Sunday 30 August 2020

गज़ल

वक्त का इंतज़ार कर वक्त गूँगा नही मौन होता है!
वक्त की बोली जब निकले पूरी ललकार से निकले!

रण में विजयी होना है गर लक्ष्य साध कर निकलें
बुलंद हौसलों में अपने  विजय की धार से निकलें!!

अभिमानी ताकत फ़रिश्तों को भी शैतान बनाती है
दिलों पर राज करना हो ,नम्रता के शृंगार से निकलें!

चिराग तूफ़ानों में जला सको तो राहों पे आगे बढ़ो
बचाना है गर गद्दारों से,तूफ़ान में पतवार  से निकलो! 


उसूलों की ज़मीन बंजर होगई है ज़माने में 
 नई पौध के वास्ते,उसूलों की बीज लेके निकलो!

           ।।।     उर्मिला सिंह
                  








4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 31 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. हार्दिक धन्यवाद दिग्विजय अग्रवाल जी हमारी रचना को शामिल करने के लिये।

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  3. आपको हार्दिक धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी

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