Sunday, 31 March 2024

अन कही व्यथा......

अन कही व्यथा

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अनकही व्यथा दर्द का भंडार है

कहूं किससे दर्द में डूबा संसार है

मन  ठूंठ सा लगने लगा है अब.…

दरक्खत से पत्ते गिरने लगे हैं अब...


जिंदगी धूप में  छांव  ढूढती है 

हर पल ख्वाब के सुनहले सूत बुनती है 

खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाएंगे....

इसी एहसास के सहारे सांस चलती है।


ढूंढती रहती आंखें खोए हुवे लम्हों को

हकीकत के चश्में अपनों के चेहरों को

काश फ़साना  बनती न जिन्दगी यूं.....

मौत भी आसान लगती जिन्दगी को।।


सदाए देती हैं ये हवाएं आज भी....

उम्र के पन्नों पर लिखा प्यार का हर्फ आज भी

समझ न पाया ये जग मोहब्बत की बात को

उम्र मोहताज आखिरी सीढियां पार करने को।।


        उर्मिला सिंह

   

             







Saturday, 9 March 2024

बस यूं ही....जख्मों की अन कही कहानी....

ज़ख्म से जब जख्म की आंखे मिली

दिल के टुकड़े हुवे जख्म मुस्कुराए.....।


जख्म ने  हंस कर जख्म से पूछा.....

कहो कैसे गुजरे दिन अश्कों के समंदर में...।


अतीत के अंचल के साए में रात गुजरी

दिन की न पूछ यार मेरे की कैसे गुजरी।।




        उर्मिला सिंह