Tuesday, 27 February 2024
बस यूं ही......
Sunday, 18 February 2024
नारी...का दर्द
सात भांवरों की थकान उतारी न गई
दो घरों के होते हुवे नारी पराई ही रही।
जिन्दगी का सच ही शायद यही है.....
सभी कोअपनाने में अपनी खबर ही न रही।।
पर ये बात किसी को समझाई न गई।।
उर्मिला सिंह
Saturday, 10 February 2024
ख्वाब....मन और मैं......
कभी कभी मन ख़्वाबों के .....
वृक्ष लगाने को कहता......
सीचने सावारने को कहता....
दिमाग कहता ....
पगली !तेरे पौधों को सीचेंगा कौन
किसे फुर्सत है .....
तेरे ख्वाबों को समझने का......
तेरी आशाओं की .....
कलिया चुनने का.....
ये दुनिया वर्तमान को जीती है
अतीत को भूल जाती है .....
भविष्य के सपने बुनती है.....
इस तरह जिन्दगी चलती है
जिन्दगी की इतनी सी कहानी है.....
तुम हो, तो दुनिया अपनी है
नही तो एक भूली बिसरी कहानी है।
उर्मिला सिंह
Friday, 2 February 2024
बस यूं ही....कलम चल पडी
बस यूं ही....कलम चल पड़ी।
जीवन की ऊबड़ खाबड़ पगडंडियों पर
कभी धूप छांव कभी कंटकों पर चल पड़ी
आंसू और मुस्कुराहटों सेउलझ पड़ी।।
बस यूं ही ......कलम चल पड़ी।
कभी सूनी दीवारों को देखती
यादों के चिराग जला कुछ ढूढती
नज़र आते मकड़ी के जाले
छिपकली के अंडे टूटी सी खटिया पड़ी।।
बस यूं ही .....कलम चल पड़ी।
कुछ नीम की सूखी दातून
तो कुछ पुराने दंत मंजन की पुड़िया पड़ी
साबुन के कुछ टूटे टुकड़े
गर्द धूल से भरी टूटी आलमारी रोती मिली।।
बस यूं ही .....कलम चल पड़ी।
मेज पर पडे कुछ पुराने कागज के पुलिंदे,
बिखरे अपनी करुण दास्तां सुनाते
गुजरी रातों की कहानी सुनाते।
कलम चलती रही शब्द तड़पते रहे
रूह सुनाती रही दस्ता अपनी पड़ी पड़ी।।
बस यूं ही.....कलम चल पड़ी।
पूजा की कोठरी के धूप की सुगंध -
से लगता सुवासित आज भी खंडहर
मंत्रोचारण घंटे की आवाज गूंजती कानों में
शंख ध्वनि प्रार्थना के भाव प्रचंड
कलम भी दर्द की कराह से हो गई खंड खंड
कुछ न कह सकी बस चलते चलते रो पड़ी।।
बस यूं ही.....कलम चल पड़ी।
उर्मिला सिंह