Friday, 10 January 2025

वक्त

वक्त तेरी राहों  पे चलते चलते उम्र ढल जाती है

बिन जिए ये जिन्दगी जाने कैसे गुजर जाती है।।


न शिकवा न शिकायत खामोशियों का अlलम है

वक्त की मेहरबानियों के आगे जिंदगी हार जाती है।


कहां से चले थे कहां पहुंचे गए  हम पता नहीं

सुरभित सांसें आज वेदना के स्वर में खो जाती हैं।


मिट मिट कर जीवन मूल्य चुकाएं हैं नश्वर जग में

वक्त वेदी पर,अश्रु,लहरों के अर्घ्य चढ़ाने आती है।


जीवन के प्रश्नोत्तर समाप्त सभी हो जाते है.....

जब आशाएं बिन मंजिल पाए अदृश्य हो जाती हैं।


                  🌷उर्मिला सिंह🌷



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