Thursday, 20 September 2018

सियासत के अंदाज़

सियासतें -अंदाज
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पेट की भूख ने रोटी चुरा के खालिया तो उसे चोर  करार कर दिया!
जो मुल्क को डकार गया वो वफ़ादार ही बना रह गया!

मज़हब और इन्सानियत आदमी की फ़ितरत पर रो पड़े!
मज़हब के कंधे का इस्तमाल कर राहोंरस्म का खून कर रहेे!

अपने ज़मीर की बोली लगा रहा आज का इंसान
सियासत में कुर्सियों  की हबस ने क्या से क्याबना दिया!

जिन्दगी आसान कब थी मालिक तेरे  दरबार में
ईमान की चिता सरे आम जल रही जीना मोहाल कर दिया!!
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                                🌷ऊर्मिला सिंह

7 comments:

  1. सुन्दर पंक्तियाँ ...

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  2. कड़वा सत्य लिख दिया दीदी
    जीना तो मुहाल हुआ
    नहीं मौत भी सरल जहाँ में
    ऐसा मन बेहाल हुआ !

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  3. सच पर करारी चोट करती क्षोभ से भरी रचना ,
    सार्थक और यथार्थ दर्शन करवाती रचना दी ।

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  4. सार्थक रचना दी..सुन्दर पंक्तियाँ 👌👌👌

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