Wednesday 2 February 2022

नव युग के विकास मेंहम बहुत कुछ भूल गये....

इस रंग बिरंगी दुनिया में 
क्या क्या बिसर गये हम

बिसर गये शब्द सभी
जिसको सुन बड़े हुए
बिसरे दुवार,आंगन,
और नरिया थपुवा सभी।

इस रंग विरंगी दुनिया में
क्या क्या बिसर गये हम

बिसर गये अनरसा खाझा
बिसरे पानी से भरी गगरी
बिसर गई दीवाली की दिया 
जिससे खेला करते हम कभी


इस रंग बिरंगी दुनियां में
क्या क्या बिसर गये हम।

बिसर गये साझ भिनसार
बिसर गया तुलसी का चौरा
बिसरी दूधिया पटरी और पचारा
दूना तीस तियां पेंतालिश का पहाडा।।

इस रंग बिरंगी दुनिया में
क्या क्या बिसर गये हम

 कबड्डी,गुल्ली डंडा स्वप्न हुवे
गुड्डा गुड़िया की शादी भूल गए
 बाग बगईचा कोइलिया भूले
भुट्टा के खेत का मचान भूल गए।।

   इस रंग बिरंगी दुनिया में
    क्या क्या बिसर गये हम

लरिकैईयाँ की धमाचौकड़ी भूले
भूले चरखे वाली नानी
लालटेन ढिबरी भूलगये
भूलगये हम रात सुहानी..।।

इस रंग विरंगी दुनियां में
क्या क्या बिसर गये हम

कड़ाहे के गुड़ का चिंगा भूले
भूल गए कुएं का ठंढा पानी
खटिया मचिया मिट्टी का चूल्हा भूले
भूल गए संस्कारों की बातें सारी।।

इस रंग विरंगी दुनियां में
क्या क्या बिसर गये हम

भूल गए इनारे का पानी
मचिया खटिया भूले गये
करौनी गट्टा भूल गये
बिसरी चीनी की घोड़ा हाथी।।

इस रंग विरंगी दुनियां में
क्या क्या बिसर गये हम

कुछ शब्द  हेराय गया 
कुछ  हमने हेरवाय दिया
इस रंग बिरंगी दुनिया ने
पहचान छीन सभ्य बना दिया।।

इसरंग बिरंगा दुनिया में 
हम क्या से क्या होगये।

क्या बतलायें क्या क्या शब्द भूल गये
माई बाबू भौजी,नईहर शब्द भूल गये
पापा मम्मी,अंकल आंटी में रिश्ते सिमटगये
जीन्स स्कर्ट पहन जेन्टल मेन अब बनगये।।

इस रंग बिरंगी दुनियां में
हम क्या से क्या होगये।।

    उर्मिला सिंह



20 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. धन्यवाद स्वेता सिंह नई हमारी रचना को शामिल करने के लिए।

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  2. बहुत खूबसूरत सृजन

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    1. शुक्रिया भारती दास जी।

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  3. गांवों मोहल्लो के सुंदर, सरस ,जमीन से जुड़े जीवन को अब कौन जीना चाहता है । कुछ दिखावे कुछ जरूरत की वजह से बदलते जा रहे हैं ।
    आपको मेरा सादर अभिवादन 👏👏💐💐

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  4. बहुत बहुत सुन्दर

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  5. कहीं न कहीं मन में गहरे पैठ बनाई हुई है तभी न आप सब याद कर रहीं ।
    परिवर्तन शाश्वत नियम है , फिर भी आपकी रचना ने बहुत कुछ याद दिला दिया ।

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    1. धन्यवाद संगीता स्वरूप जी।

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  6. पुराने का बदलाव सहज नहीं काफी हृदय को कचोटता है।
    सार्थक दर्द।
    सुंदर सृजन दी।
    सादर।

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  7. बहुत ही सुंदर रचना
    सच में रंग बिरंगी दुनिया में हम कितना कुछ भूल गए और कितना कुछ खो दिए हैं वह जो कभी नहीं मिल सकता वह जो बहुत ही खूबसूरत और अद्भुत था

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    1. हार्दिक धन्यवाद मनीषा गोस्वामी जी।

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  8. हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति।

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  9. सुन्दर सृजन

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  10. मनोजकयाल जी आभार आपका।

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  11. समय का पहिया जब चलता है तो बहुत कुछ विस्मृत होता है ... छूट जाता है पीछे ...
    यादों के अलावा कुछ नहीं रहता ...
    सुन्दर भावपूर्ण राचना ...

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  12. वाह!बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
    सादर

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