वक्त तेरी राहों पे चलते चलते उम्र ढल जाती है
बिन जिए ये जिन्दगी जाने कैसे गुजर जाती है।।
न शिकवा न शिकायत खामोशियों का अlलम है
वक्त की मेहरबानियों के आगे जिंदगी हार जाती है।
कहां से चले थे कहां पहुंचे गए हम पता नहीं
सुरभित सांसें आज वेदना के स्वर में खो जाती हैं।
मिट मिट कर जीवन मूल्य चुकाएं हैं नश्वर जग में
वक्त वेदी पर,अश्रु,लहरों के अर्घ्य चढ़ाने आती है।
जीवन के प्रश्नोत्तर समाप्त सभी हो जाते है.....
जब आशाएं बिन मंजिल पाए अदृश्य हो जाती हैं।
🌷उर्मिला सिंह🌷
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 15 जनवरी 2025 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन आदरणीय दीदी जी।
ReplyDeleteसादर नमस्कार।