मन 
को सरल प्रवाह में बहने दो...! 

मौन  ह्रदय  तट से 
शत रंगी शब्द पुष्प झरने दो 
अन्तर्मन के मौन गूंज से 
जीवन को सुर ताल से सजने दो! 

      उर्मिला सिंह 







Sunday, 3 November 2019

हल्की हल्की सर्द हवाऐं....

हल्की हल्की सर्द हवा मीठा मीठा दर्द
यादों के पन्नों पर उभरे नीले नीले हर्फ़!
                    ***0***
आया माह नवंबर मौसम हुआ गुलाबी
लफ़्ज़ लफ़्ज़ में तुम, ग़ज़ल हुई शराबी! 
                      ***0***
                         उर्मिला सिंह 

Friday, 1 November 2019

गरीबी......

गरीबी जागीर है गरीबों की, भूखे पेट सोना तक़दीर है
आसमा छत है, ज़मीं बिस्तर ख़्वाबों की यही ताबीर है
हजारों बार जीते हजारों बार मरते तेरी दुनिया में मलिक 
छलकते दर्द की सिसकियाँ समेटना उनकी यही तस्वीर है! 
                   *******0******0*******
               उर्मिला सिंह