Tuesday 16 June 2020

चमकते चाँद तारे हमारे थे.......

बचपन में चमकते चाँद तारे हमारे थे !
महकते फूल, तितिलियों  के नज़ारे हमारे थे!!

रूठना मनाना रो के गले लग जाते थे हम!
ऐसा था वो जमाना, ऐसे  दोस्त हमारे थे!!

जरूरते कम थी प्यार की धूप ज्यादा !
खुशियों से चहकते हरपल चेहरे हमारे थे!!

बेफ़िक्र  सा जीवन  बस्ते का बोझ कन्धे पर!
पीछे छोड़ आये जो मधुरिम जीवन हमारे थे!!

मंजर धुंधले होगये स्वार्थ की कश्ती पर बैठें!
खो गया, खो खो, कबद्दी  खेल जो हमारे थे!!

मशीन बन गई जिन्दगी ख़्वाइशों की दौड में!
धरोहर बन गये बीते जमाने जो कभी हमारे थे!!
                   *****0*****
                       उर्मिला सिंह

7 comments:

  1. एज और सुन्दर रचना का सृजन...
    पुराने दिनों की बात ही कुछ औऱ थी..
    वो भी जिनका संबंध ग्राम्य जीवन से था ..उसकी तो बात ही निराली ...
    रचना पढ़कर उन दिनों की याद बरबस आ गई...💐💐

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  2. बादल के टुकड़ों में कभी हिरण, कभी ख़रगोश का दिखना,
    छुआ-छुईं, आइस-पाइस, छू कित्-कित् जैसे खेल हमारे थे ...
    (क्षमायाचना सहित दो पंक्तियाँ मेरी भी ...)

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुबोध सिन्हा जी

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  3. वाह! लाजवाब सृजन दी 👌
    उधेड़ बुन में उलझी ज़िंदगी के पलों का बख़ान करता मोहक सृजन .
    सादर

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    1. स्नेहिल धन्यवाद अनिता सैनी जी।

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  4. वाह बेहतरीन प्रस्तुति

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