Wednesday, 30 December 2020

2020--एक विश्लेषण...

2020  --एक विश्लेषण......

संग अपने 20-20 जाने क्या क्या लिए जाते हो
खुशियों के पल, दर्द भरे लम्हे संग लिए जातें हो
पलको के तट चूम कर कहती अश्कों की जलधार......
भूल नही पाएंगें सदियों तक तेरा यह निर्मम वार।

 पर कैसे कह दें दिया नही तुमने कुछ भी हमको
आत्मविश्वास,साहस धैर्य का पाठ पढ़ाया सबको
सुसुप्त रचनात्मक  प्रवृतियों को  जगाया तुमने
दूर किया सबसे तो घर मे रहना सीखलाया तुमने ।

भूल गया था इंसान अपनी क्षमता और बिसात
अहम भाव उसका समझा था स्वयंको भगवान
दुखी प्रकृति प्रदूषण से दूषित नदिया जलाशय
लॉकआउट होते मानो लौट आई हो सब में जान।

20-20 जाते-जाते दुआ करना,20-21तुमसा न हो
खुशियों की बरसात रहे भारत का उच्च भाल रहे
राजनीति के गलियारों में  देश प्रेम का भाव रहे
नफरत की राजनीति नही नव विकास नव  विहान हो।

                                        उर्मिला सिंह
 




Sunday, 20 December 2020

बाइस्कोप..

आया - आया, बाइस्कोप आया..
रंग बिरंगा बाइस्कोप देखो ..
जिद्दी आंदोलन की तस्वीर देखो..
विपक्ष का अजूबा खेल देखो...
आओ बहनों भाइयों मुफ़्त का तमाशा देखो !

बच्चों को प्यार बड़ों को सलाम
ताली  बजाओ  मेहरबानो...!!

बाइस्कोप में नही, कहानी मर्दानी लक्ष्मीबाई की
नही कहानी सरदार भगतसिंह जैसे देश भक्तकी...
नही बनाते अठन्नी चवन्नी नही बनाता रोकड़ा..
बाइस्कोप दिखाता सिर्फ सियासत का  थोबड़ा !!

क्यों जम्हूरे सच कहा न तो....
आओ कद्र दानों मेहरबानो..!!

देखो भईया देखो विपक्ष का तमाशा देखो...
अन्नदाताओं को झांसा पट्टी पढ़ाते  देखो...
बिचौलियों को अपना उल्लू सीधा करते देखो...
अपने बैठ कैम्पो में ,ठंढ में गर्मी  का आनन्द उठाते...
हमारे कृषक भाइयों को ठंढ में सिकुड़ते देखो....!!

अब आंदोलन में मेला का रूप देखो..
लगा हुआ स्टाल ,तरह तरह का पकवान देखो...
खाने में काजू बादाम अखरोट है..
ब्रेड पर शहद माखन का लगा लेप है
मुफ्त में बिरियानी रायते का झोल देखो...!

पडगये चक्कर में जम्हूरे ....
तुमतो  बजाओ सिर्फ ताली....
क्यों कि वर्षों से आप यही करते आयेहो..!!

सब मुफ़्त में देते ,अक्ल पर पर्दा डालते
हड़ताल अन्नदाताओं से करवाते
जो छूट गया सिंहासन 
उसका सपना सजाते 
किसानों की जयजयकार बोलते देखो
देखो भाई देखो नेताओं का कमाल देखो..!!

एक बार फिर बजाओ जम के ताली
ताकी सियासत करने वालों की मनजाये दीवाली..!

अन्न दाता भ्रामित 
विचौलियों की वाह... वाह
बाकी लोग उड़ा रहे माल 
व्यंजनों का थाल
विपक्ष मुस्कुरा रहा
अपनी पीठ थप थपा रहा
लगता है सत्ता की चाभी
है उनके हाथ लगी.....
सिहासन दूर नही
कमर कसे बैठे युवराज
कहो कैसा लगा जनाब

जय कलकत्ते वाली तेरा वार न जाये खाली
बजा जम जम के ताली.........

कोई कृषी कानून का  कागज फाड़ता
नेता मौका चूकते नही  कुर्सी के लिए लड़ता
स्वार्थ के अंधे ये क्या भला करेंगे देश का
वर्षों सोए रहते  चुनाव करीब जब आता
खुल जाती है नीद , दनादन सुर्खियों में आता
फिर एक पर एक फ्री ,बस यात्रा फ्री ,लगान फ्री
एक रुपये में भर पेट भोजन फ्री...
शोर शोर शोर ,जीत गए नेता लोग,
जो अपने को राजा से कम नहीं समझता 
पर जनता के पल्ले क्या पड़ता..
केवल ठाला ही ठाला होता ..

