Thursday 15 November 2018

मुक्तक

गरीबी.....

हम गरीबों की भी अजब जिंदगानी है
दफ़्न होती निशदिन अस्मत हमारी है
कौन समझे पीर ज़ख्मी दिल की यहाँ
रोटी का टुकड़ा दीवाली होली हमारी है

सियासत.....

  सियासत  की मची  गहमा गहमी है
  मौसम सर्दियों का हवाओं में गर्मी है
  वोटरों को लुभाने की होड़ भी लगी है
  भाग्य का फैसला जनता के पाले में आज
  कर्महीनो के चेहरों की हवाइयाँ उड़ी है

वक्त....

  वक्त की साजिसों से बच न पाया कोई
  चाहे सिकन्दर हो या पोरस कोई
  वक्त का मिज़ाज हस्तियाँ मिटा देता है
  वक्त महल को भी झोपड़ी बना देता है

अभिमान......

कोमल डाली वृक्ष की आँधी तोड़ न पाय
अकड़ी डाली अहम की पल में टूटी जाय
छुओ  अम्बर को जडे न जावो तुम भूल
तरुवर का आस्तित्व है धरा के नीचे मूल
                  ****0****
                                   🌷ऊर्मिला सिंह





 

16 comments:

  1. वाह्ह्ह!! सुन्दर पंक्तियाँ

    "कोमल डाली वृक्ष की आँधी तोड़ न पाय
    अकड़ी डाली अहम की पल में टूटी जाय
    छुओ अम्बर को जडे न जावो तुम भूल
    तरुवर का आस्तित्व है धरा के नीचे मूल"

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  2. 👌👌👌👌वाह दी हर मुक्तक सम्पूर्ण है बात कहे पुरजोर
    लेखनी केवल सत्य कहे और कराये बोध !

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  3. यथार्थ का दर्द और सुंदर सीख समेटे मुक्तक।
    बहुत सुंदर दी ।

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  4. वाह! बहुत ख़ूब ! गागर में सागर।

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  5. वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...

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  6. हार्दिक धन्यवाद रविन्द्र जी

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  7. हार्दिक धन्यवाद कुसुम जी

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  8. हार्दिक धन्यवाद अनिता जी

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  9. धन्यवाद इंदिरा जी

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  10. धन्यवाद प्रकाश जी आपका

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