Friday, 31 July 2020

मित्रता....

कुछ दिनों पहले मैने एक
मुरझाए पौधे को देखा,
उसे देखती रही ...
बिना  पलक झपकाए ।
ऐसा लगा मानो वो मुझसे ...
कुछ कहना चाह रहा हो ,
कुछ पल यूँ ही बैठी रही...
फिर लगा धीमी-धीमी....
आवाज आरही है ।
मैंने उसे पहले पानी पिलाया...
उसमें खाद पानी ...
नित्य के आदत में शामिल होगया।
देखते देखते पौधे के चेहरे पर..
हरियाली छा गई ,
मैं नित्य उससे बाते करती ...
वो  खुश हो जाता  ।
एक दिन उसने मुझसे कहा.....
"मित्र बड़ा होकर मैं....
अपनी शाख़ों पर  पुष्प खिलाउँगा...
तुम्हारे घर को.....
खुशबू से भर दूँगा" !
रंग बिरंगी तितलियों से...
 तुम दोस्ती करना....
शाख़ों पर चिड़ियों का ....
कलरव गान तुम्हे ...
नित जगायेगा" ....
मैं हँस पडी....!!
एक दिन सो कर उठी तो....
खिड़की के पास से...
हवाके झोंको से मीठी-मीठी
खुसबू आरही थी.....।
में आँख मलते - मलते
अपने उस प्यारे ...
मित्र के पास पहुची....
मैंने उससे हँस के कहा...
"मित्र तुमने वादा पूरा कर दिया" !!
 उसने खुशी से टहनियां हिलाया...
 मुस्कुरा कर बोला.....
" जो वादा न निभाये ...
 वो दोस्त कैसा..!
 जो रहम दिल न हो
  वो इंसान कैसा...."!!

         उर्मिला सिंह



Monday, 27 July 2020

कभी सड़को पे हंगामा.......J

कभी सड़कों पे हंगामा कहीं नफरत की आवाजे,
तुझी से पूछती भगवन इंसानी संस्कृति क्या है!

 
किसी के टूटते ख्वाब कोई सिसकीयों को रोकता
जो आदी है उजालों के उन्हें मालूम नही तीरगी क्या है!

दौलत,ओढ़न दौलत,बिछावन दौलत जिन्दगी जिसकी ,
वो क्या जाने भूखे पेट  सोने वालों की बेबसी क्या है!!

सीना ठोक कर जो देश भक्त होने का अभिमान करते 
वही दुश्मनों का गुणगान करते,बताओ मजबूरी क्या है!!

तोहमत ही तोहमत लगाते एक दूसरे पर हमेशा
कभी आईने से पूछो तुम्हारे चेहरे की सच्चाई क्या है!!

                   उर्मिला सिंह







Friday, 24 July 2020

बारिष की फुहारें.... बचपन की यादें...

बारिष का मौसम 
कागज की नाव,
ढूढू कहाँ बचपन ,
वो बचपन का गाँव!

सपने  हुवे जवाँ 
बचपन भूलता गया,
गुड़ियों  का संग  भी 
 छूटता गया!

दुनियाँ के झमेले में 
ऐसे गुम हुवे
बस  सफ़रे जिन्दगी 
तय करते रहे!

देख बूंदों की झड़ी
यादों में कोंध जाती
पेड़ की शाख़ों पर 
पड़ी झूले की कड़ी

मन करता बच्ची बन 
बारिष में भिगूँ......
समझाए कोई मुझको
मन को कैसे मैं रोकूँ!

