Saturday 27 June 2020

कुछ मन के भाव पन्नो पर बिखर गए......

सारा जग मधुबन लगता है।
  जब प्यार तुम्हारा मिलता है।
  बिना प्यार कुवारी लगती बहुरिया,
  मन पीड़ा का सागर लगता है।।
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  अपनी वाणी प्रेम की वाणी,
  जब जग में हो जाए सबकी
  तब इंसा का दिल प्रेम सभा हो जाए   
  दर्द पराया भी अपना हो जाए।।
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   नयनों में स्वप्न सजे हाँथों में मेहदी रचे।
   स्वप्न न कोई हो अधूरे ऐसा कोई मीत बने।।
   जब नयन शर्मीले झुक- झुक जाए......
   तब मुस्काते अधरों पर प्यार के फूल खिले।।
                 ****0*****

   मन को जाने कैसा रोग  लगा  क्या बतलाऊँ।
   बिन उजास के उजहास लगे खुद से शरमाऊं।।
   जेठ लगे सावन भादों जैसे धूप लगे सांझ बसन्ती।
   पाती प्रिय की पल-पल ह्रदय लगाऊँ मुस्काउं।।
                 *****0*****

    सावन के झूलों को तरसे पेड़ों की डाली।
    द्वार  बुहारे  आ -आ कर के पुरवाई।।
    कब पायल छनके कब उड़े चुनरिया धानी,
    गालों पर हाथ रखे सोचे गोरी मतवाली।।
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                          उर्मिला सिंह

   
   
  
   
   
    
    
   
       

1 comment:

  1. अति सुन्दर मुक्तक...
    अच्छी रचना ...💐💐

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