मत घबड़ा रे मना......
जग है दो दिन का बसेरा।
जीत कभी तो हार कभी
लहराए कभी खुशयों का समन्दर
हो जाय घनेरी रात कभी
मत घबड़ा रे मना।।
फ़ूलों की सौगात कभी
कभी मीले राह में कांटे
ये जिन्दगी की राह है प्यारे
दिखे नही समतल राह यहां।।
मत घबड़ा रे मना.....
उड़ जायेगा एक दिन पक्षी
जल जायेगी ये नश्वर काया
रह जायेगी तकर्मों की गाथा
जीवन बीत गया यूँ हीं. मिथ्या....।।
मत घबड़ा रे मना.....
ये जग है दो दिन का बसेरा।
कौन है अपना कौन पराया
समझ न पाया कोई यहां....
जख्मों की आबादी है...
लफ्जों में है घाव यहां....।।
मत घबड़ा रे मना......
ये जग है दो दिन का बसेरा....।।
उर्मिला सिंह