Monday 14 November 2022

बचपन के दिन

बचपनकी यादें.....
बचपन के दिन सतरंगी-सतरंगी सपने होते थे!
पलको में बन्दी बन परियों  के  देश पहुँचते थे!!

चिन्ताओं से परे, बेफ़िक्री जीवन होता था,
तितली  को पकड़ते ,फूलो को छूते रहते थे!
बस्ते  कन्धे पर लादे स्कूल  को  चल  देते,
दौड़ लगाते हँसते गाते मस्त हमारे जीवन थे!!

बचपन के दिन सतरंगी-सतरंगी सपने होते थे!
उजली  राते  उजले  मन  उजले  दिन होते थे!!

      बचपन के खेलों में वो मस्ती होती थी,
      खो-खो  कबड्डी  लुका छुपी  होती थी !
      लड़ते - झगड़ते , गले  लग  जाते  थे,
      ऐसे दोस्त हमारे , ऐसी यारी होती थी!!

बचपन के दिन सतरंगी-सतरंगी सपने होते थे!
उजली  राते  उजले  दिन  उजले  मन होते थे!!

     बारिष की बूँदों को पकड़ने दौड़ा करते थे,
     छपक-छपक पानी मे हम भींगा  करते थे !
     गलियों में नाव चलाते ,डाटों की परवाह नही,
    बाबा,चाचा,दादा सबके ,पांव दबाया करते थे!

  बचपन के दिन सतरंगी-सतरंगी सपने होते थे!
  ‎पलकों  में  बंदी  बन परियों के देश पहुँचते थे !!

        दस पैसे का चूरन , चटकारे लेके खाते थे,
        गुड़िया - गुड्डा  बराती  बन ब्याह रचाते थे !
        कच्ची अमिया,हरी मटर की फलियाँ खाते,
        गन्ने   का   रस  पीते   और   पिलाते  थे!!

 बचपन के दिन सतरंगी-सतरंगी सपने होते थे !
 ‎पलकों  में  बंदी  बन परियों के देश पहुंचते थे !!
 
 स्मृति पटल पर ,दिख  जाती  जब बन्दी यादें,
 इन्द्रधनुष सी मन अम्बर पर छा जाती वो बाते!!
 ‎बचपन  के  दिन , याद  तेरी बहुत आती  है,
 ‎जोड़ तोड़ में उलझी जिन्दगी चलती जाती है!!
 ‎
 
 बचपन के दिन सतरंगी-सतरंगी सपने  होते थे !
 उजली  रातें  उजले  दिन उजले  मन  होते  थे !!
                                    
                                                 #उर्मिल

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय उर्मि दीदी।बचपन की सुहानी यादों को संजोती रचना ने बचपन की मधुर स्मृतियों को जगा दिया।जब विज्ञान ने इतनी उन्नति नहीं की थी तब बच्चों के पास प्रकृति, घर और परिवार से जुड़ने के अनगिन बहाने थे।कुछ दशक पूर्व बालपन की मस्ती देखते ही बनती थी।🙏♥️

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  2. प्रिय बहन!कभी कभी उम्र के इस पड़ाव पर बचपन झांकने लगता है, आभार आपका मेरे विचारों से सहमत होने के लिए।

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  3. एक था बचपन!!

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  4. स्मृति पटल पर ,दिख जाती जब बन्दी यादें,
    इन्द्रधनुष सी मन अम्बर पर छा जाती वो बाते!!
    ‎बचपन के दिन , याद तेरी बहुत आती है,
    ‎जोड़ तोड़ में उलझी जिन्दगी चलती जाती है!!

    सही कहा आपने उर्मिला जी,सच बचपन की यादें बहुत सताती है
    जज्बातों से लबरेज बहुत ही सुंदर सृजन,सादर नमन आपको

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया सादर

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  6. बहुत खूबसूरत रचना

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