Tuesday, 10 December 2024

धूप- छांव

      

          धूप...

  कभी धूप मिले कभी छांव मिले 

  कभी फूल मिले कभी शूल मिले

  पांव चलते ही रहे चलते ही रहे...

  पावों से शिकायत छालों ने किया...

  अश्कों की दो बूंद गिरी......

  दिल ने हँस के कहा ये......

 सहते ही रहो ये जीवन है

 यहां भोर  भी होती है

 तिम भी आक्छादित होता है

 गुनगुनी धूप, छांव और  फूल भी हंसते हैं

 मुस्कान भी है गान भी है

 बस कर्मों का  खज़ाना है सब तेरे

 स्वीकार करो,प्रभु नाम जपो

 मुक्ति का बस यही द्वार है तेरे।।

            उर्मिला सिंह

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