चाहे बनाओ चाहे मिटाओ तुम
तेरे हाथों की बनी तेरी तस्वीर हैं हम
तेरी रचना का नन्हा सा दीपक हैं हम
चाहे जलाओ चाहे बुझाओ तुम।।
जाने चित्र कितने बनाते हो तुम
पँचरंगो से सजा के भेजते हो तुम
वक्त की डोर का उसे कैदी बना .....
हाथों में श्वास डोर रखते हो तुम।।
चाहे बनाओ चाहे मिटाओ तुम
तेरे हाथों की बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।
कर्म की भित्ति पे सुख दुख उकेरे
डाल देते हो अथाह सागर में तुम
नन्ही सी बूँद छूती मोह माया का किनारा
नये जग में विस्समोहित करते हो तुम।।
फँसाते उसे मोहमाया के बन्धन मे तुम
तेरे हांथो से बनी तेरी तस्वीर हैं हम।
प्रज्ञाचक्षु खुलने से पहले
तृष्णा के मरुस्थल में घुमाते हो तुम
अनगिनत कामनाओं के शूल
ह्रदय की वादियों मे उगाते हो तुम
शूलों की सेज सजाओ या बचाओ तुम
तेरे हाथों से बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।
जीवन की कश्ती मंझदार में पड़ी
तूफ़ानी लहरें राह रोके खड़ीं.....
ऐ चित्रकार! तुमको पुकारे तुम्हारी कृती
अब तो आगई बिदाई कीआखिरी घड़ी।।
चाहे उबारो चाहे डुबाओ तुम
तेरे हांथो की बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।
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उर्मिला सिंह