Saturday, 20 June 2020

अनवरत प्रतीक्षा.....

प्रतीक्षा के सन्नाटे में.....
आगमन की गुंजित आहटें
सुनने को तरसते कर्ण
चौकाती पल पल.....
उम्मीदों की किरण
पर तुम न आये.....

पिता की वात्सल्य की पुकारें
मां की ममता की डोर .....
समय के साथ कमजोर पड़ती गई
प्रतीक्षा की सारे आशाएं
दीवारों से टकरा कर जख्मी हो गए
पर तुम न आये.....

आज खण्डहर में परिवर्तित घर.....से
रात के सन्नाटे में ......
बेटे के पैरों की आहट सुनने को.....
 दर्द से कराहती एक आवाज .....
 गूंजती है.......
 बिलखती मां के आँसूं 
 आखिरी सांस तक पूछती रही.....
 पर तुम न आये.......
  *****0*****
              उर्मिला सिंह
 




Thursday, 18 June 2020

ह्रदय में जल रही ज्वाला......

आंखों से निकलती चिंगारियां..ह्रदय में जल रही ज्वाला,
 भारत मां के सपूत तुम्हारा फन कुचलने के लिए तैय्यार हैं।

गरजते शेर के सामने,अपनी हस्ती मिटाने चीन तुम आगये 
भारत मां के सपूत ,तेरी अर्थी बिछाने के लिए तैय्यार हैं।। 
                
ओ फरेबी !गलवन से आंखे हटा लेह लद्दाख  हमारा है।
भारत तेरी दम्भ की शिला को गलाने के लिए तैय्यार है।। 

कमतर समझने की भूल मत करना ये आज का भारत है
भारत का कणकण तुम बौनो को धूल चटाने के लिए तैय्यार है।।

यहां की मिट्टी राणा प्रताप,पृथ्वीराज की कहती कहानी है
देश की रक्षा हेतु देशवासी जान हथेली पर लिये तैय्यार है।।

बता देंगे हिन्द के सिपाही कि आग से खेलोगे तो फ़ना होंगे
ऊँची पहाड़ियों  खून से रंगोली बनाने के लिए तैय्यार हैं।।
                  *****0****0*****

                      जै भारत जै हिन्द       
                      
                                उर्मिला सिंह                                  
                   

Tuesday, 16 June 2020

चमकते चाँद तारे हमारे थे.......

बचपन में चमकते चाँद तारे हमारे थे !
महकते फूल, तितिलियों  के नज़ारे हमारे थे!!

रूठना मनाना रो के गले लग जाते थे हम!
ऐसा था वो जमाना, ऐसे  दोस्त हमारे थे!!

जरूरते कम थी प्यार की धूप ज्यादा !
खुशियों से चहकते हरपल चेहरे हमारे थे!!

बेफ़िक्र  सा जीवन  बस्ते का बोझ कन्धे पर!
पीछे छोड़ आये जो मधुरिम जीवन हमारे थे!!

मंजर धुंधले होगये स्वार्थ की कश्ती पर बैठें!
खो गया, खो खो, कबद्दी  खेल जो हमारे थे!!

मशीन बन गई जिन्दगी ख़्वाइशों की दौड में!
धरोहर बन गये बीते जमाने जो कभी हमारे थे!!
                   *****0*****
                       उर्मिला सिंह

Friday, 12 June 2020

कुछ न कहिये ज़नाब स्वतन्त्र हैं हम.....

कुछ न कहिये जनाब  स्वतंत्र हैं  - हम........ !
     
       बोलने की आजादी है --तो
       नफ़रत फैलाने की स्वतन्त्रता---- भी
       लिखने पर कोई रोक टोक नही --तो
       शब्दों की गरिमा भी समाप्ति की.....
       देहरी पर सांसे गिनती दम तोड़ रही है.......
       
       कुछ न कहिये जनाब  स्वतन्त्र हैं --हम........!

