Thursday 16 July 2020

चाटुकारिता .......युगों युगों से एक ऐसी फलती फूलती प्रजाति है जो शदियों से रही है,इस प्रजाति को ' चाटुकार ' शब्द के नाम से जाना जाता है...ये प्रजाति हर जगह पाई जाती है चाहे राजनीति का गलियारा हो चाहे राजा महाराजा का दरबार हो या कारपोरेट का कार्यालय हो... प्रसंशा अच्छी बात है परन्तु गलत बात की प्रसंशा चाटुकारिता ही कही जाएगी ,इस बषय पर प्रस्तुत है एक छोटी से रचना :-

चाटुकारिता.....

चाटुकारिता की कला भी होती क्या कमाल है
सदियों से चाटुकार इस फन के उस्ताद होते हैं 
नख से शिख,तलवे से दिमाग तक चाटते रहतेहैं
नेताओं की कदम बोसी से  मालामाल होते हैं।।

चाटुकारों की न कोई धर्म न कोई जात होती है
अधरों पर मीठी मुस्कान आंखों में चाल होती है
जीहुजूरी में संलग्ननता ही इनका धर्म ईमान होता है
चापलूसी की रोटी में ही इन्हें गर्व का आभास होता है।।

चलते हैं सीना तान के बाते बड़बोली करते हैं ये
चाटुकारिता के दम पर ही इनकी शान होती है
माखन की टिक्की सी फिसलती इनकी ज़ुबान होती है
बड़े दमदार नेताओं के सिपाहसालार होतें हैं ये।।

चाटुकारिता भी जरूरी हो गई आज के परिवेश में
राजनीति से ऑफिस तक ग्रसित सभी इस रोग से
कौन सच्चा कौन झूठा हर चेहरे पर झीना आवरण है
उठा कर तो देखो भीतर छुपा इंसानियत का दुश्मन है।।

                         उर्मिला सिंह
                  






















                              
                                
                       





6 comments:

  1. बहुत सुन्दर।
    सही समय पर निकली अच्छी रचना।

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  2. सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद मान्यवर।

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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    1. हार्दिक धन्यवाद मान्यवर।

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  4. वाह !बेहतरीन दी 👌

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  5. स्नेहिल धन्यवाद प्रिय अनिता जी।

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