बजा जम्हूरे ताली, जय काली कलकत्ते वाली,
बंदेमातरम..जय भारत जय हिंदुस्तान......

                                 उर्मिला सिंह







Friday, 18 December 2020

गज़ल

जिन्दगी  ख़फ़ा तुझसे सारे  नजारे  हो गये
उम्र की देहरी पे रुकने को मजबूर हो गये!

बेपरवाह जिंदगी हौसलों की कश्ती ले चली 
जिस जगह पर रुक गई वही किनारे हो गये!!

गरीबी की चक्की में पिसते रहे ता उम्र जो
बच्चे स्कूल जाने को उनके तरसते रह गये!!

सरेआम ज़मीर की बोली लगती रही यहाँ
चन्द  सिक्को पे डोलते ईमान देखते रहगये !

इस दौर को कोसना भी लाजमी होता नही
हर दौर में जयचन्द को झेलते रहगये!!

धर्म को खेल बना इन्सान को लड़ाती रही सियासत 
सियासत में नेता भी इन्सान से हैवान बन के रहगये!!
                          ****0****
                                      🌷उर्मिला सिंह




Monday, 14 December 2020

सांस की सरगम

सास की सरगम पर गीत है जिन्दगी की 
बज रही है धुन कभी खुशी कभी गम की! 

मायूसियों से घबड़ाना क्यों ,कांटों से डरना क्या 
खोज वो ठिकाना जहाँ चिंता न हो गम की! 

अजनबी से ख्वाब मेरे  हँस रहे आज मुझ पर 
क्या पता था उजालों में छांव मिलेगी ग़म की! 

जिन्दगी देके भी नहीं चुकते जिन्दगी के कर्ज कुछ 
पर वक्त बैठा कर रहा इशारा सुरमई मंद की ! 

है न अज़ीब सी बात इस मुई जिन्दगी की..... 
अश्क आँखों में अधर पे गान जिन्दगी के नज़्म की!! 
                 *******0*******
                 उर्मिला सिंह





Saturday, 12 December 2020

गज़ल....

मेरे ईश्क को यूं फ़ना ना करो,मेरी जिन्दगी को धुँवा न करो
मेरे अधरों को गुनगुना ने दो लफ़्ज़ों को जरासांस लेने दो।।

आँगन में झांकती चाँदनी परीें को चंद्र खटोले से उतरने दो
खोल दो खिड़कियां ,दरीचों से भी ताजी हवा आने दो।।

हँसते होठो पर भी नमी की बरसात हो जाने दो
अश्कों से बोझिल आंखों को हँसी का स्वाद चखने दो।।

 साज के तारों से मधुर गीतों की झंकार निकलने दो
 मधुमास रश्क कर उठे जिन्दगी में ऐसी बहार आनेदो।।

आज दिल की बात खिलखिलाते फूलो सा झर जाने दो
 आज आसमां को तन्हाई में रात से गुफ़्तगू करने दो।।
                ******0******0*******
   
                                 उर्मिला सिंह
 

Thursday, 10 December 2020

पूजा ,अर्चन

क्या पूजा क्या अर्चन..
जब भाव नही पावन।
उस वाणी का क्या करना..
 जब हर्षित न हो मन ।।

 क्या रूप, क्या  लावण्य..
 जब ह्रदय नहीं करुणामय ।
 बहती नदिया का क्या करना..
 जब मन प्यासा रह जाय ।।

  क्या  सोना  चांदी  क्या  महल..
  जब  जख्मों  के न हो  मलहम ।
  उस जीवन का होता कोई अर्थ नहीं..
  देश पे मिटने का जिसमें संकल्प नही।।
  

  क्या होता धर्म  क्या है कर्म..
  जब उर में बैठा दुश्मन अहम ।
  यदि ज्ञान ज्योति नहीअन्तर्मन में..
   रहे तिमिर जीवन के प्रांगण में।।


   क्या होगी सन्तति ,पुत्र - पुत्री..
   यदि मर्म न ममता का समझे ।
   गीत - ग़ज़ल रस विहीन लगे..
   जब शब्द ह्रदय को  छू न सके ।। 
        *****0*****
                            उर्मिला सिंह 
   
   
   
   
  
   
   

 
  
  


  

Sunday, 6 December 2020

हे वीणा वादनी.....

हे वीणा वादिनी ......
हे उद्धार कारणी  मुझे अवगुणों  से दूर रखना
मन के अंधेरे को ज्ञान ज्योति का प्रकाश देना
पंकज सी निर्मलता मेरी जिन्दगी को प्रदान कर
मेरी  राहों को अपनी आशीष का वरदान देना!!
माँ शारदे वर दे.....