भीगना गिर के उठना
छपाक-छपाक खेलना
भुलाये नही भूलती ...
वो मीठी फुहारें
सतरंगी बहारे
वो कागज की कश्ती...
वो गलियों की नदिया।।
 
   उर्मिला सिंह
 

           

               
               
               
               
               



















Tuesday, 21 July 2020

सावन महीने को शिव जी की महिमा से जोड़ कर याद किया जाता है, त्योहारों की शुरुवात इसी माह से होती है ,कृषक की खुशियां बारिष पर निर्भर होती हैं तो बहनों की खुशियां भाई को राखी बांध कर मिलती है। सावन माह आनन्द का महीना है।

काले मेघा घिर-घिर आये...
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काले मेघा घिर-घिर आये.....
 बिन बरसे मत जाना
 रात है काली  दिल में उदासी 
 नैना बरसे मत जाना।।

सोंधी मिट्टी इत्र सम महके 
तेरे आने से खुशिया बरसे
ताल ,तलैयों के दिन फिर आये
नदिया हर्षे मत जाना।।

बाग बगीचा इतराये 
डाली डाली झूमें,
रंगबिरंगी तितली घूमें
लहराती मधुर बयार मेघा मत जाना।।

अधखिली कलियां खिली
फूलों की मुस्काने प्रीत भरी
मनचले भ्रमर बागों में फेरी डालें
गोरी को नईहर की याद सताए
बिरना नही आये मेघ मत जाना।।

खेतों में रोपे बीज धान के
नयन प्रतीक्षा रत तेरे आगमन के
नवांकुर उगने को आतुर
सपने पूरे होने को व्याकुल
तुझे देख अन्नदाता प्रमुदित होजाये
कृषकों के जीवन आधार मेघा मत जाना।।

काले मेघा घिर-घिर आये ......
बिन बरसे मत जाना........।।

           .          उर्मिला सिंह
          

              


 



Monday, 20 July 2020

सावन गीत.....



सावन के गीत ,गाँव में सावनी कजरी  पेड़ों की डाली ,झूले सभी करौना की मार से पीडित उदास खड़े एक दूसरों को गमगीन नजरों से देख रहें हैं। 

इन्ही भावों के साथ एक छोटी रचना प्रस्तुत है.......

गरजत बरसत बदरा आये             
मेघ मल्हार ....सुनाये
सनन -सनन पवन बहे
रिस रिस जिया रिसाये
कल-कल नदिया धुन छेड़े
सावन मधुर-मधुर गाये।।

बैरी करौना  दुश्मन हो गई
सूनी हो गई झूले की डाली
कजली ,तीज सूनी भई
त्योहारों पर छाई उदासी
मन ही मन सोच रहे नर नारी
जीवन में कैसी विषम घड़ी आई।।
  🌳🌳☘️☘️🌿🌿
                       उर्मिला सिंह

Sunday, 19 July 2020

संदेश......

नित्य सबेरे लिया करो, परमात्मा का नाम
कष्ट हरेंगे प्रभु तम्हारे ,मत भूलो तुम इंसान।।

पूजा पाठ से ज्यादा ,उत्तम होता शुभ कर्म
संदेश यही है धर्म का ,यही है गीता मर्म!!

मीठी  बोली  बोल के ,दिल  सबका लो जीत
चन्द दिनो के पाहुन हो, कर लो सबसे प्रीत !!

ये जगत नाटक मंच है,हम सब हैं अदाकार 
स्वांग तेरा देख रही, ऊपर से सरकार।।
                उर्मिला सिंह

Saturday, 18 July 2020

याचना.......

प्रभु तेरा  साथ  चाहिये 
जीवन की सौगात चाहिए
हंसते हंसते दम निकले
ऐसा तेरा अनुराग चाहिए।।

कलुषता मिटा सके इंसान की
ऐसा मुझे वरदान चाहिए।
गंगा सा पावन मन हो सके
ऐसा निर्मल संस्कार चाहिए।।

पत्थर दिल भी पिघला सके
वाणी में वो मिठास चाहिए
संवेदनाओं का सागर हो ह्रदय
अधरों पर यही विश्वास चाहिये

 हर देहरी पर प्रीत दीपक जले
 सुचिता,सज्ञान की गंगा बहे
 जीवन से 'मैं'शब्द मिटा सकूँ
  ऐसा अनुपम भाव चाहिए।।

   देशभक्ति से लबरेज हर इंसान हो
   ईर्ष्या द्वेष का ह्रदय से अवसान हो
   बड़े संघर्षों से पाई है ये आजादी.....
  देश का मस्तक सर्वदा देदीप्यमान चाहिए

                               उर्मिला सिंह
   
 
 




Friday, 17 July 2020

गांव की ओर चलते हैं......

