Saturday 12 December 2020

गज़ल....

मेरे ईश्क को यूं फ़ना ना करो,मेरी जिन्दगी को धुँवा न करो
मेरे अधरों को गुनगुना ने दो लफ़्ज़ों को जरासांस लेने दो।।

आँगन में झांकती चाँदनी परीें को चंद्र खटोले से उतरने दो
खोल दो खिड़कियां ,दरीचों से भी ताजी हवा आने दो।।

हँसते होठो पर भी नमी की बरसात हो जाने दो
अश्कों से बोझिल आंखों को हँसी का स्वाद चखने दो।।

 साज के तारों से मधुर गीतों की झंकार निकलने दो
 मधुमास रश्क कर उठे जिन्दगी में ऐसी बहार आनेदो।।

आज दिल की बात खिलखिलाते फूलो सा झर जाने दो
 आज आसमां को तन्हाई में रात से गुफ़्तगू करने दो।।
                ******0******0*******
   
                                 उर्मिला सिंह
 

21 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 14 दिसंबर 2020 को 'जल का स्रोत अपार कहाँ है' (चर्चा अंक 3915) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. हार्दिक धन्यवाद रविन्द्र सिंह यादव जी हमारी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए।

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  3. मेरे ईश्क को यूं फ़ना ना करो,मेरी जिन्दगी को धुँवा न करो....
    प्रेम का आलिंगन कराती बेहतरीन रचना....

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    1. आभार आपका पुरषोत्तम सिन्हा जी।

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  4. बहुत सुंदर

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    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी।

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    1. हार्दिक धन्यवाद मान्यवर।

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  6. बहुत अच्छे
    वाह।

    नई रचना- समानता

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    1. शुक्रिया रोहिताश घोरेला जी

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  7. बहुत खूब...अति सुन्दर ।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना भारद्वाज जी

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  8. बेहतरीन ... बहुत बढ़िया ।

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    1. ह्र्दयतल से धन्यवाद अमृता तन्मय जी।

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  9. दी बहुत सुंदर शानदार ग़ज़ल एहसासों से सिंचित।

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    1. स्नेहिल धन्यवाद प्रिय बहन।

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  10. ऋता शेखर 'मधु'जी ह्र्दयतल से धन्यवाद।

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    1. हार्दिक धन्यवाद Shantanu SanyalJi.

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  12. वाह!बहुत सुंदर दी।

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