Wednesday 1 July 2020

जिंदगी से दूर होने लगते हैं......

जिन्दगी से हम दूर होने लगते ........ जब.......

हम  अपनी  आदतों के  वश में  हो जातें हैं।
जिन्दगी में कुछ नयापन शामिल नहीं  करते
भावनाओं को समझ कर भी अनजान होतें हैं।
या  स्वाभिमान को कुचलता देखते रहते हैं।।

तब जिन्दगी. से हम दूर होने लगते........हैं ।


जब किताबों का पढ़ना बन्द होने लगता है ।
जब ख्वाबों का कारवां दम तोड़ने लगता है ।
मन की आवाजों की गूंज जब देती नही सुनाई,
जब  खुदबखुद  आंखे नम होने लगती है ।।

तब जिन्दगी से हम दूर होने लगते........ हैं ।

जीवन रंग विहीन  हो स्वयम से जब दूर होने लगताहै।  
अपने काम से जब मन स्वयम असन्तुष्ट रहने लगता है।
मन की दशा जब कागज पर उकेरे मोर सी होती,
जो बरसात तो देखता पर पँख फैला नाच नहीं सकता ।।

तब जिन्दगी से हम दूर होने लगते हैं......... ।

                   🌷उर्मिला सिंह 












3 comments:

  1. हार्दिक धन्यवाद दिव्या अग्रवाल जी हमारी रचना को शामिल करने के लिए।

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  2. गहन चिंतन के साथ भाव गांभीर्य लिए बेहतरीन सृजन आदरणीय दी .
    जीवन रंग विहीन हो स्वयम से जब दूर होने लगताहै।
    अपने काम से जब मन स्वयम असन्तुष्ट रहने लगता है।
    मन की दशा जब कागज पर उकेरे मोर सी होती,
    जो बरसात तो देखता पर पँख फैला नाच नहीं सकता ।।..बहुत ही मार्मिक सृजन ..दी

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  3. स्नेहिल धन्यवाद अनिता जी सराहना के लिये आप सबकी सराहना कुछ लिखने की प्रेणना देती रहती है।

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