Tuesday, 23 February 2021

चित्रकार.....

चाहे बनाओ चाहे मिटाओ तुम
तेरे हाथों की बनी तेरी तस्वीर हैं हम
तेरी रचना का नन्हा सा दीपक हैं हम 
चाहे जलाओ चाहे बुझाओ तुम।।

जाने  चित्र कितने बनाते हो तुम
पँचरंगो से सजा के भेजते हो तुम
वक्त की डोर का उसे कैदी बना .....
हाथों में श्वास डोर रखते हो तुम।।

चाहे बनाओ चाहे मिटाओ तुम
तेरे हाथों की बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।

कर्म की भित्ति पे सुख दुख उकेरे
डाल देते हो अथाह सागर में तुम
नन्ही सी बूँद छूती मोह माया का किनारा
नये जग में विस्समोहित करते हो तुम।।

फँसाते उसे मोहमाया के बन्धन मे तुम
तेरे हांथो से बनी तेरी तस्वीर हैं हम।

प्रज्ञाचक्षु खुलने से पहले 
तृष्णा के मरुस्थल में घुमाते हो तुम
अनगिनत कामनाओं के शूल
ह्रदय की वादियों मे उगाते हो तुम

शूलों की सेज सजाओ या बचाओ तुम
तेरे हाथों से बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।

जीवन की कश्ती मंझदार में पड़ी
तूफ़ानी लहरें राह रोके खड़ीं.....
ऐ चित्रकार! तुमको पुकारे तुम्हारी कृती
अब तो आगई बिदाई कीआखिरी घड़ी।।

चाहे उबारो चाहे डुबाओ तुम
तेरे हांथो की बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।
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         उर्मिला सिंह






















Sunday, 21 February 2021

बसन्त शुभ हो......

बसन्त शुभ हो
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नव आस नव बिस्वास
बाटने आगया बसन्त
फूलो से सुसज्जित धरा,
रंगों से दिशाएं सज गईं
इंद्रधनुष सा सौंदर्य बिखेरता
आगया ऋतुराज बसन्त।।
पीत वसन हुई धरा
पीले सरसो के खेत
अमराई में कोयल कुहके
मंजरी से लदे आम के पेड़
शुभ हो जनजीवन को बसन्त

बसन्त का अप्रतिम त्योहार.....
शुभ हो उन्हें जिनके विचार
पतझड़ से नग्न हो चुके
उनके कुंठित विचारों को
विभिन्नता में एकता की
समरसता मिले.....।।
शुभ हो उन्हें जिनके
शब्द रसहीन हो चुके
उन शब्दों के गागर
प्रीत अनुराग से छलक उठे
बसन्त शुभ हो उन्हें....
जो एक होकर भी एक न हो सके
राग द्वेष के दुष्चक्र में
अपने अन्दर के छुपे 
आनंदके स्रोत्र को सुखा बैठे
उनके अंदर.....
सरस् कोमल भावों के पुष्प
ह्रदय की वादियों में ख़िलादें
फागुनी हवाओं की मस्ती में
फाग के गीत गुनगुना उठे।।

बसन्त ज्ञान की देवी 
मां सरस्वती की पूजा ऋतु है
हर देहरी करुणा कीअल्पना सजे
बसन्त के रंग गहरे हों इतने
हर गली कूचे सुनहरे हो उठे
भावों की मंजरी से ....
माँ शारदे को नमन करें.....

बसन्त शुभ हो उन्हें भी....
जो बसन्त को अनुभव न कर सके
आनन्द वंचित ह्रदय को .....
बसन्ती आनन्द की अनुभूति हो
बसन्त शुभ हो.... शुभ हो....शुभ हो।।
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       उर्मिला सिंह

Saturday, 20 February 2021

दुनिया की रीति यही है.....

ये दुनियाँ एक झमेला है
लगा यहां झूठों का मेला है
मत उदास हो ऐ मेरे मन
इस अज़ब दुनियाँ में .....
जो सच्चा है वही अकेला है।।

         उर्मिला सिंह

Wednesday, 10 February 2021

गज़ल

नित नए षणयंत्र रचकर उसे रुलाना चाहता है
 वो ईमानदारी की राह चल मुस्कुराना चाहता है।।
  चमन की हर शाख पर घात लगाए बैठेहैं उल्लू 
वो हौसलों के तीर से चमन बचाना चाहता है।।

   तुम लाख डुबोना चाहो कश्ती उसकी
  तूफ़ानों का आदी तूफानों से खेलना जनताहै।।

 आँखों के छलकते आंसूं इंसानियत की जुंबा है 
 सतकर्म से इन्सानियत का संदेश देना चाहता है।

 छल बल  से सत्ता पाने की चाह में मशरूफ़ तुम
 वो शहीदों से मिली दौलत सहेजना चाहता है।।

माना कि झूठ के शोर में सत्य कराहता रहता
मानो न मानो सत्य देर सबेर जीतना जनता है।

हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और हुवा करते हैं
वो तुम्हारी चालबाजी को नाकाम करना जानता है।।

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                                       उर्मिलासिंह

 



 

Friday, 5 February 2021

तेरी इक नज़र के सवाली हैं

जिंदगी तेरी हर बात निराली है 
मुट्ठी बन्द आती ,जाती हाथ खाली है।

ओरत का झुकना उसे ऊचां स्थान देता है
फलो ,फूलों से भरी झुकती वही डाली है।

जिधर देखो वहीं आदमी रंगबिरंगा है
हर चेहरा लगता यहां पर जाली है।

तरसता जो छप्पर और रोटी को
उसे क्या समझ चाँदनी है या रात काली है।

ऐ मालिक!तेरे गुलशन की हालत क्या हो रही
पतझड़ ही नज़र आता तेरी इक नज़र के सवाली है।

                  उर्मिला सिंह