Tuesday, 10 December 2024

धूप- छांव

      

          धूप...

  कभी धूप मिले कभी छांव मिले 

  कभी फूल मिले कभी शूल मिले

  पांव चलते ही रहे चलते ही रहे...

  पावों से शिकायत छालों ने किया...

  अश्कों की दो बूंद गिरी......

  दिल ने हँस के कहा ये......

 सहते ही रहो ये जीवन है

 यहां भोर  भी होती है

 तिम भी आक्छादित होता है

 गुनगुनी धूप, छांव और  फूल भी हंसते हैं

 मुस्कान भी है गान भी है

 बस कर्मों का  खज़ाना है सब तेरे

 स्वीकार करो,प्रभु नाम जपो

 मुक्ति का बस यही द्वार है तेरे।।

            उर्मिला सिंह

Sunday, 8 December 2024

मुक्तक

दर्दोगम को  दिल  में छुपाये रखती है

कई ख्वाब आँखों में सजाये रखती है

जिन्दगी को तपिश की लपटों से बचाती हुई

नारी पहेली बनी कर्तव्य पर उत्सर्ग रहती है !!

                 ****0****

                       #उर्मिल

                 

सुलझाने से भी न  सुलझे  वो  ज़िन्दगी है

समझ समझ के भी न समझे ऐसी पहेली है

                   ***0***

                   # उर्मिल


Wednesday, 4 December 2024

आज वरदान दे मां....

     आज वरदान दे माँ आज दे वरदान मां

अपने स्नेहा-अंचल की छांव,आज दे वरदानमां 

       हृदय ज्वार अपरिमित आज है

       दिखती  नहीं ...कोई पतवार है

       अगम अनजान पथ राही अकेला....

        दुर्बल मन, शक्ति.... की आस है

   आज वरदान दे मां आज दे वरदान मां 

जीवनपथ निर्वाण बन जाय,आज दे वरदान मां।


        आधार एक तेरा हृदय में...

        अश्रु बूंदे करती मनुहार तुझसे

      विकल मन, क्रंदन करती सांसे

        मुक्तिद्वार का विश्वास दे.....

    आज वरदान दे मां,आज दे वरदान मां 

जर्जर मन पीड़ा काअवसान,आज दे वरदानमां।

          थके पैर ,आज गति प्रदान कर

          संसार के हर भार से मुक्त कर 

         हर सांस लिख रही विरह गीत अब,

         चरण की चाह,पूर्णता का वरदान दे मां 

     चिर सुख दुख के अन्त का आज उजास दे


     आज वरदान दे मां ,आज दे वरदान मां

 पावन चरणों की छांव दे आज वरदान दे मां ।।


                   उर्मिला सिंह



 

    


 

Saturday, 2 November 2024

जिन्दगी में क्या है?

   जिन्दगी में क्या है,कुछ ख्वाब कुछ उम्मीदें

   अगर इनसे खेल सको तो कुछ पल खेलो।।


    रिश्ते लिबास बन गए आज की दुनियां में

    हर चेहरे पर नकाब है देख सको तो देखो।।


    थक  गई अश्कों को छुपाते  छुपाते पलके

    छुपे ज़ख्मों के ज़खीरे देख सको तो देखो।।


  चलते चलते जिन्दगी की कब शाम हो जाए

दिए की लौ कैसे बुझती है देख सको तो देखो।।

  

 समझौता करके चले थे पथरीली राहें तुझसे

पैरों के हंसते छालों कोसमझ सको तो देखो।।

                 उर्मिला सिंह

 

 

   

    

     

Wednesday, 30 October 2024

आज कुछ ऐसे दीप जलाएं

     

चलो दीपावली ऐसी मनाएं 

तिमिर आच्छादित न हो....

अंतर्मन को पावन कर.....

 नेह की लौ तेज कर लें

जगमग जीवन हो  जाए।।.

चलो आज ऐसा दीपक जलाएं।।

तमस सत्य पर आवरित न हो

 प्रीत की बाती विश्वास का तेल हो

 किसी से क्षमा मांग ले .....

 किसी को क्षमा कर दें...

 होठों पर मुस्कानों की ....

 लौ तेज कर लें....

 चलो आज ऐसा दीपक जलाएं।।

 नेह से रीते घड़े में

 ज्योति पुंज जगमगाए

 धरती अम्बर भी मुस्कुराएं

  उत्साह की लहरे उठे...

  प्रत्येक मन में....

  खुशियों के पौध लहराए

चलो आज ऐसा दीपक जलाएं...।।

         🌷 उर्मिल 🌷

      🍁🍁🍁🍁🍁🍁

  

 

Thursday, 24 October 2024

जीवन का यथार्थ

जीवन का यथार्थ.....

🍁🍁🍁🍁🍁

शाम का समय.....

ढलते सूरज की लालिमा....

आहिस्ता- आहिस्ता......

समुन्द्र के आगोश में.....

विलीन होने लगा......

देखते -देखते.....

अदृश्य होगया........

जिन्दगी भी कुछ ऐसी ही है.......

मृत्युं के आगोश में लुप्त होती ....

इंसान के वश में नही रोक पाना.....

लाचार ....बिचारा सा......इंसान

फिर भी गर्व की झाड़ियों में अटकता.....

अहम के मैले वस्त्रों  में

सत्य असत्य के झूले में झूलता....

जीवन की अनमोल घड़ियां गवांता......

जीवन की उलझनों में उलझा

सुलझाने की कोशिश में 

पाप पुण्य की परिधि की...

जंजीरों में जकड़ा

निरंतर प्रयत्नशील

अंत समय पछताता हाथ मलता.......

कर्मों का बोझ सर पर लिए अनन्त में.....

विलीन हो जाता......

जीवन का यथार्थ यही है.....शायद

जो हम समझ नही पाते हैं.......


  🌷उर्मिला सिंह



Sunday, 25 August 2024

कृष्ण जन्माष्टमी पर एक पुकार

सुनो हे कृष्ण मुरारी,व्यथा से पीड़ित नारी

 क्या इस युग में भी तुम आओगे?

प्रश्न हमारा तुमसे है ,हे राघव हे बनवारी

पुकार लगाया जब दीनो ने,दौड़े आए चक्रधारी

हमरी बारी क्यों देर भई कुछ तो बोलो गिरधारी।।

           उर्मिला सिंह

         ******०*****०******