मन ने कहा.....

चलो कुछ दिन  के लिये
गाँव की ओर चलते हैं...
जंहा आज भी नीम के  नीचे
एक खटिया पड़ी होगी !
जहाँ सूरज भोर में ...
शाख़ों के मध्य  से...
झांकता होगा  !
जहां किरणे पत्तियों की चलनी से
छन- छन के पड़ेगी तन-मन  पर !
मीठी - मीठी भोर ....
मीठी गुड़ की चाय....

चलो कुछ दिन  के  लिए...
गांव की ओर चलतें हैं।

शाम होते ही ..
बदल जाता है माहौल..
थके निढाल से बापू..
जहां आकर खटिया पर से
गुड़ और एक लोटे पानी की
चाह रखते  हैं !
जहाँ सूरज के लुप्त होते ही...
चाँद झांकने लगता है !

चलो कुछ दिन के लिए ..
गाँव की ओर चलते हैं !

आज भी सभी कुछ वैसा ही होगा
कुछ बदला होगा तो सड़कें,
पनघट की जगह -
हैंडपम्प ने ले लिया होगा !
पगडंडियाँ देती नही होंगी दिखाई
वही राम - राम भैया कहना...
सभी कुछ वैसा ही होगा !

चलो कुछ दिन  के लिये...
गांव की ओर चलते हैं !

हर रिश्ते जी भर के जीतें हैं...
जहाँ रिश्तों में जीवन होता है..
जहाँ  मिट्टी में कर्म की खुशबू-
आशा, विश्वास ,आस्था का---
अद्भुत संयोग होता है !
जहां प्राचीन संस्कृति की 
आज भी झलक मिलती है !

चलो कुछ दिन के लिये...
गांव की ओर चलते हैं।।

       ***0***
                 🌷उर्मिला सिंह

Thursday, 16 July 2020

चाटुकारिता .......युगों युगों से एक ऐसी फलती फूलती प्रजाति है जो शदियों से रही है,इस प्रजाति को ' चाटुकार ' शब्द के नाम से जाना जाता है...ये प्रजाति हर जगह पाई जाती है चाहे राजनीति का गलियारा हो चाहे राजा महाराजा का दरबार हो या कारपोरेट का कार्यालय हो... प्रसंशा अच्छी बात है परन्तु गलत बात की प्रसंशा चाटुकारिता ही कही जाएगी ,इस बषय पर प्रस्तुत है एक छोटी से रचना :-

चाटुकारिता.....

चाटुकारिता की कला भी होती क्या कमाल है
सदियों से चाटुकार इस फन के उस्ताद होते हैं 
नख से शिख,तलवे से दिमाग तक चाटते रहतेहैं
नेताओं की कदम बोसी से  मालामाल होते हैं।।

चाटुकारों की न कोई धर्म न कोई जात होती है
अधरों पर मीठी मुस्कान आंखों में चाल होती है
जीहुजूरी में संलग्ननता ही इनका धर्म ईमान होता है
चापलूसी की रोटी में ही इन्हें गर्व का आभास होता है।।

चलते हैं सीना तान के बाते बड़बोली करते हैं ये
चाटुकारिता के दम पर ही इनकी शान होती है
माखन की टिक्की सी फिसलती इनकी ज़ुबान होती है
बड़े दमदार नेताओं के सिपाहसालार होतें हैं ये।।

चाटुकारिता भी जरूरी हो गई आज के परिवेश में
राजनीति से ऑफिस तक ग्रसित सभी इस रोग से
कौन सच्चा कौन झूठा हर चेहरे पर झीना आवरण है
उठा कर तो देखो भीतर छुपा इंसानियत का दुश्मन है।।

                         उर्मिला सिंह
                  






















                              
                                
                       





श्रवण माह का महीना अतुल्य है, श्रवण माह का विशेष महत्व होता है।एक तरह से कहा जाय तो सावन माह शिव जी का महीना कहा जाय तो अतिशयोक्ति नही होगी।


