Friday, 26 March 2021

होली का रंग......

कान्हा ना कर......
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कान्हा ना कर मों संग बरजोरी 
छुप छुप देखत सखियाँ मोरी
लाल गुलाल रंग भई चोली 
नख सिख डूबी प्रीत रंग में तोरी! 

कान्हा ना कर मों संग बर जोरी..........

प्रीत रंग से दूजा रंग न कोई,
अब न चढ़े लाल गुलाबी कोई 
छोड़ दे नटखट नर्म कलाई 
यूं ना कर कान्हा जोरा  जोरी! 

कान्हा ना कर मों संग बरजोरी....... 

बाज रही पाव पैजनियाँ मोरी 
चमकत मुख पर नथुनियां मोरी 
बजा प्रीत रस की आज बाँसुरिया....... 
तब खेलूँ  तुझ संग होली सावरिया.... 

बांकी चितवन से न देख साँवरिया
कान्हा ना कर मों संग जोरा जोरी।।
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         उर्मिला सिंह




Saturday, 20 March 2021

भाओं का गुलदस्ता......

सही फैसले पर अटल रहना कामयाबी की निशानी होती है।
फैसला करके भूल जाने वालों से मंजिल दूर होती है।।

सूरज अंधेरा दूर करता है,पर अंधियारी रात भी होती है।
अज्ञानता के अंधकूप को ज्ञान की रोशनी दूर करती है।।

 महलो में बैठ कर झोपड़ियों की बातें अच्छी   लगती है 
 दर्दे-गरीबी को क्या जानो जो रातों में मजबूर सिसकती है।।
 
भूखे नङ्गे बच्चों के तस्वीरों की कीमत आंकी जाती है
फुटपाथ भूख से मरते बच्चों की बस्ती होती है।।

जिस आबो हवा में रहते हैं क्या बतलायें क्या क्या सहतें हैं।
रोटी महंगी,आंसूं की कीमत सस्ती होती है।।

स्वार्थ,नफ़रत की हवा किसी वायरस से कम कहाँ होती।
एक अमनो चैन छीनती दूसरी जिन्दगी मग़रूर
 करती है।।


              उर्मिला सिंह

Tuesday, 16 March 2021

प्राण पखेरू....

प्राण पखेरू जब उड़ गए ....
अश्रु पूरित नैन, सब देखते रह गए।

ढह गई अभिमान की अट्टालिकाएँ
द्वेष ,ईर्ष्ययाग्नि से, मुक्त आत्माएं
ये जगत किसका रहा है ,सोचो जरा.....
पंचतत्व की काया पंचतत्व में मिल गए।।

अश्रु पूरित नैन, सब देखते रह गए...।

मृग तृष्णा सदा छलती रही  उम्र को
भटकती काया बांहों में आसमाँ भरने को
अनमोल जिन्दगी निरर्थक ही रही जगत में
अंत समय कर्मों की भरपाई करते रहगये।।

अश्रू पूरित नैन,सब देखते रह गए....।
         
एक मुट्ठी राख आखिरी दौलत रह गई 
वो निशानी भी अंततः प्रवाहित होगई 
दया करुणा इंसानियत होतीअचल संपत्ति
जन्म मृत्यु अटल सत्य,चिरनिद्रा में विलीन होगये।।
अश्रु पुरित नैंन ,सब देखते रह गये।
            उर्मिला सिंह

Wednesday, 3 March 2021

चलो साथ -साथ चलते हैं हम...

चलो साथ-साथ चलतें हैं हम...
जिन्दगी दुबारा मिलें न मिले
कुछ जख़्मों को तुम भूल जाओ 
कुछ जख़्मों को हम भूल जाएं ।

चलो साथ-साथ चलतें हैं हम...!

तुम हो तो हम हैं हम हैं तो तुम...
बँधी जिन्दगी तुमसे फिर क्यों हो चुप
फिर ये मौसम और हम,संग -संग हो न हो
उन लम्हो में अकेले रह जाएंगे हम।

चलो साथ-साथ चलते हैं हम...!

यादों का कारवाँ पूछेगा जब तुमसे
कहाँ छोड़ आये  हम सफ़र को अपने
कैसे उससे आँखे मिलाएंगे हम
उन हसीन लम्हों को क्या भूल पाएंगे हम।

चलो साथ साथ चलते हैं हम....!

चाँदनी रात, हाथों में हाँथ
रश्क़ करता जिसे देख कर चाँद
गिरह यादों की खुल जाएगी जब
बार- बार ख़ुद को कोसेंगे हम।

चलो साथ साथ चलतें हैं हम...!

अहम के भँवर में फसे जिस्म दो
किनारे छूने को तरसते हैं वो....
तोड़ कर अहम की जंजीरें.....
सप्त भाँवरों की कसमें निभातें हैं हम।

चलो साथ-साथ चलतें हैं हम...!!

                         उर्मिला सिंह