Tuesday 24 August 2021

जग दो दिन का बसेरा....

मत घबड़ा रे मना......
  जग है दो दिन का बसेरा।
 
   जीत कभी तो हार कभी
लहराए कभी खुशयों का समन्दर
   हो जाय घनेरी रात कभी
      मत घबड़ा रे मना।।
      
    फ़ूलों की सौगात कभी
    कभी मीले राह में कांटे
    ये जिन्दगी की राह है प्यारे
    दिखे नही समतल राह यहां।।
       मत घबड़ा रे मना.....

   उड़ जायेगा एक दिन पक्षी
   जल जायेगी ये नश्वर काया
   रह जायेगी तकर्मों की गाथा
  जीवन बीत गया यूँ हीं. मिथ्या....।।
 
   मत घबड़ा रे मना.....
 ये जग है दो दिन का बसेरा।

  कौन है अपना कौन पराया
  समझ न पाया कोई यहां....
  जख्मों की आबादी है...
  लफ्जों में  है घाव यहां....।।

   मत घबड़ा रे मना......
ये जग है दो दिन का बसेरा....।।

     उर्मिला सिंह

11 comments:

  1. शुक्रिया आलोक सिन्हा जी।

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  2. उड़ जायेगा एक दिन पक्षी
    जल जायेगी ये नश्वर काया
    रह जायेगी तकर्मों की गाथा
    जीवन बीत गया यूँ हीं. मिथ्या....।।
    वाह!!!
    दार्शनिक भाव लिए बहुत ही लाजवाब सृजन

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी।

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  3. कौन है अपना कौन पराया
    समझ न पाया कोई यहां....
    जख्मों की आबादी है...
    लफ्जों में है घाव यहां....।।

    मत घबड़ा रे मना......
    ये जग है दो दिन का बसेरा....।।

    सत्य से रूबरू कराती सुंदर चिंतनपूर्ण रचना ।

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    1. जिज्ञासा जी आभार एवम शुक्रिया।

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  4. सार्थक अभिव्यक्ति

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    1. शुक्रिया कैलाश मण्डलोई जी।

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  5. आध्यात्मिक भावों का गहन सृजन ।
    सुंदर उपदेशात्मक सा सृजन दी ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय कुसुम।

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  6. प्रिय कुसुम सनहिल धन्यवाद।

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