शिव जी की स्तुति
****************
नर कपाल कर ,मुण्डमाल गल 
,व्याघ्र चर्म तन साजे
अनन्त अखण्ड ,भोले भंडारी ,
भेद न तेरा कोई जाने
जय शिव शंकर जय गंगाधर 
जय अविनाशी सुखकारी
जय रामेश्वर ,जय नागेश्वर
 हे देवों के देव हे महेश त्रिपुरारी  
 हे विश्वनाथ!काशी पति 
 भक्तिदान दो मम ह्रदय निवासी।
जय शशि शेखर जय डमरूधर
 जयमृत्यंजय अविकारी
प्रेम भक्ति से तन मन पावन,
चित्त करो पूर्ण प्रकाशित
पूर्ण ज्ञान पूर्ण भक्ति हो 
निशदिन चरणों में  तेरे अविनाशी
ॐ नमः शिवाय,हर हर महादेव धुन गूँजे
विह्वल मन से धरा पुकारे
 हे देवो के देव महादेव कल्याणकारी।।
                                   उर्मिला सिंह
     

Tuesday, 14 July 2020

सावन की कजरी.....

अरे रामा बुंदिया गिरै चहुंओर..
भींजत मोरि अंगिया  रे हरी..
          छैल छबीला बदरा...गरजे
          तिरछी नजरिया बिजुरी चमके
          
अरे रामा  पपीहा बोले सारी रात
बदरिया कारी रे हरी....।।

        झूम रही फूलन की डाली..
        बुंदिया बिखरे पाती-पाती..
          
अरे रमा रिमझिम बरसे मतवाली
बदरिया कारी रे हरी ........।।

             नाचत मोर पंख फैलाये...
             सारी  रात कोयलिया गाये...
             
 अरे रामा मनवाँ लहर लहराई 
 बदरिया करी  रे हरी......।।
 
               ताल तलैया लेत अगड़ाई...
               धानी चुनरिया धरा मुस्काई...
               
  अरे रामा सूझे न साँझ,भिनसारी
  बदरिया कारी रे हरी .......।।

अरे रामा बुंदिया गिरे चहुंओर 
भीजैे मोरी सारी रे हरी......।।

                    उर्मिला सिंह
                 


        
               


          

Saturday, 11 July 2020

अभिशाप....

प्रकृत से छेड़छाड़ जितना 
मानव करता गया
उतना ही जीवन उसका 
अभिशापित होता गया ।

निर्मल गंगा मैली हुई 
हवाओं में विष घुलता गया
पराजित होने लगा इंसान
जब से मनमानी करने लगा ।

ऊँची आकांक्षाओं के वशीभूत
धरती से वृक्ष कटने लगा
ये कैसे दिन आगये .....
तपती दोपहरी में इंसान
छाया को तरसने लगा।

तम जरूरत से जियादा 
अँधियारा दिखा रहा
प्रकृति के अभिशाप का 
असर गहरा दिख रहा
सूरज भी न जानें क्यों .....
अब साँवला नजर आने लगा ।

निर्दयता का तांडव 
हो रहा चहुं ओर हैं
प्रजातन्त्र मुँह छुपाये रो रहा
फिर भी आश की डाली 
मुरझाई नही.....
नव विहान की किरण-का  
प्रतीक्षित  संसार  है ।।
   ***0***
                  उर्मिला सिंह





Sunday, 5 July 2020

विकल मन पूछता है......

विकल मन पूछता है......

कहाँ गए पहले  से दिन
कहाँ गई वो शामें
कहां गए वो हसीं नज़ारे
क्यों लगते गमगीन चाँद सितारे।।

विकल मन पूछता है......

दिखती हैं बस सुनी सड़कें
होठों पर हैं सबके तालें
मायूसी ही मायूसी का आलम
क्यों वक्त के कैदी होगये हम।

विकल मन पूछता है.......

