Wednesday 14 June 2023

कल और आज

आज.....

रंगों भरा आसमाँ दिल के 
कैनवास पर उतर आता है
मैंने भी सोचा चलों पन्नो के कैनवास पर...
कुछ तस्वीरें बनाती हूँ.....
रंग बिरंगी ,प्रकृति की मनोरम छटा
कल-कल बहती नदी......
लहराता सागर.....
पनघट पर आती-जाती  ओरतें.....
खेतों की हरियाली .......
झूमती कलियां - खिलतें फूल...
रम गया मन, चित्रों को .........
केनवास पर बनाने में 
सधे हाथों ब्रश चल पड़ा....
कुछ अंतराल के बाद.....
ब्रस रोक कर देखती हूँ
केनवास पर की गई अपनी चित्रकारी,
स्तब्ध रह जाती हूँ.......
उसपर मानसिक विकृतियों....
के अनेक रूपों का चित्र बना था
ऐसा लग रहा था मानो...
समाज की सारी विकृतियां
इस कैनवास पर मुझे
चिढ़ा रही हैं....
मैं सिर पकड़ कर बैठ गई....
शून्य की तरफ़ देखती रह जाती हूँ।।

            उर्मिला सिंह



12 comments:

  1. विचार प्रतिबिंब होते हैं...गहन भाव उकेरती बेहतरीन अभिव्यक्ति दी।
    सादर।
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ जून २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. श्वेता जी हमारी रचना को मंच पर साझा करने के लिए धन्यवाद।

      Delete
  2. आभार आपका विभा जी

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर रचना आदरणीया

    ReplyDelete
  4. मन की विसंगतियाँ छिपाये नहीं छिपती।अभिव्यक्ति चाहे कैसी भी हो उसमें से झाँक ही लेती हैं।बेहतरीन रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं प्रिय उर्मि दीदी।बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा।सस्नेहाभिवादन 🙏🙏🌹🌹

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रिय रेणु जी स्नेहिल धन्यवाद

      Delete
  5. कैनवास पर मन से चित्र उतारें यो मन की विकृतियां छुपी नहीं रह सकती...
    बेहतरीन सृजन
    वाह!!!

    ReplyDelete
  6. सुंदर काव्य सृजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद मान्यवर

      Delete