Friday, 10 January 2025

वक्त

वक्त तेरी राहों  पे चलते चलते उम्र ढल जाती है

बिन जिए ये जिन्दगी जाने कैसे गुजर जाती है।।


न शिकवा न शिकायत खामोशियों का अlलम है

वक्त की मेहरबानियों के आगे जिंदगी हार जाती है।


कहां से चले थे कहां पहुंचे गए  हम पता नहीं

सुरभित सांसें आज वेदना के स्वर में खो जाती हैं।


मिट मिट कर जीवन मूल्य चुकाएं हैं नश्वर जग में

वक्त वेदी पर,अश्रु,लहरों के अर्घ्य चढ़ाने आती है।


जीवन के प्रश्नोत्तर समाप्त सभी हो जाते है.....

जब आशाएं बिन मंजिल पाए अदृश्य हो जाती हैं।


                  🌷उर्मिला सिंह🌷



10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 15 जनवरी 2025 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक धन्यवाद हमारी रचना को पटल पर रखने के लिए

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    1. हार्दिक धन्यवाद मान्यवर

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  3. बहुत सुंदर सृजन आदरणीय दीदी जी।
    सादर नमस्कार।

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  4. बहुत ही सुन्दर 👌👌🙏

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  5. बहुत गहन चिन्तन लिए सुन्दर कविता उर्मिला जी

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  6. हार्दिक धन्यवाद जी

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