सखियों के संग की मस्ती
बातों में मस्ती की खुमारी
खो गए कहीं एक दूसरे के बिन
अब तो खाली खाली लगते दिन।।

विकल मन पूछता है.......

यूँ तो बाते होती रहती हैं 
वाट्सप पर अंगुलिया चलती  हैं
शब्द शब्द आपस में बाते करते हैं
हम सब अहसासों में खोये रहतें हैं

विकल मन पूछता है.......
   ******0******


       उर्मिला सिंह


Saturday, 4 July 2020

सरहद.......

देश की .सरहद...पावन धाम है
उसके कण कण में 
भासितशहीदों की सांस है।।
 देश प्रेम के अमृत का 
 जब योद्धाओं ने पान किया
  सारे रिश्ते बौने होगये
 बन्दे मातरम बस याद रहा।।
 सरहद की रक्षा सैनिक का 
 एक मात्र ध्येय बना
  पावस बसन्त  पतझड़ या हो ग्रीष्म
  सब उनके लिए समान हुवा।।
जीवन के सुख दुख सरहद से जुड़ जातें हैं
  रातों की नीद दिल का चैन
  सभी कुर्बान देश के लिए कर जातें हैं।।
               ****0****
                      उर्मिला सिंह

   
  

वीर रस की रचना...छेड़ो मत शेरों को .......

छेड़ो मत शेरो को दहाड़ सुन कर मर जाओगे ,
यहां शौर्य से अग्नि बरसती है भष्मीभूत हो जाओगे।
मित्र बन कर भारत आये कुदृष्टि डालते पावन धरती पर,
धोखेबाजी नस नस में तेरे पैरों से कुचले जाओगे।।

 बड़बोली बन्द करो कीड़े मकोड़े खाने वालों,
 मानवता के दुश्मन तुम करोंना  फैलाने वालों।
 विस्तारवाद की नीति तुम्हारी तुमको ही ले डूबेगी,
 गलवान हमारा है हमारा रहेगा नापाक इरादे वालों।।

  
  देश की सम्प्रभुता से समझौता कायर  करते हैं,
  हिन्द के वासी राणा के वंसज जान न्योछावर करते हैं।
  दोस्तो के दोस्त हैं हम दुश्मन के काल बन जाते है,
 आँख दिखाने वालों की आंख निकाला लिया करतें हैं।।
  
 चीन तूने!आरम्भ देखा है प्रचण्ड वेग अभी बाकी है,
 प्रबल वेग से खनेकेगी जब तलवारे धङकन रुक जाएगी।
 धरती से अम्बर तक गूँजेगा जब हर-हर महादेव का नारा,
 तेरे लहू की प्यासी,माँ भारती की प्यास बुझाई जाएगी।।
                             
                             ****0****
                                   उर्मिला सिंह
                                               
 
  
   
   
   

  






 
 
 



  

 
 


 




Wednesday, 1 July 2020

जिंदगी से दूर होने लगते हैं......

जिन्दगी से हम दूर होने लगते ........ जब.......

हम  अपनी  आदतों के  वश में  हो जातें हैं।
जिन्दगी में कुछ नयापन शामिल नहीं  करते
भावनाओं को समझ कर भी अनजान होतें हैं।
या  स्वाभिमान को कुचलता देखते रहते हैं।।

तब जिन्दगी. से हम दूर होने लगते........हैं ।


जब किताबों का पढ़ना बन्द होने लगता है ।
जब ख्वाबों का कारवां दम तोड़ने लगता है ।
मन की आवाजों की गूंज जब देती नही सुनाई,
जब  खुदबखुद  आंखे नम होने लगती है ।।

तब जिन्दगी से हम दूर होने लगते........ हैं ।

जीवन रंग विहीन  हो स्वयम से जब दूर होने लगताहै।  
अपने काम से जब मन स्वयम असन्तुष्ट रहने लगता है।
मन की दशा जब कागज पर उकेरे मोर सी होती,
जो बरसात तो देखता पर पँख फैला नाच नहीं सकता ।।

तब जिन्दगी से हम दूर होने लगते हैं......... ।

                   🌷उर्मिला सिंह