Wednesday 12 September 2018

क्षितिज

दूर कही क्षितिज से....लगता है जैसे.....
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धरती व गगन मिले  श्रावणी  उमंग में।
भीनी भीनी बयार बहे संदली सुगन्ध में।
बज रही ....मन तरँग ....उत्सवों के रंग में।
हरित धरा लहरा रही कृषकों के उमंग में।।

तट व्याकुल भये..... मिलन के आनन्द में।
नृत्य भाव जग रहे.... सागर के आनन्द में।
पात पात सुघड़ हो रहे ..वर्षा के नहान से।
वन हर्षित होरहे पी-पी पपीहा की गूँज से।।
                    ****0****
                              🌷ऊर्मिला सिंह

6 comments:

  1. बहुत सुंदर 👌👌

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  2. Chitiz ke saamne to dhraa hae gagaan hae samadaar hae chan aur sitarwo ka saaz haepar koyi bataa de to hame chitiz ke piche walli diwaar ka raaz kyaa hae ???

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  3. बहुत सुन्दर रचना 👌👌👌

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  4. बहुत सुन्दर रचना 👌👌👌

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  6. प्रकृती की छटा का सुंदर चित्रण...
    ऊपर से ईश्वर की सुंदर कृति , पपीहे की बोली और भी मधुर रस घोल रही है..
    अच्छी रचना ...

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