Friday, 10 May 2019

वक्त कभी किस का नही रहा.....

हम देखते रहे......वक्त हाथों से फिसलता रहा......

दर्द सहते सहते लावा बन जलने लगता है
सूरज के ढलते ही सागर उबलने लगता है

फूल सा लहज़ा भी आग उगलने लगता है
पत्थर भी कभी कभी  पिघलने  लगता है!!

कभी कभी गम की तस्वीर बदलने लगती है
कभी कभी अश्कों का रंग बदलने लगता है

वक्त की कीमत क्या होती है समझ तभी आती है!
लम्हा लम्हा वक्त जब हाथों से फिसलने लगता है !!

हालात बदलते ही संगी साथी हाथ छुड़ाने लगते हैं!
व्याकुल,तन्हा मन तब नाम प्रभु का लेने लगता है !!
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                    🌷उर्मिला सिंह







4 comments:

  1. वाह !बेहतरीन दी
    सादर

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  2. बहुत सुंदर रचना दी

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  3. धन्यवाद अनुराधा जी

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  4. हार्दिक धन्यवाद अनिता जी

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