        बच्चे हैं तो क्या हुआ, स्वतंत्र हैं --हम
        मां बाप का कहना क्यों माने.....
        अपनी मर्जी के मालिक हैं -- हम
        हमें पालना जिम्मेदारी है उनकी...
        आखिर बच्चे तो उनके ही हैं --हम।

        कुछ न कहिये ज़नाब स्वतन्त्र हैं --हम.......!
        
       गुरु शिष्य का नाता पुस्तकों में होता है...
       आदर भाव तो बस सिक्कों से होता है।
       भावी समाज का निर्माण हमसे होता है...
       संसद से समाज तक  स्वतन्त्रता का परचम....
       लहराते  धर्म नीति की धज्जिया उडातें ...
       स्वतन्त्र  भारत के स्वतन्त्र नागरिक हैं --हम !
       
       कुछ न कहिये ज़नाब स्वतन्त्र हैं-- हम......!

      त्रस्त सभी इस स्वतन्त्रता से....
       पर आवाज उठाये कौन....!
      स्वतन्त्रता को सीमित करने की ....
      नकेल पहनाए कौन.....!!
                      
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                                       उर्मिला सिंह
      


      
    
   
        
        
                                  
        

           

Wednesday, 10 June 2020

शब्द जब धार बनाते हैं...... तब कविता कविता कहलाती है।

प्रातः नमन......

मन में दहकते जब शोले हों   
भाओं से टकराते जब मेले हों                                
चिनगारी बन शब्दों से निकल,
 पन्नो पे उतरने  लग जाती है ;
 तब कविता- कविता कहलाती है !

जब मन की पीड़ा  चुभने लगती है ,
जब  तन्हाई  ही  तन्हाई  होती   है ,
जब शब्दो  का  सम्बल  ले  कर के ,
मन  की  गांठे  खुलने  लगती   हैं ;
तब कविता - कविता कहलाती है !

जब भूखा - नंगा बचपन भीख मांगता है ,
चौराहो पर नारी अस्मत लूटी जाती है,
 कानून महज मजाक  बन  रहजाता  है ,
 आँखों से टपकते विद्रोह जब शब्द बनाते है ;
 तब कविता - कविता ....... कहलाती  है  !

राजनीती में जब धर्म-जाति को बाटा जाता है
सिंहासन के आगे जब देश गौड़ हो जाता  है ,
युवा जहाँ ख्वाबों की लाश लिये फिरते हैं ,
उनकी आहों से जब शब्द  ......धार बनातेहै,
तब  कविता - कविता ...... कहलाती  है ।
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                       🌷उर्मिला सिंह

Friday, 5 June 2020

इंसानियत......

पशुता के झंझावत में दुर्बल होती गाँधी, बुद्ध,की बोली है
कदम-कदम पर लगती यहां अब इंसानियत की बोली है।

संवेदनाओं का सागर सूख गया दया धर्म दफ़्न हुवा
गली,चौराहों पर दिखते अमानवीय इंसानो की टोली है।

जीवन संवेदन हीन हुवा मानवता का नमो निशान मिटा
तृष्णा कैदी मानव,जला रहा प्रेम दया करुणा की होली है

इंसानियत हैवानियत में बदली, क्रूरता का हो रहा तांडव
भावोंं में दुर्भावना विकसित,ये कैसी विषैली हवा चलीहै।

खो रहा जीवन संगीत अनुभव,संकल्प ,दिशा हीन हुए
बर्बरता के ठहाके,सिसक रही इन्सानियत की डोली है।
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                                     उर्मिला सिंह







Monday, 1 June 2020

सतरंगी दुनिया से नाता तोड़ चले......

सपनों की दुनियाँ से चल लौट चले,
 अब चाँद सितारों से नाता तोड़ चले!

 पश्नों की अनबूझ पहेली है ये जीवन,
 उलझे सुलझे मोह के धागे तोड़ चले!

मौन की  भाषा  समझ सका ना कोई,
भावों का दर्द  छुपाये मुखडा मोड़ चले!

सतरंगी दुनिया सतरंगी  हैं लोग यहाँ,
 दिल का अश्कों से नाता जोड़ चले!

कब होगा इन गलियों में फिर आना
हँस कर सब रिस्ता नाता  छोड़ चले!

                            # उर्मिल