शाख के पत्ते
--------- ------
झर रहे पात पात
छूट रही टहनियां
कौन सुनगा यहां।
दर्द की कहानियां।
टूट गये रिस्ते नाते
रह गई अकेली टहनियां
धूल धुसरित पात ये
जमीन पर पड़े
कोई आँधियों में उड़ चले
कोई पानियों में भींगते
मिट्टी में ही मिल गए।।
पात पात झर रहे
सुनी पड़ीं गईं टहनियां
कौन सुनेगा यहां दर्द की कहानियां।
दिखा रहा तमाशा अपना
जग का सृजनहार यहां
नव कोपलों के आने तक
होगया वीरान यहां....
कौन सुनेगा यहां दर्द की कहानियां।
बज रहे नगाड़े, मिल रही बधाइयां
शाखों पर आगई हरी हरी पत्तियां
नव कोपलों से सुसज्जित शाख
भूल गई विरह वेदना....
कौन सुनेगा दर्द की कहानियां।।
बिखरे बिखरे शब्द है
भाव खोखले होगये
रीत जगत की यही...
आने वाले कि उमंग में
भूल गए दर्द की कहानियां...
उर्मिला सिंह