Saturday, 25 August 2018

राखी के धागे...


राखी धागे ही नही  बहन भाई के स्नेह,विस्वास के प्रतीक होतें हैं ,भावनाओं को कागज के पन्नो पर उतारने का एक प्रयास है.

दर्द का एहसास तो है,
पर गहरा नही!
आज भी तुम याद हो,
दिल के किसी कोने में !
हमारा बन्धन,
राखी के धगों से ऊपर,
स्नेह से ओतप्रोत,
खून के रिस्ते से भी मज़बूत,
अविरल बहता स्नेह था !
आज भी आंखे भर आती हैं
पर छलकने से डरती हैं !
न वाद न संवाद,
नेह की डोर,
कमजोर होती गई!
रिश्तों में अविस्वास की जड़ें,
मजबूत होती गईं !
राखी के धागे भी,
कराह उठे !
आज फिर न जाने क्यूँ ,
चल चित्र की भांति ,
भूले पल याद आरहें हैं ।

कल राखी का त्योहार ,
मनायेंगे सभी......
पर मैं.....
सदा की भांति,
नेह दीपक जला,
तुम्हारी लम्बी उम्र की,
कामना करूँगी !

सच कहतें हैं.....
वक्त हर घाव का मरहम होता
कल जो हकीकत था,
आज वही स्वप्न होता ....!
यही तो वक्त की ताकत है,
क्यों कि ....हम वक्त  के
गुलाम ......होतें हैं !

****0******
            🌷उर्मिला सिंह

1 comment:

  1. मर्मस्पर्शी रचना।
    दिल से रिश्ते कब जा पाते मौका आते ही बस रुलाते।

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