Thursday 29 August 2019

स्वार्थ की दुस्साहसता देख भींग उठते नयन....

स्वार्थ की दुस्साहसता देख भींग उठते नयन.....
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चहुँओर स्वार्थ की दुस्साहसता देखते तरल नयन
किसे अपना कहें, लोभ से सना सभी अपना पन
मुरझाएे दिखते विटप- वृक्ष, उड़ रहे पीले से पात
किसे फुर्सत जो देखे , बिखरते सतरंगी नेह नात!

छल-कपट में लिपटी दुनिया मु्रझाये जीवन उसूल
दया-भाव  हवन हुए, हवन हुए  मनके खिलते फूल
मिटी अनमोल संस्कृतियाँ , संस्थाएं आडम्बर कारी
हिंसा अमर्ष जाति - पात में भटक रही दुनिया सारी!

आध्यात्मिक जिज्ञासा दम तोड़ती,विकृति हुई वाणी
भाव शून्य इंसानियत हुई,  किसकी है ये जिम्मेदारी
हर आँगन में दीवार खड़ी,हुआ है भाई-भाई का बैरी
सोने की मृग सी राजनीति,अभिमान ग्रसित है पीढ़ी!

मुड़ कर एक बार पुनः देखें,हमअपना निज अतीत
अनमोल वनस्पतियां थी माटी गाती थी अमर गीत
यह देश विलक्षण,है ज्ञान यज्ञ की अद्भुत यज्ञशाला
राम-कृष्ण-गौतम थे जन्मे,जहां पिया मीरा ने विष प्याला!
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                                      🌷उर्मिला सिंह







4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 12 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. हार्दिक धन्यवाद दिव्या जी हमारी रचना को साझा करने के लिए।

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  3. यथार्थ का अहसास कराती रचना

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  4. बहुत बढ़िया

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