Sunday, 21 April 2019

सांसों के दीपों को जलते बुझते देखा है......

साँसों के दीपों को जलते-बुझते देखा है...

         मृद सपनों को हमनें मरते देखा है,
         अरमानों को यहाँ  तड़पते देखा है
         सुख की अंजुरी में........
         वेदना  के अंकुर पनपते  देखा  है!
        
     साँसों के दीपों को जलते-बुझते देखा है...

        आशा में भ्रमित मन को जीते देखा है,
        मन को चंदा सा शीतल बनते देखा है
        छटते तम,खिलती आभा की चाहों में
        पल - पल   रातों  को  मरते  देखा  है!

    साँसों के दीपों को जलते - बुझते देखा है....

        नयन  घट  छल करते रहे सदा ,
        विरही मन सुलगता ही रहा सदा
        प्रीत परीक्षा कब होगी पूरी,जानूँ ना
        क्लान्त देह, सिसकते मन को हँसते देखा है!

   मैंने साँसों के दीपों को जलते - बुझते देखा है....
       
                                             🌷 उर्मिला सिंह

2 comments:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति दी

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  2. हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनुराधा

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