Friday, 30 July 2021

शाख के पत्ते....

शाख के पत्ते
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झर रहे पात पात
छूट रही टहनियां
कौन सुनगा यहां।
दर्द की कहानियां।

 टूट गये रिस्ते नाते
 रह गई अकेली टहनियां
 धूल धुसरित पात ये
 जमीन पर पड़े
 कोई आँधियों में उड़ चले
 कोई पानियों में भींगते 
 मिट्टी में ही मिल गए।।

पात पात झर रहे
सुनी पड़ीं गईं टहनियां
कौन सुनेगा यहां दर्द की कहानियां।

दिखा रहा तमाशा अपना
जग का सृजनहार यहां
नव कोपलों के आने तक
होगया  वीरान  यहां....
कौन सुनेगा यहां दर्द की कहानियां।

बज रहे नगाड़े, मिल रही बधाइयां
शाखों पर आगई हरी हरी पत्तियां
नव कोपलों से  सुसज्जित शाख
भूल गई विरह वेदना....
कौन सुनेगा दर्द की कहानियां।।

बिखरे बिखरे शब्द है
भाव  खोखले होगये
 रीत जगत की यही...
आने वाले कि उमंग में
भूल गए दर्द की कहानियां...


        उर्मिला सिंह



Tuesday, 20 July 2021

कर्म पथ....

अंतर्मन जागृत हो  ऐसा कुछ यतन करो
कण कण में रमने वाले को पाने का जतन करो।

     मन में सुचिता सद्भाव रहे सदा तेरे
 जीवन पथ आलोकित हो कुछ ऐसा जतन करो।

   कर्म पथ में शूल,कभी पुष्प मुस्काते हैं
शूलों में जीने की आदत हो कुछ ऐसा मनन करो।

     जीवन के तीन पहर तो बीत गए खाली....
अन्तिम प्रहर,सही होजाय कुछ ऐसा चिंतन करो।

    प्रत्येक विधान प्रभु का मंगलमय होता है
 श्रद्धा विश्वास  मन में रहे ऐसा सुमिरन करो।

आसुरी प्रवृति का नाश करुणामय ही करते 
जीवन सुपथ पर चलते रहने का ऐसा यतन करो।

जिस धरती पे जन्म लिया ऋणी रहोगे आजन्म
  सत्ता मोह छोड़ देश हित में कुछ कर्म करो।।
             
              उर्मिला सिंह

   

 






 


   

Saturday, 17 July 2021

सावनी कजरी....

सखि री सावन आयो द्वार...
सखि  री सावन आयो द्वार...
 ताल तलैया छलकन लागे,
 अरेरामा!लहरन लागे धान.......
सखि री सावन आयो द्वार. .   ।।
 
झिमिर झिमिर बदरा बरसे 
तृषित धरा के मस्तक चूमे
पातन बुंदिया मोती बन चमके
अरे रामा!शीतल.... बहत बयार....।।

सखि री सावन आयो द्वार... 


बन उपवन हरिताभ छाए 
शाख शाख लिपट मुस्काये
नाचत मोर पंख फैलाये
पपीहा पीहू पीहू छेड़े तान
सखि री सावन आयो द्वार.... ।।


गलियन गलियन कजरी गूंजत
मिलजुल सखियां  झूला झूलत
कंगना खनकत...,कुंतल बिखरत
पिया की याद बिजुरी सम कौंधत
सखि री सावन आयो द्वार....।।

बैरिन भई कारी बदरिया.....
बौराइल रात अन्हरिया.....
लाख संभालूं धानी अंचरवा
 पुरवइया निगोडी उड़ा लेई जाय.....।।
 
सखि री सावन आयो द्वार..   

     उर्मिला सिंह






 
 
 


     



     
    



 

    
 
    
    
    
   
    
 
 



Thursday, 8 July 2021

नारी मन की वेदना...

मैं हर बार तपी कुंदन बन निखरी
कंटक बन में घिर,पुष्प बनी निखरी
फिर भी कदम थके नही रुके नही..... 
बियाबान में चलती रही चलती ही रही।।

पँखो को काटा छाटा कितनी बार गया
फिर भी हौसलों का पग अविचल ही रहा
घायल मन पाखी उड़ने को बेचैन रहा....
विस्तृत गगन की छाँव में मन रमा रहा।।

थके नही कदम रुके नही चलते ही रहे....

 विश्वासों के मणि मानिक से लबरेज रही
 जितने भी तीर चले रुधिर बहे  ह्रदय में
 उतना ही अडिग विस्वास रहा ह्रदय  में
 दर्द छलकते, अधरों पर मुस्कान रही।।
 
 थके नही कदम  रुके नही चलते ही रहे.....
 
 सौ -सौ बार मरी ,जीने की चाहत में
 इंद्रधनुषी सपनों से अदावत कर बैठी 
 भटक रहा मन अमृत घट की तृष्णा में ....
 जख्मों का  ज़खीरा साथ लिए हूँ बैठी।।

 थके नही कदम रुके नही चलते ही रहे.. 

               उर्मिला सिंह
 

 
   
 

 



Saturday, 3 July 2021

माँ....

माँ'जिन्दगी का नगमा है जो ग़म में सुकून देता है।
मां का आँचल पेड़ की छांव है जो दर्द की धूप से बचाता है।।

मां की ख़ुशबू से सारा जहां महक उठता है....
मां का प्यार वो मशाल है जो सही रास्ता दिखाता है।

माँ का  दिल औलाद की गलतियों को भी माफ़ 
करता हैं।
उसे रुसवा न करना कभी उसके कदमों में स्वर्ग मिलता है।।

             उर्मिला सिंह