मन,विचार का मिलन जब कलम से होता है तब कलम पन्नों से कुछ गुफ़्तगू करने के लिए मचल पड़ती है.......
मन सोचा करता है.....कभी कभी
क्या पाया क्या खोया जग में
अपनो के आंखों में प्यार का गहरा सागर
मन खोजा करता है कभी कभी।।
अधरों पर प्रीत की मीठी मुस्कान
वाणी में मर्यादा और सम्मान
अपनो का अपनापन अब कहाँ
सब अतीत की बातें लगती हैं यहां।।
मन सोचा करता है कभी कभी ।
जो दिल को नज़र आता था सदा.....
वो खूबसूरतअनुभूति नही मिलती
सरलता सादगी कोसों दूर हुई
भावों को समझे जो ऐसा मीत नही मिलता।।
मन सोचा करता है कभी कभी।
चाहत के उपवन की भीनी भीनी सुगन्ध
रिश्तों की पनपती शाखाएं
और हसरतों के फूल घनेरे
सब मुरझाए,मुरझाये से लगते हैं
सुख की जाने क्यों अनुभूति नही होती।।
मन सोचा करता है कभी कभी।
जीवन दर्पण में भिन्न भिन्न चेहरे दिखते
अधूरी मुस्कान अधूरी बातें
अधूरे आँसूं अधुरे सपने
अपनेपन की ढहती दीवारें
प्यार,स्नेह के मोती की माला बिखरी बिखरी
मन सोचा करता है कभी कभी।
पाश्चात्य सभ्यता दोषी या संस्कार हैं दोषी
नए जमाने की चकचौन्ध
या कलयुग का आगमन
क्योंअनुराग सरिता जलविहीन हुई
धड़कन को क्यों प्यार समझने में भूल हुई
मन सोचा करता है कभी कभी
उर्मिला सिंह
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 23 मई 2022 को ' क्यों नैन हुए हैं मौन' (चर्चा अंक 4439) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हमारी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवम आभार।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबढ़िया विचार मंथन
ReplyDeleteसुंदर विचार मंथन
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति