Tuesday, 30 April 2019

न हम सफ़र न हमनशीं होगा कोई तेरा,प्रण तेरा है तुझे ही पूरा करना होगा

जन जन की आवाज......
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नीद कहाँ उन आंखों में जो देश भक्ति का मतवाला हैं
विजय तृषा बढ़ती  जाती  देख के पाँवों  का छाला हैं!

सुकून नही उसको तबतक अरि  दहन न हो जबतक
उर में दाह कण्ठ में ज्वाला नित आगे बढ़ता जाता है !!

एक लक्ष्य है एक सफर एक ही मंजिल है उसकी
माँ भारती का शीश न झुकने दूंगा मन में ठाना है!!

सत्य का उज्ज्वल शंख उठा कर रहा हुँकार चतुर्दिक
तीर चुभें है तन मन में फिर भी शेर गर्जता जाता है

शक्ति विचारों की जीवन में सुख का नाम नही,
देश का यह वीर सपूत महा गठबंधन पर भारी है!!
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              🌷 उर्मिला सिंह

Monday, 29 April 2019

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा,हम बुल बुले हैं......


सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा हम बुलबुले हैं इसके........
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चतुर्दिक काँव काँव की आवाजें है देती सुनाई
कहीं  बुलबुल की आवाजें  है देती नही सुनाई
अभद्र वक्तव्यों सेे खुद को साबित करते हैं बलशाली
जनसेवा का ढोंग रचते भरते हैं जेब अपनी खाली!!
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                        🌷उर्मिला सिंह

Sunday, 28 April 2019

मौसम का चरखा......

मौसम का चरखा.....
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मौसम का चरखा ऐसा बनाया भगवान ने ,
पतझर है तो मधुमास भी  मुस्कुराना चाहिये !!

एकरंगी जिन्दगी रसहीन हो जाती है साथियों
तपती धरा पर घटाओं के प्रीत की बौछार होना चाहिये!!

फैलातें हैं जो नफ़रत का धुवां इस जमीन पर
अंतर्मन में उनके मोहब्बत की शमा जलाना चाहिये!

गुल कर दिया ख्वाब  हमने सारे
चाँद तारों को भी नीद आना चाहिये!!

प्रेम,करुणा से छलकते मर्म, मन के आंगन में,
श्रमभाव से पूरित लोकगीतों का, मधुर संगीत होना चाहिये!

दिन गुज़रता है  बेवज़ह रात गुजर जाती है,
शनैः शनै: जिन्दगी को खुद से निजात मिलना चाहिये!!
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                   ।🌷उर्मिला सिंह

Saturday, 27 April 2019

तन्हाईयाँ....

जब से तन्हाइयों में जीने का सलीका आगया ,
तब से खुद को पहचानने का तरीका आगया!!

खामोश लबों की भी अपनी कहानी होती है
जिन्दगी जीने कि येअदा भी निराली होती है!

                🌷उर्मिला सिंह

Sunday, 21 April 2019

सांसों के दीपों को जलते बुझते देखा है......

साँसों के दीपों को जलते-बुझते देखा है...

         मृद सपनों को हमनें मरते देखा है,
         अरमानों को यहाँ  तड़पते देखा है
         सुख की अंजुरी में........
         वेदना  के अंकुर पनपते  देखा  है!
        
     साँसों के दीपों को जलते-बुझते देखा है...

        आशा में भ्रमित मन को जीते देखा है,
        मन को चंदा सा शीतल बनते देखा है
        छटते तम,खिलती आभा की चाहों में
        पल - पल   रातों  को  मरते  देखा  है!

    साँसों के दीपों को जलते - बुझते देखा है....

        नयन  घट  छल करते रहे सदा ,
        विरही मन सुलगता ही रहा सदा
        प्रीत परीक्षा कब होगी पूरी,जानूँ ना
        क्लान्त देह, सिसकते मन को हँसते देखा है!

   मैंने साँसों के दीपों को जलते - बुझते देखा है....
       
                                             🌷 उर्मिला सिंह

Sunday, 7 April 2019

देश की भाव भरी मिट्टी की सुगन्ध विस्मृत होती जारही वाणी की शक्तियां नेताओं की चाकरी में मशगूल होती जारही

आज देश को मुक्कमल सरकार मिलना चाहिए
***आज देश को मुकम्मल सरकार मिलना चाहिए
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अगर  है  प्रीत देश से , तो सत्य परखना चाहिए
आज आजाद भगत सिंह जैसा देश भक्त होना चाहिए!

आज देश को मुकम्मल सरकार मिलना चाहिए!

देश की दीवार हिलाने पर जुटी हैं पार्टियां सभी
आज देश को मुक्कमल सरकार मिलना चाहिए!

आज देश को मुकम्मल सरकार मिलना चाहिए!

हंगामा,भीड़ जुटाना मकसद होगया है पार्टियों का
देशवासियों एक जुट होकर भ्र्ष्टाचार मिटाना चाहिए!

आज देश को मुकम्मल सरकार मिलना चाहिए!

देश किसी एक की जागीर नही होती जान लो
अब देश से वंशवाद की बुनियाद हिलाना चाहिये!

आज देश को मुकम्मल सरकार मिलना चाहिए!

प्रेम मोहब्बत की रचनाएं लिखते रहे हम सभी
आज कवि कलम को तलवार की धार होंना चाहिए!

आज देश को मुक्कमल सरकार मिलना चाहिए!

                          जय हिन्द

               🌷उर्मिला सिंह

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