Friday 11 November 2022

ग़ज़ल

मेरे  गीतों  को सुन  हौले  से  मुस्का देना
मन  की  उलझी  गाँठों को  सुलझा  देना!

विस्वासों  की  छाँवों  में  हो बसेरा अपना
छलके जो कभी अश्क  पलकों से उठा लेना!

जब  अनजानी राहें ,घनघोर  अन्धेरा हो
विश्वास, का  दीप इन नयनों में जला देना!

जख्मों के गुलाब बिक़तें हैं इस नगरी में...
मलहम की हो कोई दुकान बता देना!

कामना की शाखों पर  बैठें हैं मौन
अन्तर्मन की गूंज सुनाई दे, वो तरक़ीब बता देना!

                                  उर्मिला सिंह


9 comments:

  1. प्रेरक सृजन दी।
    बहुत सुंदर रचना।

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    1. हार्दिक आभार प्रिय कुसुम जी

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  2. बहुत खूबसूरत सृजन

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया

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    1. हार्दिक आभार अभिलाषा जी

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  4. हार्दिक धन्यवाद कामनी जी हमारी रचना को मंच पर रखने के लिए।

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  5. जख्मों के गुलाब बिक़तें हैं इस नगरी में...
    मलहम की हो कोई दुकान बता देना!//
    क्या बात है प्रिय उर्मि दीदी!! विकल मन की मर्मांतक अभिव्यक्ति मन को छू गई 🙏♥️

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  6. प्रिय बहन हार्दिक धन्यवाद बहुत दिनों के बाद आपको पोस्ट पर देखा अच्छा लगा...

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