Monday, 24 December 2018

राजनीति, का मौसम

नमनआप सभी को.....
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नित्य ही राजनीति नये नये शब्दों को चुन अपने तरकस से प्रहार कर रही है।
कोई  अपनी उपलब्धियों पर तो कोई ,बगैर उप लब्धियों के बढा चढ़ा के बोलने की कला में अपने को प्रवीण दिखा रहा है।
हर कोई निजी स्वारथ को हथियार बना जनता के समक्ष अपने को पेश कर रहा है।अपनी बुद्धि की खुरपी से वेसे ही खुराफात निकाल रहा है जैसे माली घास निकालता है।वास्विकता यह है कि आज लोकतंत्र जनता के  आंसुओं से गिला है।इसी को इंगित करती मेरी रचना आप सभी के समक्ष एक प्रयास है!
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झूठे बोल ,अभद्र शब्दों की माला जपते रहे
जनता के  समक्ष पल पल रूप अपना बदलते रहे!

अन्धेरे समझते,उजाले मुठियों में कैद हैं उनके
उन्हें क्या पता सूरज आसमाँ में प्रकाशित सदा होते रहे!!

चिराग तूफानों में भी जलाता रहे, ऐसी सख़्शियत लाओ
अन्धेरे को फैलने न दो  रखवाले देश का लाते रहो!!

सियासत से खाली मन्दिर मस्जिद नही मिलते
संकटमोचन भी आज नेताओं से परेशान होते रहे!!

दुकानदारों ने लूटा जम कर सारी दुकानों को
पहरेदार को ही चोर कह हंगामा मचाते रहे!!

                                    🌷  उर्मिला सिंह

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