हे वीणा वादिनी........
मेरा शब्द शब्द तेरा रूप हो सत्य का पतिबिम्ब हो
निर्भीक  हो  अभिमान से दूर, प्रेम  का प्रतीक हो
ज्ञान ज्योति बिखेरे....  इंसानियत  का  संदेश दे
मेरी रचना का ऐसा स्वरूप हो माँ यही वरदान हो!!
माँ शारदे वरदे......

हे वीणा वादिनी..........
दुष्टों का संहार कर सके शब्दों को ऐसा आकार दो
हर मन की  व्यथा से द्रवित हो  मुझे ऐसा ह्रदय दो
मेरी सास सास में तूँ ,चरणों में समर्पित तन मन रहे
जीत मेरी हार भी तुझको अर्पित ,मन को विश्वासःदो
माँ शारदे वर दे....

हे वीणा वादिनी.....
बसन्ती चूनर ओढे धरा मुस्कुराये मेघ की कृपा रहे
बन बाग तरुवर उल्लसित पक्षियों का कलरव रहे
पुष्प झूमे डाल डाल मदमस्त भंवरे कलियों को चूमे
मलय सुगन्धित बहे प्रीत से हर ह्रदय चहकता रहे..
माँ शारदे वर दे......!
मां शारदे वर दे........!!

                                      #  उर्मिल





Friday, 4 December 2020

चल-चल रे मनवाँ राम दुवारे...

आकुल व्याकुल ह्रदय तुझे पुकारे
     चल - चल रे मनवाँ तूँ राम दुआरे......।।

     प्रभु मेरे!भटकत मन बिन तेरे
     अब तो उद्धार करो देव मेरे
     तरसत हिय कमल नयन को पल - पल
     किस विधि परसू चरण तिहारे।।    
     
     प्रभु मेरे! भटकत मन बिनु तेरे
     चल -चल रे मनवा राम दुआरे......।।
   
    कठिन कुटिल ये दुनियां ना भावे 
    नित-नवल रूप में माया भरमावे
    तृष्णा -ठगनी मोहिं छलती जाऐ....।।
    'अहं' की छाया डेरा डाले
  
   तेरी महिमा तूँ ही जाने......
   चल-चल रे मनवा राम दुआरे ......।।
     
    जीवन रसहीन हुआ जाता है
    नेह मोह फांस बना जाता है
    तेरी करुणा की  रस धार का
    प्यासा मन प्यासा ही रह जाये .....।।
    
   आकुल विकल ह्रदय तुझे पुकारे
   चल चल रे मनवाँ राम दुवारे......    !!
  
     जग विस्तीर्ण,मोह उदधि लहरों से
     मुक्त करो,अपने निर्मल प्रकाश से
     मुर्झाती पथ प्रतीक्षा में तन की डाली
     पद पूजन को कब तक मन तरसे .......!!
      
       नैनन की लौ मद्धिम पड़ती जाए
       चल -चल रे मनवाँ राम दुआरे...... ...।।
                  *****0*****
                              
                                    उर्मिला सिंह  
     
     
     
     
     
     












Wednesday, 2 December 2020

कोमल सपनों के कोई पँख न काटो. ..

कोमल सपनो के कोई पंख न काटो
उड़ने दो इनको बन्धन में मत बांधो।

स्वप्नों को जब आकाश मिलेगा
मन वीणा से सुर गान सजेगा
मेघों से तृप्ति ,किरणों से दीप्ति लिए
स्वप्नों की मेघमाला से धरती को सजायेगा।

कोमल सपनो का आरोहण मत रोको
उड़ने दो इनको बन्धन में मत बांधो।।

स्वप्नभाव बीजों का संग्रहालय होता
लहलहाते अंकुरित भाव धरा पर जब
धरती स्वर्ग सम दिखने लग जाती तब
नव सपनों से पुष्पित पल्वित धरा होती।

कोमल सपनो का अवरोहण मत रोको
उड़ने दो  इनको  बन्धन में मत बांधो।।

नव प्रभात नव विहान चाहते हो नव स्वप्न पढ़ो
नव जवान नव भाव नया हिंदुस्तान  चाहते हो
तो संस्कृति संस्कार नव ज्ञान से हिदुस्तान बदलो
राष्ट्र भक्ति को सींमा परिधि में मत बांधो....
ये ह्रदय  ज्वार है जो कण-कण में बसताहै
देश की  तरुणाई  में देश भक्ति का उबाल आने दो ।

नूतन में ढलना है गर तो बन्धन में मत बांधो
 तरुणाई को बिछे आँगरों से परिचित होने दो।
 
इनके कोमल सपनो के कोई पंख न काटो
सपनो को साकार करो बन्धन में मत बांधो।।
              ******0******
              उर्मिला सिंह